भस्मासुर के जैसा वरदान और किस असुर को मिला था ?
नारद जी का उपदेश पाकर वृकासुर केदारक्षेत्र में गया और अग्नि को भगवान शंकर का मुख जानकर अपने शरीर का मांस काट काटकर उसमें हवन करने लगा।
इस प्रकार छः दिन तक उपासना करने पर भी जब उसे भगवान शंकर के दर्शन न हुए, तब उसे बड़ा दुःख हुआ।
सातवें दिन केदार तीर्थ में स्नान करके अपने भीगे बाल वाले मस्तक को कुल्हाड़ी से काटकर हवन करना चाहा, तभी भगवान शंकर ने आकर वृकासुर का हाथ पकड़ लिया और गला काटने से रोक दिया। शंकर जी के छूने से वृकासुर के सभी अंग पुर्ण हो गए।
वृकासुर ने भगवान शंकर से वरदान मांगा " मैं जिसके सिर पर हाथ रख दूं वो वहीं मर जाय"।
शंकर जी ने वृकासुर को यहीं वरदान दे दिया ,पर वरदान मिलते ही वृकासुर ने सोचा, अगर मैं शंकर जी के सिर पर ही अपना हाथ रख दूं तो उनकी मृत्यु हो जायेगी और मैं पार्वती से विवाह कर लूंगा।
यही सोचकर वो शंकर जी के पिछे दौड़ा,तब शंकर जी ने एक साधु का भेष धारण किया और वृकासुर से सारी बात पूछ ली, फिर कहा की वो शंकर तो झूठा है, वो तो दक्ष प्रजापति के श्राप से पिचाश हो गया है, वो क्या किसी को वरदान देगा। उसने झूठ बोला होगा।
तू एक बार अपने सिर पर हाथ रखकर देख ले की वरदान सच भी है या नहीं।
वृकासुर शंकर जी की बातों से इतना सम्मोहित हो गया की उसने अपने ही सिर पर हाथ रख दिया और उसके सिर के टुकड़े हो गए।
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