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Showing posts from 2024

कालयवन कौन था ?

कालयवन का जन्म  एक बार महर्षि गार्ग्य को उनके साले ने यादवों की गोष्ठी में नपुंसक कह दिया। उस समय यदुवंशी हँस पड़े।  तब महर्षि गार्ग्य ने बहुत गुस्से में दक्षिण समुद्र के तट पर जा कर , यादव सेना को भयभीत करने वाले पुत्र की प्राप्ति के लिए तपस्या की।  उन्होंने महादेव जी की उपासना केवल लोहे की चूर्ण खाकर किया, तब भगवान शंकर ने 12 वें वर्ष में खुश होकर उन्हें वरदान दिया।  एक पुत्रहीन यवनराज ने महर्षि गार्ग्य की अत्यंत सेवाकर उन्हें संतुष्ट किया, उसकी स्त्री के संग से ही इनके एक कृष्ण वर्ण बालक हुआ। वह यवनराज उस कालयवन नामक बालक को, जिसका वक्ष स्थल वज्र के समान कठोर था ,अपने राज्य पद दे दिया और स्वयं वन चले गए। नारद जी और कालयवन कालयवन ने नारद जी से पूछा पृथ्वी पर बलवान राजा कौन - कौन से है ? इस पर नारद जी ने उसे यादवों को ही सबसे अधिक बलशाली बताया। यह सुनकर कालयवन ने हजारों हाथी, घोड़े और रथों सहित सहस्त्रों करोड़ सेनाओं को लेकर मथुरा पुरी आ गया।  जरासंध और  कालयवन का कृष्ण जी से युद्ध  एक तरफ जरासंध का आक्रमण और दूसरी ओर कालयवन की चढ़ाई। श्री कृष्ण ने स...

दुर्वासा ऋषि ने देवराज इन्द्र को क्या श्राप दिया ?

  विष्णु पुराण के अनुसार एक बार शंकर जी के अंशावतार श्री दुर्वासा जी पृथ्वी पर घूम रहे थे,घूमते - घूमते उन्होंने एक विद्याधरी के हाथों में संतानक पुष्पों की एक दिव्य माला देखी।  उन्होंने वो माला उस सुंदरी से मांग ली और पहन ली। तभी उन्होंने देवताओं के राजा इन्द्र को ऐरावत पर आते देखा और उस माला को दुर्वासा ऋषि ने इंद्र को दे दिया। देवराज ने उसे लेकर ऐरावत हाथी के सिर पर डाल दिया और ऐरावत ने उस माला को पृथ्वी पर फेंक दिया । ये देखकर दुर्वासा ऋषि ने क्रोध में उन्हें श्राप दे दिया कि "जिस ऐश्वर्य और पद के घमंड में तूने मेरी भेंट का अपमान किया है।  तेरी उस त्रिलोकी का वैभव नष्ट हो जायेगा, तेरा ये त्रिभुवन भी श्रीहीन हो जायेगा।" फिर इंद्र ने दुर्वासा ऋषि से क्षमा मांगी लेकिन उन्होंने क्षमा नहीं किया।

कोहिनूर हीरे की कुछ दिलचस्प बातें !

(1) 1083 CE में काकतीय वंश को आज के आंध्र प्रदेश के कोल्लूर के गोलकुंडा माइन से कोहिनूर हीरा मिला था। उस समय ये 793 कैरेट का था ,जिसे वारंगल देवी की बाएं आँख में लगाया गया। जो काकतीय वंश की कुल देवी है। (2) फिर इसे वेनेस के एक जौहरी ने तरासा जिससे इसका वजन 186 कैरेट हो गया।  (3) कोहिनूर पर श्राप है कि ये हीरा जिसके पास रहेगा वो दुनिया का मालिक बनेगा लेकिन बदकिस्मती का सामना भी उसे करना पड़ेगा। इसे कोई महिला ही पहन सकती है इसलिए इसे मन्दिर में दान कर दिया गया। (4) सन् 1930 में वारंगल को हराकर अलाउद्दीन ने कोहिनूर हासिल किया, जिसके 6 साल के अंदर ही अलाउद्दीन की हत्या हो गई।  (5) फिर 1526 में पानीपत की लड़ाई के बाद बाबर ने इब्राहिम लोधी को हराकर कोहिनूर ले लिया और 150 सालों तक कोहिनूर मुगलों के पास रहा।  (6) इसके बाद 1739 में पर्शिया के नादिर शाह ने दिल्ली पर हमला कर दिया, उस समय मुहम्मद शाह ने कोहिनूर अपनी पगड़ी में छुपाने की कोशिश की, लेकिन एक नौकर ने नादिर शाह को ये बता दिया। तब जश्न के दौरान नादिर शाह ने मोहम्मद शाह को पगड़ी बदलने को कहा,उसी वक्त हीरा जमीन पर ग...

पुराणों में इंद्र, सप्तऋषि मनु और मन्वन्तर क्या है ?

विष्णु पुराण के अनुसार प्रत्येक चतुर्युग के अंत में वेदों का लोप हो जाता है, उस समय सप्तर्षि गण ही स्वर्ग लोक से पृथिवी में अवतीर्ण होकर उनका प्रचार करते है।  प्रत्येक सतयुग के आदि में (मनुष्यों की धर्म मर्यादा स्थापित करने के लिए) स्मृति शास्त्र के रचयिता मनु का प्रादुर्भाव होता है और उस मन्वंतर के अंत में तत्कालीन देवता यज्ञ भागों को भोगते हैं और मनु उनके वंशधर मन्वंतर के अंत तक पृथिवी का पालन करते रहते है।  इस प्रकार मनु सप्तर्षि , देवता, इन्द्र और मनु पुत्र राजा गण ये प्रत्येक मन्वंतर के अधिकारी होते हैं। इन 14 मन्वंतरों के बीत जानें पर एक सहस्त्र युग रहने वाला कल्प समाप्त हो जाता है, फिर इतने ही समय की रात होती है। उस समय विष्णु भगवान प्रलयकालीन जल के ऊपर शेष शय्या पर शयन करते है और फिर सृष्टि की रचना ब्रह्मा जी द्वारा की जाती है।  प्रथम मन्वंतर   प्रथम मनु स्वयंभुव थे। दूसरा मन्वंतर दूसरे मन्वंतर के स्वारोचिष नाम के मनु थे। इसमें पारावत और तुषितगण देवता थे और इस मन्वन्तर के विपिश्चित नामक देवराज इंद्र थे। ऊर्ज्ज, स्तम्भ, प्राण, वात पृषभ, निरय और परिवान ये उस सम...

श्री कृष्ण ने काशी को क्यों जलाकर भस्म कर दिया ?

पौंड्रक और श्री कृष्ण का युद्ध  करूष नामक राज्य में पौंड्रक नाम का एक राजा था, जो दिखने में श्री कृष्ण की तरह था और इस बात का उसे बहुत अभिमान था। वह ख़ुद तो श्री कृष्ण कि  तरह चार हाथ रखता और उनमें शंख, चक्र, गदा आदि धारण करता था और श्री कृष्ण को बहरूपिया व खुद को भगवान कहता।  एक बार उसने श्री कृष्ण को संदेश भेजा की वह उसकी शरण में आ जाए और उसे भगवान मान ले, वरना मैं (पौंड्रक) तुम्हारे ऊपर सुदर्शन चक्र छोड़ दूंगा।  काशी के राजा पौंड्रक के मित्र थे,जिनके पास पौंड्रक उस समय रह रहा था। संदेश मिलते ही श्री कृष्ण ने काशी पर चढ़ाई कर दी।  युद्ध के दौरान श्री कृष्ण ने अपने चक्र से पौंड्रक का सर धड़ से अलग कर दिया। फिर काशी नरेश ने पौंड्रक की तरफ से युद्ध किया। श्री कृष्ण ने उसका भी सर धड़ से अलग कर दिया, जो काशी के राजमहल के दरवाजे पर जाकर गिरा।  श्री कृष्ण को मारने के लिए शिव जी से वरदान प्राप्ति  काशी नरेश के पुत्र ने भगवान शंकर को प्रसन्न करने के लिए उनकी आराधना की और शिव जी से अपने पिता के हत्या करने वाले को मारने का वर मांगा। तब शिव जी ने उन्हें कहा कि त...

सगर और उनके 60, 000 पुत्र

महाराज सगर को 60,000 पुत्रों का वरदान   राजा सगर की दो रानियां थी सुमति और केशिनी। इन्हें और्व मुनि ने वर दिया था कि आपकी दोनों रानियों में से एक से वंश की वृद्धि करने वाला एक पुत्र और दूसरी से 60,000 पुत्र उत्पन्न होंगे। इनमें से जिसको जो सही लगे वह उसी वर को ग्रहण कर सकती है।" उनके ऐसा कहने पर केशिनि ने एक और सुमति ने 60,000 पुत्रों का वर मांगा। महर्षि के आशीर्वाद से केशिनी को असमंजस नामक एक पुत्र हुआ और सुमति को 60,000 पुत्र प्राप्त हुए। अश्वमेध यज्ञ और सगर के पुत्रों का भस्म होना  एक बार महाराज सगर ने अश्वमेध यज्ञ शुरु किया। उसमें उनके पुत्रों द्वारा सुरक्षित घोड़े को कोई व्यक्ति चुराकर पाताल में चला गया।  तब उस घोड़े के खुरों के चिन्हों का अनुसरण करते हुए उनके पुत्रों में से प्रत्येक ने एक - एक योजन पृथ्वी खोद डाली। पाताल में पहुंचकर उन राजकुमारों ने अपने घोड़े को घूमता हुआ और पास ही ध्यान में बैठे ऋषि कपिल को देखा।  उन्हें लगा की कपिल मुनि ने ही अश्वमेध यज्ञ का घोड़ा चुराया है और तुरन्त ही वो सभी मारो - मारो करके चिल्लाते हुए कपिल ऋषि की ओर दौड़े, वैसे ही उन्हो...

विष्णु पुराण सबसे पहले किसने किसको सुनाया था ?

विष्णु पुराण को सबसे पहले ब्रह्मा जी ने ऋभु को सुनाया था। फिर ऋभु ने प्रियव्रत को सुनाया और प्रियव्रत ने भागुरि को सुनाया। फिर इसे भागुरि ने स्तंभमित्र को, स्तंभमित्र ने दधीचि को, दधीचि ने सास्वत को और सास्वत ने भृगु को सुनाया। भृगु ने पुरुकुत्स को सुनाया, पुरुकुत्स ने नर्मदा को सुनाया, फिर नर्मदा ने धृतराष्ट्र और पूरणनाग से कहा। धृतराष्ट्र और पूरणनाग ने यह पुराण वासुकि को सुनाया , वासुकि ने वत्स को, वत्स ने अश्वतर को, अश्वतर ने कम्बल को और कम्बल ने एलापुत्र को सुनाया। इसी समय मुनिवर वेदशिरा पाताल लोक में पहुंचे, उन्होंने यह पुराण प्राप्त किया और फ़िर प्रमति को सुनाया। प्रमति ने उसे जातुकर्ण को दिया और जातुकर्ण ने अन्याय पुण्यशील महात्माओं को सुनाया। (पूर्व जन्म में सारस्वत के मुख से सुना हुआ यह पुराण) पुलस्त्य जी के वरदान से पराशर जी को स्मरण रह गया। पराशर जी ने मैत्रेय जी को सुनाया।  कलयुग के अंत में मैत्रेय जी इसे शिनीक जी को सुनायेगे।

सत्यवती कौन थी ?

महाराज शांतनु की दूसरी पत्नी थी सत्यवती।  इनकी माँ आद्रिका नाम की अप्सरा थी जो श्राप के कारण मछली रूप में थी और इनके पिता राजा उपरिचर थे। एक बार कुछ मछुआरों ने एक मछली को यमुना नदी से पकड़ा जिसके पेट से दो इंसानों के बच्चें निकले, एक लड़का और एक लड़की। मछुआरें उस मछली और बच्चों को राजा उपरिचर के पास ले गए। तब राजा ने उस लड़के को गोद ले लिया और उसका नाम मत्स्य रखा और  उस कन्या को राजा ने मछुआरों को दे दिया,जिसे दाशराज नाम के मल्लाह ने पाला।  इस कन्या के शरीर से मछली के जैसी गंध आती थी जिसके कारण इनका नाम मत्स्यगंधा  (सत्यवती) पड़ा। इन्हें सत्यवती भी कहते थे। वे यमुना नदी में नाव से लोगों को पार उतारती थी। उसी समय इनकी भेंट ऋषि पराशर से हुई और वो सत्यवती पर आसक्त हो गए। उन्होंने सत्यवती से वरदान मांगने को कहा ,तब सत्यवती ने अपने शरीर से आने वाली मछली जैसी दुर्गंध को सुगंध में बदलने का वर माँगा और ऐसा ही हुआ।  इसके बाद उन्होंने पराशर ऋषि से समागम किया और उनके शरीर से उत्तम गंध आने लगी जिसके कारण वे " गंधवती " के नाम से प्रसिद्ध हुई। पृथ्वी पर एक योजन दूर के मनुष्...

शकुंतला का नाम शकुंतला कैसे पड़ा ?

एक बार ऋषि विश्वामित्र तपस्या में लीन थे। तब इन्द्रदेव ने उनकी तपस्या भंग करने के लिए मेनका नाम की अप्सरा को भेजा। विश्वामित्र मेनका पर आसक्त हो गए और उनकी तपस्या भंग हो गई। शकुंतला, मेनका और ऋषि विश्वामित्र की पुत्री थी। मेनका ने हिमालय के शिखर पर मालिनी नदी के किनारे शकुंतला को जन्म दिया और उस बच्चे को उसी वन में छोड़कर वो इंद्र लोक लौट गई। उस जंगल में जंगली जानवरों से बचाने के लिए शकुंतो (पक्षियों) ने वन में उस बच्ची को अपने पंखों से चारों ओर से ढ़क लिया। जिससे उस बच्ची की जान बच गई। तभी वहां कण्व ऋषि आ गये और उस बच्ची को अपने साथ ले गये।  शकुंतो पक्षियों द्वारा बचाए जानें के कारण कण्व ऋषि ने इस बच्ची का नाम शकुंतला रख दिया। 

कर्मदेवी

मेवाड़ के राजा समरसिंह की पत्नी पृथा अपने पति के साथ सती हो गयी थी और उनकी दूसरी पत्नी कर्मदेवी नाबालिक पुत्र कर्ण की संरक्षिका बनकर राज काज संभाल रही थी।  उसी समय मुहम्मद गोरी के सेनापति कुतुबुद्दीन ने अपनी विशाल सेना लेकर मेवाड़ पर आक्रमण कर दिया। उस समय उसकी शक्ति को रोकने की क्षमता किसी में नहीं थी,राजपूत चिंतित हो गये। तब राजपूत सरदार ने कहा कि हम युद्ध में अपने प्राण न्यौछावर करने के लिए तैयार हैं पर हमारा नेतृत्व कौन करेगा।  तब राजमाता कर्मदेवी ने उत्तर दिया "उनकी वीर पत्नी अभी जीवित है।" इसके बाद एक भयंकर युद्ध हुआ, जिसमें कुतुबुद्दीन की हार हुई। रानी ने मेवाड़ पर आँच नहीं आने दी।

रानी उर्मिला

स्वाधीनता संग्राम में अपनी बलि देने वाली भारतीय नारी। 11 वीं सदी का अंतिम चरण था, महमूद गजनवी लगातार हमले कर , मंदिरों को तोड़ रहा था। सोमनाथ का विशाल कुख्यात स्मारक गुजरात की छाती पर खड़ा था।  राजा जयपाल की रानियों का सतीत्व  इसी समय अजमेर का राजा धर्मगजदेव अपनी वीरता और न्याय के लिये बाहर के देशों में भी प्रसिद्ध हो चुका था।  उसकी रानी उर्मिला पति भक्त और सतीत्व की थी,वह बहुत सुंदर थी। राजा को राज्य प्रबंध में अपना सहयोग देती थी।  अचानक महमूद गजनवी ने अजमेर पर आक्रमण कर दिया। राजा का अपराध केवल इतना था कि जिस समय मलेच्छों ने सोमनाथ मंदिर की मूर्ति पर गदा प्रहार किया,राजा ने मुसलमानो से युद्ध किया। इसी का बदला लेने के लिये महमूद गजनवी मौका देख रहा था। ऐसे अवसर पर भारतीय नारियों और कन्याओं ने भी साथ दिया। उर्मिला ने राजा से कहा कि मैं भी आपके साथ रण में चलना चाहती हूं। तब राजा ने कहा कि "रानी मैं तुम्हें रण में ले जाने में मुझे कोई आपत्ति नहीं हैं लेकिन अजमेर के प्रबंध के लिए मैं तुम्हें यहीं छोड़ दूं "  राजपूत बहुत वीरता से लड़े शत्रुओं के छक्के छूट गये। एक यवन...

बलराम जी को ब्रह्म हत्या का पाप क्यों लगा ?

जब महाभारत का युद्ध शुरु हुआ तब बलराम जी तीर्थ यात्रा पर निकले, तब यात्रा करते हुए वे नैमिषारण्य क्षेत्र पहुंचे। जहां ऋषियों का सत्संग हो रहा था।  बलराम जी के वहां पहुंचते ही सभी ऋषि उठकर उनका स्वागत करने लगे लेकिन भगवान व्यास के शिष्य रोमहर्षण अपनी जगह से नहीं उठे।  ये देखकर बलराम जी को बहुत क्रोध आया और उन्होंने कुश की नोक से उनके ऊपर वार किया, जिससे रोमहर्षण की मृत्यु हो गई।  तब ब्राह्मणों ने बलराम जी को बताया कि आपसे बहुत बड़ी गलती हो गई है रोमहर्षण जी को हमने ही ब्राह्मणोचित आसन पर बैठाया था और जब तक हमारा सत्र समाप्त न हो, तब तक के लिए उन्हें शारीरिक कष्ट से रहित आयु भी दे दी थी।  आप से अनजाने में जो काम हुआ है, वो ब्रह्महत्या के समान है। फिर बलराम जी ने इसका प्रायश्चित भी किया।

युधिष्ठिर का राजसूय यज्ञ

  पांडवो की दिग्विजय  महाराज युधिष्ठिर जब इंद्रप्रस्थ के राजा बने तब उन्होंने दिग्विजय के लिए सृजनवंशी वीरों के साथ सहदेव को दक्षिण दिशा में दिग्विजय के लिए भेजा, नकुल को मत्स्यदेशीय वीरों के साथ पश्चिम में, अर्जुन को केकयदेशीय वीरों के साथ उत्तर दिशा में और  भीमसेन को मद्रदेशीय वीरों के साथ पूर्व दिशा में दिग्विजय करने का आदेश दिया।  राजसूय यज्ञ के अतिथि   जब युधिष्ठिर ने इंद्रप्रस्थ में राजसूय यज्ञ किया, तब उसमें श्रीकृष्णदैपायन (वेदव्यास) , भरद्वाज, सुमंतु, गौतम, असित वशिष्ठ, च्यवन,कण्व , मैत्रेय, कवष, त्रित, विश्वामित्र, वामदेव, सुमति, जैमिनि, क्रुतु, पैल, पराशर, गर्ग, वैशंपायन, अथर्वा, कश्यप, धौम्य, परशुराम, शुक्राचार्य, आसुरि , वितिहोत्र ,मधुच्छन्दा , वीरसेन और अकृतव्रण। इसके अलावा द्रोणाचार्य, भीष्म पितामह, कृपाचार्य, धृतराष्ट्र और उनके दुर्योधन अपने भाइयों के साथ, विदूर आदि को बुलवाया था। इस यज्ञ का दर्शन करने के लिए देश के सब राजा, उनके मंत्री तथा कर्मचारी ,ब्राह्मण, क्षत्रिय वैश्य, शुद्र सब के सब वहां आये। इसी प्रकार सत्यकि, विकर्ण, हार्डिक्य, विदुर,भू...

शाल्व को सौभ नाम का विमान कैसे मिला ?

रुक्मिणी जी का विवाह शिशुपाल से होना निश्चित हुआ था, लेकिन रुक्मिणी जी कृष्ण जी से विवाह करना चाहती थी इसलिए कृष्ण जी ने रुक्मिणी जी का हरण कर लिया। इसके बाद सभी में युद्ध हुआ जिसमें कृष्ण जी ने शिशुपाल और उसके मित्र शाल्व को हरा दिया,तब शाल्व ने प्रतिज्ञा ली थी कि-  "मैं पृथ्वी से यदुवंशियों को मिटा कर छोडूंगा सब लोग मेरा बल पौरुष देखना।" अपनी इसी प्रतिज्ञा को पूरा करने के लिए शाल्व ने भगवान पशुपति की आराधना शुरु की। वह उन दिनों ,दिन में केवल एक बार मुट्ठीभर राख फांक लिया करता था। एक वर्ष के बाद शिव जी प्रसन्न हुए।  तब शाल्व ने शिव जी से वरदान मांगा की मुझे ऐसा विमान दिजिये जो देवता, असुर, मनुष्य, गन्धर्व, नाग और राक्षसों से तोड़ा न जा सके, जहां इच्छा हो, वहीं चला जाय और यदुवंशियों के लिए अत्यंत भयंकर हो। इसके बाद शिव जी के कहने पर मय दानव ने लोहे का सौभ नामक विमान बना कर शाल्व को दिया। सौभ विमान एक नगर के समान था। वह इतना अंधकारमय था कि उसे देखना या पकड़ना अत्यंत कठिन था। चलाने वाला उसे जहां ले जाना चाहता, वहीं वह उसके इच्छा करते ही चला जाता था।  शाल्व ने वह विमान प्रा...

वसुदेव जी का सर किसने काट दिया था ?

श्री कृष्ण और शाल्व का जब युद्ध हुआ था तब शाल्व ने अपनी माया से वसुदेव जी की तरह एक नकली इंसान बनाया और युद्ध भूमि में उसी वसुदेव जी का सर काट दिया।  फिर उनका सिर लेकर अपने सौभ नामक विमान पर बैठकर आकाश में उड़ गया। कृष्ण जी को पता था कि यह मय दानव द्वारा सिखाया गई माया है। श्री कृष्ण ने युद्ध में सुदर्शन चक्र से शाल्व का वध कर दिया।

सिद्धियां कितनी होती है ?

श्री भागवत महापुराण में श्री कृष्ण ने उद्धव जी को बताया कि योगियों ने 18 प्रकार की सिद्धियां बतायी है। जिनमें 8 सिद्धियां तो मुझमें (श्री कृष्ण) ही रहती है। दूसरों में कम और दस सत्त्वगुण के विकास से ही मिल जाती है।  उनमें तीन सिद्धियां तो शरीर की है - अणिमा, महिमा और लघिमा। इंद्रियों की एक सिद्धि है प्राप्ति। लौकिक और पारलौकिक पदार्थों का इच्छानुसार अनुभव करने वाली सिद्धि है प्राकाम्य   माया और उसके कार्यों को इच्छानुसार संचालित करना इशिता नाम की सिद्धि है  विषयों में रहकर भी आसक्त न होना  वशिता है।  और जिस सुख की कामना करे, उसकी सीमा तक पहुंच जाना कामावसायिता नाम की आठवीं सिद्धि है अन्य सिद्धियां   इसके अलावा भी कई सिद्धियां है। शरीर में भूख प्यास आदि वेगों का न होना,  बहुत दूर की वस्तु देख लेना और बहुत दूर की बात सुन लेना, मन के साथ ही शरीर का उस स्थान पर पहुंच जाना,  जो इच्छा हो वही रुप बना लेना, दूसरे शरीर में प्रवेश करना, जब इच्छा हो तभी शरीर छोड़ना, अप्सराओं के साथ होने वाली देव क्रीड़ा का दर्शन, संकल्प सिद्धि,  सब जगह सबके द्वारा बि...

बलराम जी ने किससे जुआ खेला ?

रुक्मी ने अपनी बहन रूक्मिणी को प्रसन्न करने के लिए, अपनी पौत्री रोचना का विवाह रुक्मिणी जी के पौत्र यानि अपने नाती (दौहित्र) अनिरूद्ध के साथ कर दिया।  इनका विवाहोत्सव समाप्त हो गया, तब कलिंग नरेश आदि घमंडी नरपतियों ने रुक्मी से कहा कि "तुम बलराम जी को पासों के खेल में जीत लो। रुक्मी ने बलराम जी को चौसर खेलने बुलाया और खेल शुरु हुआ। बलराम जी ने पहले 100,1000 और 10,000 मुहरों का दांव लगाया जिसे रुक्मी ने जीत लिया।  तब कलिंग नरेश जोर जोर से हँसने लगे जिससे बलराम जी ने 10 करोड़ मुहरों का दांव रखा। दोनों बार बलराम जी की जीत हुई पर छल करके कहा मेरी जीत हुई ।  उस समय आकाशवाणी ने कहा "यदि धर्म पूर्वक कहा जाय, तो बलराम जी ने ही यह दांव जीता है।  फिर भी रुक्मी और उसके साथीयों ने बलराम जी का मज़ाक उड़ाया जिससे क्रोध में आकर बलराम जी ने मुग्दल उठाया और रुक्मी को मार डाला। उसके बाद कलिंग नरेश के दांत तोड़ दिये। 

कृष्ण जी की बेटी का क्या नाम था ?

रूक्मिणी और श्री कृष्ण जी के 10 बेटे और एक बेटी थी। उनकी बेटी का नाम "चारुमती " था। चारुमती का विवाह कृतवर्मा के पुत्र बली से हुआ था। 

बाणासुर कौन था ?

राजा बलि के 100 पुत्र थे जिसमें सबसे बड़ा था बाणासुर ,जो शिव जी का भक्त था। बाणासुर शोणितपुर में राज करता था। उसकी हजार भुजाएं (हाथ) थी। बाणासुर का वरदान  बाणासुर ने अपने हजार हाथों से अनेकों प्रकार के बाजे बजाकर भगवान शिव को प्रसन्न किया। तब भगवान शिव ने उसे वरदान मांगने को कहा "आप मेरे नगर की रक्षा करते हुए यहीं रह जाय।" यही वरदान बाणासुर ने माँगा। एक दिन बल के घमंड में बाणासुर आपने मुझे ये भुजाएं दी, लेकिन वे मेरे लिए केवल भाररूप हो रही है, क्योंकि त्रिलोकी में आपको छोड़कर मुझे अपनी बराबरी का कोई वीर योद्धा ही नहीं मिलता, जो मुझसे लड़ सकें। बाणासुर की यह प्रार्थना सुनकर महादेव ने क्रोधित होकर कहा - जिस दिन तेरी ध्वजा टूटकर गिरेगी मेरे ही समान योद्धा से तेरा युद्ध होगा और वह युद्ध तेरा घमंड चूर कर देगा। बाणासुर की बेटी और अनिरुद्ध का विवाह  बाणासुर की एक बेटी थी, उसका नाम ऊषा था। उसका विवाह नहीं हुआ था। एक दिन स्वप्न उसने देखा कि "परम सुंदर अनिरुद्ध जी के साथ मेरा समागम हो रहा है। जबकि उसने अनिरुद्ध जी को कभी देखा नहीं था। बाणासुर का एक कुम्भाण्ड  नामक  मंत्री था,...

भस्मासुर के जैसा वरदान और किस असुर को मिला था ?

नारद जी का उपदेश पाकर वृकासुर केदारक्षेत्र में गया और अग्नि को भगवान शंकर का मुख जानकर अपने शरीर का मांस काट काटकर उसमें हवन करने लगा। इस प्रकार छः दिन तक उपासना करने पर भी जब उसे भगवान शंकर के दर्शन न हुए, तब उसे बड़ा दुःख हुआ।  सातवें दिन केदार तीर्थ में स्नान करके अपने भीगे बाल वाले मस्तक को कुल्हाड़ी से काटकर हवन करना चाहा, तभी भगवान शंकर ने आकर वृकासुर का हाथ पकड़ लिया और गला काटने से रोक दिया। शंकर जी के छूने से वृकासुर के सभी अंग पुर्ण हो गए। वृकासुर ने भगवान शंकर से वरदान मांगा " मैं जिसके सिर पर हाथ रख दूं वो वहीं मर जाय"।  शंकर जी ने वृकासुर को यहीं वरदान दे दिया ,पर वरदान मिलते ही वृकासुर ने सोचा, अगर मैं शंकर जी के सिर पर ही अपना हाथ रख दूं तो उनकी मृत्यु हो जायेगी और मैं पार्वती से विवाह कर लूंगा।  यही सोचकर वो शंकर जी के पिछे दौड़ा,तब शंकर जी ने एक साधु का भेष धारण किया और वृकासुर से सारी बात पूछ ली, फिर कहा की वो शंकर तो झूठा है, वो तो दक्ष प्रजापति के श्राप से पिचाश हो गया है, वो क्या किसी को वरदान देगा। उसने झूठ बोला होगा।  तू एक बार अपने सिर पर हाथ...

शुक्राचार्य की बेटी ने किसे श्राप दिया ?

ब्रहस्पति जी के पुत्र कच शुक्राचार्य से मृत संजीवनी विद्या पढ़ते थे। अध्ययन समाप्त करके जब वह अपने घर जानें लगे ,तो देवयानी ने (शुक्राचार्य की बेटी) उनसे शादी करने की बात कही,परंतु गुरुपुत्री होने के कारण कच ने उसका प्रस्ताव स्वीकार नहीं किया। इस पर देवयानी ने उसे श्राप दे दिया कि "तुम्हारी पढ़ी हुई विद्या निष्फल हो जाय"।  कच ने भी देवयानी को श्राप दिया कि "कोई ब्राह्मण तुम्हें पत्नी रुप में स्वीकार न करेगा"।

श्री कृष्ण के कई विवाह कैसे हुए ?

(१) मित्रविंदा  - अवंती (उज्जैन) देश के राजा थे विंद और अनुविंद। वे दुर्योधन के अनुयायी थे। उनकी बहन का नाम मित्रविंदा था, जिसने स्वयंवर में भगवान कृष्ण को अपने पति के रूप में चुना। लेकिन विंद और अनुविंद ने अपनी बहन को रोक दिया।  मित्रविंदा श्री कृष्ण की बुआ राजाधिदेवी की पुत्री थी। श्री कृष्ण मित्रविंदा को (उनकी इच्छा से) बल पूर्वक हर ले गये। (२) लक्ष्मणा  - मद्रदेश के राजा की पुत्री थी लक्ष्मणा। वह अत्यंत सुंदर थी। श्री कृष्ण ने स्वयंवर में अकेले ही उसे हर लिया था।  (३) कालिंदी  - सूर्य देव की पुत्री थी कालिंदी। कालिंदी ने यमुना किनारे भगवान विष्णु को पति रूप में प्राप्त करने के लिए कठोर तपस्या की।  भगवान सूर्य ने कालिंदी के लिए यमुना जल में एक भवन बनवाया जिसमें वे रहती थी। ये सारी बातें जब अर्जुन ने श्री कृष्ण जी को बतायी तब कृष्ण जी ने कालिंदी को अपने रथ पर बैठाया और युधिष्ठिर के पास गये,फिर उनसे विवाह कर लिया। (४) रुक्मिणी - रुक्मिणी जी का विवाह, उनके भाई रुक्मी शिशुपाल के साथ करना चाहते थे। लेकिन रुक्मिणी जी श्री कृष्ण से प्रेम करती थी और उन्हीं से ...

भारत में प्रथम

1*प्रथम बाल कलाकार लड़का - बालकदास  * 2*भारत के प्रथम प्रधानमंत्री - पंडित जवाहरलाल लाल 3*भारत के प्रथम राष्ट्रपति - डॉ राजेंद्र प्रसाद 4*भारत के प्रथम नोबेल पुरस्कार विजेता - रविन्द्रनाथ टैगोर 5*भारत के प्रथम रेमन मैग्सेसे पुरस्कार - आचार्य विनोबा भावे। 6*भारत के प्रथम आई सी एस - सत्येन्द्रनाथ टैगोर। 7*भारत के प्रथम अंतरिक्ष यात्री - स्कॉड्रन नेता राकेश शर्मा। 8*भारत के प्रथम  इंग्लिश चैनल को तैराकी पर आधारित करने वाला - मिहिर सेन 9*भारत के प्रथम  थल सेना के सेनापति - के एम करिअप्पा। 10*भारत के प्रथम फील्ड मार्शल - एस एच एफ जे मानेक शॉ। 11*भारत के प्रथम उपाध्यक्ष - डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन। 12*भारत का प्रथम आण्विक भूमिगत परीक्षण - पोखरण (18 मई,1974)। 13*भारत के प्रथम परिचयात्मक शिशु - 1986 में जन्मी बेबी हर्षा। 14*भारत के प्रथम  स्वदेशी प्रक्षेपास्त्र - पृथ्वी 1988। 15*भारत के प्रथम  उत्तरा अभियान - 1982 में डॉ. एस. जेड. कासिग के नेतृत्व में 16*भारत की प्रथम पंचायती राज्य व्यवस्था लागू की गई - राजस्थान । 17*भारत दूरदर्शन पर प्रथम रंगीन कार्यक्रम - 15 अगस्त, 19...

भारत में प्रथम महिला

1*  भारत में प्रथम महिला मुख्यमंत्री  का नाम - सुचेता कृपलानी , (उत्तर प्रदेश),1963 2* भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की प्रथम  महिला भारतीय अध्यक्ष  का नाम - सरोजिनी नायडू 3* भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की  प्रथम महिला अध्यक्ष  का नाम - एनी बेसेंट ,1917 4* भारत में प्रथम महिला राजस्व सचिव  का नाम - विनिता राय 5* भारत में प्रथम महिला राज्यपाल  का नाम - सरोजिनी नायडू (उत्तर प्रदेश)  6* भारत में प्रथम महिला लोकसभा अध्यक्ष  (स्पीकर) का नाम - मीरा कुमार,2009 7* भारत में प्रथम महिला मुस्लिम शासिका  का नाम - रजिया सुल्तान 8* भारत में प्रथम महिला क्रिकेट टीम कप्तान  का नाम - शांता रंगा स्वामी, कर्नाटक 9* भारत की प्रथम महिला विदेश सचिन  का नाम - चोकिला अय्यर 10* भारत में प्रथम महिला सर्जन का  नाम - डॉ. प्रेमा मुखर्जी 11* भारत की पहली महिला वकील  का नाम - केमिला सोराबजी 12* भारत की पहली महिला केंद्रीय मंत्री  का नाम - राजकुमारी अमृत कौर 13* भारत की पहली महिला मुख्य  न्यायाधीश का नाम - लीला सेठ, (हिमाचल प्रदेश),1991 14*...