इंद्र देव ने घोड़े की चोरी क्यों की ?

महाराज वेन देवताओं में विश्वास नहीं करते थे। इसलिए बहुत समझाने पर भी उन्होंने यज्ञ की अनुमति नहीं दी। जिसके बाद ऋषियों ने वेन की भुजाओं का मंथन किया जिससे उनके पुत्र पृथु की उत्पत्ति हुई।




जहाँ पश्चिम वाहिनी गंगा प्रवाहित होती है वहाँ ब्रह्मा और मनु का ब्रह्मवैवर्त क्षेत्र है। वहाँ राजा पृथु ने एक सौ अश्वमेध यज्ञ का आयोजन का निश्चय किया। 

देवराज इंद्र को भय हुआ कि यदि ये यज्ञ संपन्न हो गया तो मेरा सिंहासन पर रहना संभव नहीं हो पाएगा। 

इंद्र ने यज्ञ को भंग करने की योजना बनायी और जब पृथु का 100 वां यज्ञ हो रहा था तब इंद्र ने वेश बदल कर दान के लिए रखे, एक अश्व को चुरा लिया।

तब पृथु के पुत्र ने इंद्र का पीछा किया और अश्व को वापस ले आए, लेकिन इंद्र ने फिर से अश्व को चुराने की कोशिश की।

इससे क्रोधित होकर पृथु ने इंद्र को मारने के लिए धनुष उठा लिया तब ऋषियों ने उनसे कहा कि यदि आप बाण चलाएंगे तब देवराज के साथ पूरा देवलोक भी नष्ट हो जाएगा।

 हम यज्ञ द्वारा ही इंद्र को बुलाकर इसी अग्नि में भस्म कर सकते है और उन्होंने ऐसा ही किया। लेकिन जैसे ही इंद्र अग्नि कुंड में प्रवेश करता ब्रह्मा और विष्णु जी ने पृथु को ऐसा करने से रोक लिया और इंद्र के प्राण बच गए। 

Comments

Popular posts from this blog

युधिष्ठिर का राजसूय यज्ञ

किस ऋषि का विवाह 50 राजकुमारियों से हुआ था ?

पुराणों में इंद्र, सप्तऋषि मनु और मन्वन्तर क्या है ?