दुर्वासा ऋषि ने देवराज इन्द्र को क्या श्राप दिया ?
विष्णु पुराण के अनुसार एक बार शंकर जी के अंशावतार श्री दुर्वासा जी पृथ्वी पर घूम रहे थे,घूमते - घूमते उन्होंने एक विद्याधरी के हाथों में संतानक पुष्पों की एक दिव्य माला देखी।
उन्होंने वो माला उस सुंदरी से मांग ली और पहन ली। तभी उन्होंने देवताओं के राजा इन्द्र को ऐरावत पर आते देखा और उस माला को दुर्वासा ऋषि ने इंद्र को दे दिया। देवराज ने उसे लेकर ऐरावत हाथी के सिर पर डाल दिया और ऐरावत ने उस माला को पृथ्वी पर फेंक दिया ।
ये देखकर दुर्वासा ऋषि ने क्रोध में उन्हें श्राप दे दिया कि "जिस ऐश्वर्य और पद के घमंड में तूने मेरी भेंट का अपमान किया है। तेरी उस त्रिलोकी का वैभव नष्ट हो जायेगा, तेरा ये त्रिभुवन भी श्रीहीन हो जायेगा।"
फिर इंद्र ने दुर्वासा ऋषि से क्षमा मांगी लेकिन उन्होंने क्षमा नहीं किया।
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