विश्व के सभी साँपों को मारने के लिए यज्ञ किसने किया ?

महाभारत के वन पर्व में जनमेजय सर्प यज्ञ की कथा का वर्णन है। श्रृंगी ऋषि ने परीक्षित को श्राप दिया कि तक्षक नाग क्रोध करके अपने विष से सात दिन के भीतर ही जला देगा।


ऋषि पुत्र के श्राप के कारण तक्षक नाग ने परीक्षित को काटा और उनकी मृत्यु हो गई। 

परीक्षित ने अपनी मृत्यु से पहले शुकदेव जी से सात दिन तक भागवत कथा सुनी। उन्हें तो ऋषि पुत्र या नाग जाती से कोई द्वेष न था, उन्होंने तो यह समझा कि जैसे कर्म मैंने किया है, उसी के अनुरुप फल मुझे मिल गया है।

 इसमें किसी दूसरे का दोष नहीं है लेकिन परीक्षित के पुत्र जनमेजय इस विचार धारा से सहमत नहीं थे। उन्होंने समस्त नाग जाति का समूल नाश करने के लिए सर्प यज्ञ करवाया।

ऋषियों ने उन्हें आश्वासन दिया कि इस यज्ञ के मंत्रों से विश्व के हर कोने से सर्पो को आकर्षित करके हवन कुंड में भस्म किया का जा सकता है। जनमेजय का तांत्रिक सर्प यज्ञ आरंभ हो गया, अभिचारिक कर्म के नियमों का पालन करते हुए ऋत्विक काले वस्त्र ग्रहण किए हुए थे, धुएं से उनके नेत्र रक्त वर्ण से हो रहे थे।

अग्नि में विधि विधान के अनुसार आहुतियाँ दी जाने लगी उससे प्रभावित होकर सर्पों के मन कांपने लगे। हजार, लाख और अरब की संख्या में सर्प अग्नि में भस्म होने लगे। 

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