कर्मदेवी
मेवाड़ के राजा समरसिंह की पत्नी पृथा अपने पति के साथ सती हो गयी थी और उनकी दूसरी पत्नी कर्मदेवी नाबालिक पुत्र कर्ण की संरक्षिका बनकर राज काज संभाल रही थी।
उसी समय मुहम्मद गोरी के सेनापति कुतुबुद्दीन ने अपनी विशाल सेना लेकर मेवाड़ पर आक्रमण कर दिया। उस समय उसकी शक्ति को रोकने की क्षमता किसी में नहीं थी,राजपूत चिंतित हो गये।
तब राजपूत सरदार ने कहा कि हम युद्ध में अपने प्राण न्यौछावर करने के लिए तैयार हैं पर हमारा नेतृत्व कौन करेगा।
तब राजमाता कर्मदेवी ने उत्तर दिया "उनकी वीर पत्नी अभी जीवित है।"
इसके बाद एक भयंकर युद्ध हुआ, जिसमें कुतुबुद्दीन की हार हुई। रानी ने मेवाड़ पर आँच नहीं आने दी।
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