सिद्धियां कितनी होती है ?

श्री भागवत महापुराण में श्री कृष्ण ने उद्धव जी को बताया कि योगियों ने 18 प्रकार की सिद्धियां बतायी है। जिनमें 8 सिद्धियां तो मुझमें (श्री कृष्ण) ही रहती है।

दूसरों में कम और दस सत्त्वगुण के विकास से ही मिल जाती है। 

उनमें तीन सिद्धियां तो शरीर की है - अणिमा, महिमा और लघिमा।

इंद्रियों की एक सिद्धि है प्राप्ति।

लौकिक और पारलौकिक पदार्थों का इच्छानुसार अनुभव करने वाली सिद्धि है प्राकाम्य 

माया और उसके कार्यों को इच्छानुसार संचालित करना इशिता नाम की सिद्धि है 

विषयों में रहकर भी आसक्त न होना वशिता है। 

और जिस सुख की कामना करे, उसकी सीमा तक पहुंच जाना कामावसायिता नाम की आठवीं सिद्धि है

अन्य सिद्धियां 

इसके अलावा भी कई सिद्धियां है। शरीर में भूख प्यास आदि वेगों का न होना,

 बहुत दूर की वस्तु देख लेना और बहुत दूर की बात सुन लेना,

मन के साथ ही शरीर का उस स्थान पर पहुंच जाना,

 जो इच्छा हो वही रुप बना लेना,

दूसरे शरीर में प्रवेश करना,

जब इच्छा हो तभी शरीर छोड़ना, अप्सराओं के साथ होने वाली देव क्रीड़ा का दर्शन,

संकल्प सिद्धि, 

सब जगह सबके द्वारा बिना ननु नच के आज्ञापालन - ये दस सिद्धियां सत्त्वगुण के विशेष विकास से होती है। 

 

भूत, भविष्य और वर्तमान की बात जान लेना, 

शीत उष्ण,

सुख दुःख और राग द्वेष आदि द्वंद्वों के वश में न होना,

दूसरे के मन आदि की बात जान लेना, 

अग्नि सूर्य जल विष आदि की शक्ति को स्तंभित कर देना और किसी से भी पराचित न होना - ये पांच सिद्धियां भी योगियों को प्राप्त होती है। 

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