कालयवन कौन था ?
कालयवन का जन्म
एक बार महर्षि गार्ग्य को उनके साले ने यादवों की गोष्ठी में नपुंसक कह दिया। उस समय यदुवंशी हँस पड़े।
तब महर्षि गार्ग्य ने बहुत गुस्से में दक्षिण समुद्र के तट पर जा कर , यादव सेना को भयभीत करने वाले पुत्र की प्राप्ति के लिए तपस्या की।
उन्होंने महादेव जी की उपासना केवल लोहे की चूर्ण खाकर किया, तब भगवान शंकर ने 12 वें वर्ष में खुश होकर उन्हें वरदान दिया।
एक पुत्रहीन यवनराज ने महर्षि गार्ग्य की अत्यंत सेवाकर उन्हें संतुष्ट किया, उसकी स्त्री के संग से ही इनके एक कृष्ण वर्ण बालक हुआ।
वह यवनराज उस कालयवन नामक बालक को, जिसका वक्ष स्थल वज्र के समान कठोर था ,अपने राज्य पद दे दिया और स्वयं वन चले गए।
नारद जी और कालयवन
कालयवन ने नारद जी से पूछा पृथ्वी पर बलवान राजा कौन - कौन से है ?
इस पर नारद जी ने उसे यादवों को ही सबसे अधिक बलशाली बताया। यह सुनकर कालयवन ने हजारों हाथी, घोड़े और रथों सहित सहस्त्रों करोड़ सेनाओं को लेकर मथुरा पुरी आ गया।
जरासंध और कालयवन का कृष्ण जी से युद्ध
एक तरफ जरासंध का आक्रमण और दूसरी ओर कालयवन की चढ़ाई।
श्री कृष्ण ने सोचा "यवनों के साथ युद्ध करने से क्षीण हुई यादव सेना अवश्य ही मगध नरेश से हार जायेगी और अगर पहले मगध नरेश से लड़ते हैं तो उससे क्षीण हुई यादव सेना को कालयवन नष्ट कर देगा।
इसलिए श्री कृष्ण ने यादवों के लिए एक ऐसा दुर्जन दुर्ग तैयार कराया जिसमें बैठकर यादव क्या स्त्रियां भी युद्ध कर सकेंगी।
तब श्री कृष्ण ने समुद्र से 12 योजन भूमि मांगी और उसमें द्वारकापुरी का निर्माण करवाया।
कालयवन का अंत
कालयवन के मथुरा के नजदीक आ जानें पर श्री कृष्ण ने सभी मथुरा वासियों को द्वारका में ले आए और स्वयं मथुरा लौट गए।
जब कालयवन की सेना ने मथुरा को घेर लिया तो कृष्ण जी बिना शस्त्र लिये मथुरा से बाहर चले आये , पर कालयवन ने उन्हें देख लिया और कृष्ण के पिछे दौड़ने लगा। भागते - भागते श्री कृष्ण एक गुफा में घूस गए जहां राजा मुचुकुंद सो रहे थे।
कालयवन भी वहां गया और सोए हुए मुचुकुंद जी को कृष्ण समझकर लात मारी। लात मारने के कारण मुचुकुंद जी नींद से जाग गये और कालयवन की ओर देखा, उनके देखते ही कालयवन जलकर भष्म हो गया।
मुचुकुंद से गार्ग्य मुनि ने कहा था कि 28 वें युग में द्वापर के अंत में यदुकुल में श्री हरि का जन्म होगा और तब वे आपसे मिलेंगे।
मुचुकुंद कौन थे ?
एक बार देव और असुरों में युद्ध हुआ था, जिसमें देवताओं की मुचुकुंद जी ने मदद की थी। यह युद्ध काफी समय तक चलता रहा, फिर जब देवताओं को कार्तिकेय जी सेनापति के रुप में मिल गये।
तब देवताओं ने मुचुकुंद जी को धरती पर वापस जानें की आज्ञा दी और यह भी बताया कि जितनी देर वे देवासुर संग्राम में रहे, उतने समय में पृथ्वी लोक पर कई युग बीत गए और उनका राज्य, परिवार, माता पिता, पत्नी, पुत्र आदि सभी का अंत हो चुका है।
ये सारी बातें बता कर देवताओं ने मुचुकुंद जी से कहा - कि मोक्ष के अलावा आप जो चाहें हमसे माँग सकते है, बहुत थके होने के कारण मुचुकुंद जी ने केवल निद्रा का ही वर माँगा।
तब देवताओं ने उन्हें एक गुफा में भेज दिया और कहा की यदि कोई मूर्ख आपको सोते समय जगा देगा तो आपकी दृष्टि पड़ते ही वह भस्म हो जाएगा।
कालयवन ने ही मुचुकुंद को जगाया, जिसके कारण वे भस्म हो गया।
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