पांडवों को हजारों को भोजन कराने वाला पात्र किसने दिया ?
💠महाभारत वन पर्व के अनुसार जब पांडवों को वनवास हुआ और वे वन में जाकर रहने की तैयारी करने लगे तब प्रेम वश नगर वासी उनके साथ जाकर रहने को तैयार थे।
💠तब उन्होंने अधिकांश प्रजा को समझा बुझा कर वापस भेज दिया,परन्तु शौनक आदि ब्राह्मण किसी भी प्रकार लौटने के लिए तैयार न हुए।
💠पांडव उनके भोजन की व्यवस्था कैसे करें, ये समस्या लेकर युधिष्ठिर धौम्य ऋषि के पास गए और कहा कि इतने लंबे समय तक इन सभी के भोजन की व्यवस्था कैसे हो पाएगी।
💠तब धौम्य ऋषि ने कहा कि जब - जब भी प्रजा पर अन्न संबंधी कष्ट आए है, उसे सूर्य भगवान की आराधना से दूर किया जा सका है।
💠धौम्य ऋषि ने युधिष्ठिर को मंत्र के साथ "सूर्याष्टोतरशतनाम स्त्रोत " का पाठ करने की प्रेरणा दी। ये स्त्रोत नृसिंह पुराण, अध्याय 20, स्कंद, कुमारि० ४२, ब्रह्मपुराण तथा महा०, वन० ३/१६ - २८ में वर्णित है।
💠युधिष्ठिर की उपासना से भगवान सूर्य प्रसन्न हुए और एक तांबें का परोसने वाला पात्र उन्हें दिया और कहा कि जब तक द्रौपदी स्वयं बिना खाए हुए इस पात्र से परोसती रहेगी, तब तक हजारों व्यक्तियों के लिए भी यह भोज्य पदार्थों का भंडार प्रस्तुत करता रहेगा और कभी भी अभाव की स्थिति नहीं आने पाएगी।
💠इस तरह 12 वर्ष तक तुम अतिथियों का आतिथ्य करते रहोगे। द्रौपदी इस नियम के अनुसार हर दिन हजारों ब्राह्मणों को चमत्कारी रुप से भोजन कराती थी। वास्तव में सूर्य मंत्र और "सूर्याष्टोतरशतनाम स्त्रोत " की दिव्य शक्ति का ही यह प्रभाव था।

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