बाणासुर कौन था ?
राजा बलि के 100 पुत्र थे जिसमें सबसे बड़ा था बाणासुर ,जो शिव जी का भक्त था। बाणासुर शोणितपुर में राज करता था। उसकी हजार भुजाएं (हाथ) थी।
बाणासुर का वरदान
बाणासुर ने अपने हजार हाथों से अनेकों प्रकार के बाजे बजाकर भगवान शिव को प्रसन्न किया। तब भगवान शिव ने उसे वरदान मांगने को कहा "आप मेरे नगर की रक्षा करते हुए यहीं रह जाय।" यही वरदान बाणासुर ने माँगा।
एक दिन बल के घमंड में बाणासुर आपने मुझे ये भुजाएं दी, लेकिन वे मेरे लिए केवल भाररूप हो रही है, क्योंकि त्रिलोकी में आपको छोड़कर मुझे अपनी बराबरी का कोई वीर योद्धा ही नहीं मिलता, जो मुझसे लड़ सकें।
बाणासुर की यह प्रार्थना सुनकर महादेव ने क्रोधित होकर कहा - जिस दिन तेरी ध्वजा टूटकर गिरेगी मेरे ही समान योद्धा से तेरा युद्ध होगा और वह युद्ध तेरा घमंड चूर कर देगा।
बाणासुर की बेटी और अनिरुद्ध का विवाह
बाणासुर की एक बेटी थी, उसका नाम ऊषा था। उसका विवाह नहीं हुआ था। एक दिन स्वप्न उसने देखा कि "परम सुंदर अनिरुद्ध जी के साथ मेरा समागम हो रहा है।
जबकि उसने अनिरुद्ध जी को कभी देखा नहीं था। बाणासुर का एक कुम्भाण्ड नामक मंत्री था, जिसकी बेटी का नाम चित्रलेखा था।
ऊषा और चित्रलेखा बहुत अच्छी सहेलियां थी। चित्रलेखा योगिनी थी। ऊषा ने अपने सपने के बारे में बताया, तब चित्रलेखा ने बहुत सारे देवता, गन्धर्व , कृष्ण जी,प्रद्युम्न और अनिरुद्ध जी का चित्र बनाया। ऊषा ने सपने में अनिरुद्ध को देखा था और उन्हें पहचान लिया।
जब चित्रलेखा को पता चला कि वो श्री कृष्ण के पोते है। अपनी योगसिद्धि के प्रभाव से द्वारिकापुरी से अनिरूद्ध को रात में पलंग पर सोते हुए ही शोणितपुर ले आयी।
4 महिनों तक अनिरूद्ध वहां रहे। जब ये सब बाणासुर को पता चला।
तब बाणासुर और श्री कृष्ण के बीच युद्ध हुआ, तब श्री कृष्ण ने ब्रह्मास्त्र की शांति के लिए ब्रह्मास्त्र का प्रयोग किया,वायव्यास्त्र के लिए पर्वतास्त्र का, आग्नेयास्त्र के लिए पर्जन्यास्त्र का और पशुपतास्त्र के लिए नारायणास्त्र का प्रयोग किया।
इसके बाद भगवान श्रीकृष्ण ने जृम्भणास्त्र को (जिससे मनुष्य को लगातार जंभाई आने लगती है।) महादेव पर चला दिया, जिससे उन्हें जंभाई आने लगी।
अंत में श्री कृष्ण ने बाणासुर को हरा दिया और अनिरुद्ध और ऊषा का विवाह हो गया।
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