बलराम जी ने किससे जुआ खेला ?

रुक्मी ने अपनी बहन रूक्मिणी को प्रसन्न करने के लिए, अपनी पौत्री रोचना का विवाह रुक्मिणी जी के पौत्र यानि अपने नाती (दौहित्र) अनिरूद्ध के साथ कर दिया। 

इनका विवाहोत्सव समाप्त हो गया, तब कलिंग नरेश आदि घमंडी नरपतियों ने रुक्मी से कहा कि "तुम बलराम जी को पासों के खेल में जीत लो।

रुक्मी ने बलराम जी को चौसर खेलने बुलाया और खेल शुरु हुआ। बलराम जी ने पहले 100,1000 और 10,000 मुहरों का दांव लगाया जिसे रुक्मी ने जीत लिया। 

तब कलिंग नरेश जोर जोर से हँसने लगे जिससे बलराम जी ने 10 करोड़ मुहरों का दांव रखा। दोनों बार बलराम जी की जीत हुई पर छल करके कहा मेरी जीत हुई । 

उस समय आकाशवाणी ने कहा "यदि धर्म पूर्वक कहा जाय, तो बलराम जी ने ही यह दांव जीता है। 

फिर भी रुक्मी और उसके साथीयों ने बलराम जी का मज़ाक उड़ाया जिससे क्रोध में आकर बलराम जी ने मुग्दल उठाया और रुक्मी को मार डाला। उसके बाद कलिंग नरेश के दांत तोड़ दिये। 

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