पार्वती गिरी (1926 - 1995)
जिन्हें उड़ीसा की मदर टेरेसा भी कहा जाता था।
प्रारंभिक जीवन
इनका जन्म 19 जनवरी,1926 को ओडिशा के संबलपुर जिले के "समवाईपदार गांव" में हुआ था।
इनके पिता धनंजय गिरी गांव के प्रमुख और उनके चाचा कांग्रेस के नेता थे। इस कारण स्वतंत्रता सेनानी उनके घर अक्सर आते थे। इसी कारण उनके अंदर भारत को आजादी दिलाने की बात छोटी सी उम्र में ही, उनके मन में घर कर गई।
उनकी प्रारंभिक शिक्षा केवल तीसरी कक्षा तक हुई थी।
स्वतंत्रता आंदोलन
उन्हें ब्रिटिश सरकार विरोधी गतिविधियों और बरगढ़ की अदालत में सरकारी विरोधी नारे लगाने की वजह से दो साल की जेल हुई, लेकिन नाबालिक होने की वजह से उन्हें छोड़ दिया।
एक समाजसेविका
भारत के आजाद होने के बाद 1950 में पार्वती ने अपनी बची हुई स्कूली शिक्षा इलाहाबाद के प्रयाग महिला विद्यापीठ से पूरी की।
इसके बाद पार्वती 1954 में रमा देवी के साथ राहत कार्यों में भाग लेने लगी। 1955 में संबलपुर जिले में रहने वाले लोगों के स्वास्थ और स्वच्छता में सुधार करने के लिए अमेरिकी परियोजना से जुड़ी।
इसके बाद पार्वती ने अनाथ बच्चों के लिए " कस्तूरबा गांधी मातृ निकेतन " नामक आश्रम की शुरुआत की इस आश्रम को इन्होंने " नृसिंहनाथ " में शुरु किया।
फिर पार्वती ने संबलपुर के बिरसिंह गढ़ में एक और आश्रम खोला जिसका नाम डॉ. संतरा बाल निकेतन था।
रामा देवी चौधरी के साथ मिलकर पार्वती ने 1951 में " कोरापुट " में अकाल पीड़ित लोगों को राहत देने के लिए गांव घूमती रहीं और ओडिशा के जेलों की स्थिति सुधारने के लिए काम किया।
उन्होंने विनोबा भावे के भूदान आन्दोलन में भी भाग लिया।
सम्मान
🍁इनके सम्मान में सरकार ने 2016 में मेगा लिफ्ट सिंचाई योजना का नाम पार्वती गिरि रखा।
🍁वहीं 1998 में ओडिशा के राज्यपाल द्वारा संभलपुर विश्वविद्यालय से पार्वती गिरी को डॉक्टरेट की मानद उपाधि से सम्मानित किया गया था।
🍁सामाजिक कार्यों के लिए उन्हें 1984 में डिपार्टमेंट ऑफ़ सोशल वेलफेयर द्वारा पुरस्कार मिला।
🍁17 अगस्त 1995 को पार्वती गिरी ने आखिरी सांस ली। उनकी मृत्यु के बाद 2016 में मेगा लिफ्ट सिंचाई योजना का नाम पार्वती गिरी के नाम पर रखा गया।

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