शाल्व को सौभ नाम का विमान कैसे मिला ?

रुक्मिणी जी का विवाह शिशुपाल से होना निश्चित हुआ था, लेकिन रुक्मिणी जी कृष्ण जी से विवाह करना चाहती थी इसलिए कृष्ण जी ने रुक्मिणी जी का हरण कर लिया।

इसके बाद सभी में युद्ध हुआ जिसमें कृष्ण जी ने शिशुपाल और उसके मित्र शाल्व को हरा दिया,तब शाल्व ने प्रतिज्ञा ली थी कि- 

"मैं पृथ्वी से यदुवंशियों को मिटा कर छोडूंगा सब लोग मेरा बल पौरुष देखना।"

अपनी इसी प्रतिज्ञा को पूरा करने के लिए शाल्व ने भगवान पशुपति की आराधना शुरु की। वह उन दिनों ,दिन में केवल एक बार मुट्ठीभर राख फांक लिया करता था। एक वर्ष के बाद शिव जी प्रसन्न हुए। 

तब शाल्व ने शिव जी से वरदान मांगा की मुझे ऐसा विमान दिजिये जो देवता, असुर, मनुष्य, गन्धर्व, नाग और राक्षसों से तोड़ा न जा सके, जहां इच्छा हो, वहीं चला जाय और यदुवंशियों के लिए अत्यंत भयंकर हो।

इसके बाद शिव जी के कहने पर मय दानव ने लोहे का सौभ नामक विमान बना कर शाल्व को दिया।

सौभ विमान एक नगर के समान था। वह इतना अंधकारमय था कि उसे देखना या पकड़ना अत्यंत कठिन था। चलाने वाला उसे जहां ले जाना चाहता, वहीं वह उसके इच्छा करते ही चला जाता था। 

शाल्व ने वह विमान प्राप्त करके द्वारका पर चढ़ाई कर दी, क्योंकि वह वृष्णिवंशी यादवों द्वारा किए हुए वैर को सदा स्मरण रखता था।

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