सगर और उनके 60, 000 पुत्र

महाराज सगर को 60,000 पुत्रों का वरदान 

राजा सगर की दो रानियां थी सुमति और केशिनी। इन्हें और्व मुनि ने वर दिया था कि आपकी दोनों रानियों में से एक से वंश की वृद्धि करने वाला एक पुत्र और दूसरी से 60,000 पुत्र उत्पन्न होंगे।

इनमें से जिसको जो सही लगे वह उसी वर को ग्रहण कर सकती है।"

उनके ऐसा कहने पर केशिनि ने एक और सुमति ने 60,000 पुत्रों का वर मांगा। महर्षि के आशीर्वाद से केशिनी को असमंजस नामक एक पुत्र हुआ और सुमति को 60,000 पुत्र प्राप्त हुए।


अश्वमेध यज्ञ और सगर के पुत्रों का भस्म होना 

एक बार महाराज सगर ने अश्वमेध यज्ञ शुरु किया। उसमें उनके पुत्रों द्वारा सुरक्षित घोड़े को कोई व्यक्ति चुराकर पाताल में चला गया। 

तब उस घोड़े के खुरों के चिन्हों का अनुसरण करते हुए उनके पुत्रों में से प्रत्येक ने एक - एक योजन पृथ्वी खोद डाली।

पाताल में पहुंचकर उन राजकुमारों ने अपने घोड़े को घूमता हुआ और पास ही ध्यान में बैठे ऋषि कपिल को देखा। 

उन्हें लगा की कपिल मुनि ने ही अश्वमेध यज्ञ का घोड़ा चुराया है और तुरन्त ही वो सभी मारो - मारो करके चिल्लाते हुए कपिल ऋषि की ओर दौड़े, वैसे ही उन्होंने अपनी आंखे खोल दी और उनके तपोबल से सभी 60,000 भाई जलकर भस्म हो गये।


अश्वमेध यज्ञ के घोड़े की वापसी और सगर पुत्रों की मुक्ति का उपाय 

जब महाराज सगर को ये पता चला तब उन्होंने असमंजस के पुत्र अंशुमन को घोड़ा लाने के लिए भेजा। अंशुमन सगर के पुत्रों द्वारा खोदे गए रास्ते से कपिल ऋषि के पास पहुंचे और विनम्रता से घोड़ा ले जाने की आज्ञा मांगी।

अंशुमन की विनम्रता से खुश होकर कपिल ऋषि ने घोड़ा लौटा दिया और अंशुमन को कोई भी वरदान मांगने को कहा।

तब अंशुमन ने वर मांगा " ब्रह्मदंड से आहत होकर मरे मेरे पितृगण को स्वर्ग प्राप्ति कराने वाला वर मुझे दे।"

तब कपिल ऋषि ने कहा "तेरा पौत्र गंगा जी को पृथ्वी पर लायेगा और उसके जल से स्पर्श होते ही ये सब स्वर्ग को चले जायेंगे"


कपिल ऋषि द्वारा गंगा का महत्व 

भगवान विष्णु के चरण नख से निकले हुए उस जल का ऐसा महात्म्य है कि वह कामना पूर्वक केवल स्नानादि कार्यों में भी उपयोगी हो, ऐसा नहीं , बल्कि बिना कामना के मृतक पुरुष अस्थि, चर्म, स्नायु अथवा केश आदि का स्पर्श हो जाने से या उसके शरीर का कोई अंग गिरने से भी वह देहधारी को तुरन्त स्वर्ग में ले जाता है। 

भगवान कपिल के ऐसा कहने पर अंशुमन घोड़ा लेकर वापस लौट आया और यज्ञ संपन्न हुआ। 

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