श्री कृष्ण ने काशी को क्यों जलाकर भस्म कर दिया ?

पौंड्रक और श्री कृष्ण का युद्ध 

करूष नामक राज्य में पौंड्रक नाम का एक राजा था, जो दिखने में श्री कृष्ण की तरह था और इस बात का उसे बहुत अभिमान था। वह ख़ुद तो श्री कृष्ण कि तरह चार हाथ रखता और उनमें शंख, चक्र, गदा आदि धारण करता था और श्री कृष्ण को बहरूपिया व खुद को भगवान कहता। 

एक बार उसने श्री कृष्ण को संदेश भेजा की वह उसकी शरण में आ जाए और उसे भगवान मान ले, वरना मैं (पौंड्रक) तुम्हारे ऊपर सुदर्शन चक्र छोड़ दूंगा। 

काशी के राजा पौंड्रक के मित्र थे,जिनके पास पौंड्रक उस समय रह रहा था। संदेश मिलते ही श्री कृष्ण ने काशी पर चढ़ाई कर दी। 

युद्ध के दौरान श्री कृष्ण ने अपने चक्र से पौंड्रक का सर धड़ से अलग कर दिया।

फिर काशी नरेश ने पौंड्रक की तरफ से युद्ध किया। श्री कृष्ण ने उसका भी सर धड़ से अलग कर दिया, जो काशी के राजमहल के दरवाजे पर जाकर गिरा।


 श्री कृष्ण को मारने के लिए शिव जी से वरदान प्राप्ति 

काशी नरेश के पुत्र ने भगवान शंकर को प्रसन्न करने के लिए उनकी आराधना की और शिव जी से अपने पिता के हत्या करने वाले को मारने का वर मांगा।

तब शिव जी ने उन्हें कहा कि तुम ब्राह्मपो के साथ मिलकर यज्ञ के देवता ऋत्विग्भूत दक्षिणाग्नि की अभिचार विधि से आराधना करो। इससे वह अग्नि प्रथम गणों के साथ प्रकट होंगे,यदि ब्राह्मणों के अभक्त पर इसका प्रयोग करोगे तो वह तुम्हारा संकल्प सिद्ध करेगा।


उसने ऐसा ही किया और वह भगवान श्री कृष्ण के लिए अभिचार (मारण का पुश्चरण) करने लगा। अभिचार पूरा होते ही यज्ञकुंड से अति भीषण अग्नि मानव होकर प्रकट हुआ। जो द्वारका की ओर दौड़ा और उसके बहुत से भूत भी थे। फिर श्री कृष्ण ने सुदर्शन चक्र से उस आग को नष्ट कर दिया और वह आग काशी लौट गई और उसने आचार्यों के सुदक्षिण को जलाकर भस्म कर दिया। 


काशी की बड़ी बड़ी अटारियों, सभा भवन, बाजार नगर द्वार, द्वारों के शिखर, चहारदीवारियों, खजाने, हाथी, घोड़े, रथ और अन्नों के गोदाम आदि को श्री कृष्ण के सुदर्शन ने भस्म कर दिया और वापस श्री कृष्ण के पास लौट आया।

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