बेगम हजरत महल

(1820 - 1879)

नवाब वाजिद अली शाह की 36 वीं बेगम 


प्रारंभिक जीवन


इनका जन्म 1820 में अवध प्रांत के फैजाबाद जिले के एक छोटे से गांव में बेहद गरीब परिवार में हुआ था। बचपन में इन्हें मुहम्मद खातून (मुहम्मद खानम) या उमराव कहते थे।


पिता मजरुद्दीन थे,जो फर्रुखाबाद के नवाब गुलाम हुसैन के सेनापति और इनकी मां महर अफसा नेपालशाही सेना के सेमापति की बेटी थी। इनके माता - पिता का देहांत चेचक के कारण हो गया था। इसके बाद इनकी बुआ ने इन्हें बेच दिया था। 


विवाह 

इनका विवाह वाजिद अली शाह से हुआ था। शादी के बाद इन्हें नवाब ने महक परी बेगम की पदवी दी गई। 

1846 में बेटे के जन्म के बाद इन्हें इत्तेखार उल्लीसा बेगम की पदवी और बेगम हजरत महल का नाम भी वाजिद अली ने दिया। 

रमजान में पैदा होने के कारण इनके बेटे को रमजान कहा गया, लेकिन वाजिद अली ने अपने बेटे का नाम मिर्जा बिरजिसकद्र रखा। 


बेगम की महिला सैनिक दल


बेगम हजरत महल के सैनिक दल में कई महिलाएं भी शामिल थी जिसका नेतृत्व रहीमी बी करती थी।

इनका साथ देने वाली अन्य विरांगाएं रनवीरी वाल्मीकि, सहेजा वाल्मीकि, शोभादेवी, महावीरादेवी, नामकौर , राजकौर, इंदरकौर, हबीबा गुर्जरा देवी, भवानी देवी, भगवती देवी, कुशलदेवी आदि।


महावीरादेवी ने इस संग्राम में 22 महिलाओं को एकत्रित करके अंग्रेज़ी सेना पर आक्रमण किया।
बेगम की इस सेना में आशादेवी अंग्रेजों से लड़ते हुए 8 मई,1857 शहीद हो गई।


स्वतंत्रता आंदोलन में भागीदारी

(१) सन् 1856 में ब्रिटिश ईस्ट इंडिया ने अवध पर कब्जा कर लिया और अवध के नवाब वाजिद अली शाह को कलकत्ता में नजरबंद कर दिया।


(२) इसके बाद बेगम हजरत महल ने 1857 - 58 में राजा जयलालसिंह के नेतृत्व में अंग्रेज़ी कंपनी के विरुद्ध विद्रोह कर दिया और लखनऊ - अवध पर सबकी सहमती से अपने नाबालिक बेटे को गद्दी पर बैठा दिया और खुद सारा काम देखने लगी।


(३) 7 जुलाई ,1857 में अपने सेना के साथ अंग्रेजों के खिलाफ विद्रोह कर दिया। बेगम की सेना ने चिनहट, दिलकुशा में हुई लड़ाई में अंग्रेजों के छक्के छुड़ा दिए। लखनऊ में हुए इस विद्रोह में बेगम ने अवध के फैजाबाद, सालोन, सुल्तानपुर, सीतापुर, बहराइच आदि को अग्रेजों से मुक्त करा दिया।


(४) इसके बाद बेगम हजरत महल ने नाना साहेब, राजा लाल, राजा मान सिंह आदि से मिलकर फैजाबाद में अंग्रेजों पर हमला कर दिया,लेकिन बेगम को हार का सामना करना पड़ा। अंग्रेज़ी सेना ने लखनऊ और अवध के ज्यादातर हिस्सों पर फिर से कब्जा कर लिया।


(५) अवध के जंगलों से छिपकर बेगम ने,गोरिल्ला युद्ध के द्वारा अंग्रेज़ो से लोहा लेती रही।


अंतिम समय
बहादुर शाह ज़फ़र को कैद कर के रंगून भेज दिया गया और बेगम हजरत महल अपने बेटे के साथ नेपाल चली गई। नेपाल के राजा जंगबहादुर ने इन्हें शरण दी।

इनकी मृत्यु 1879 को नेपाल में हुई, इनकी कब्र काठमांडू के जामा मस्जिद में बेगम के पास (घंटाघर पर) स्थित है।
10 मई,1984 में भारत सरकार ने बेगम हजरत महल के सम्मान में एक डाक टिकट जारी किया।


बिरजिसकद्र
बेगम हजरत महल और वाजिद अली शाह का एक बेटा था बिरजिस कादर, जिसके जन्म के बाद इन्हें हजरत महल की उपाधि मिली।


1893 में बिरजिस कादर अपने परिवार के साथ  मक्का जाना चाहते थे। अंग्रेज़ो ने उन्हें अपना मेहमान बनाया और खाने कि दावत दी, जिसमें ज़हर मिलाकर बिरजिस के परिवार को खिला दिया। जिससे बिरजिसकद्र और उसके बेटे बेटियों की मृत्यु हो गई।


बिरजिस की बेगम मेहताब इस भोज में शामिल नहीं हुई जिससे उनकी जान बच गई। इस घटना के 4 महीने बाद उन्होंने एक पुत्र को जन्म दिया और मेहताब 1929 तक जीवित रही।

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