महाराज सगर ने किन राजाओं से प्रतिशोध लिया ?
💠इक्ष्वाकु वंशीय राजा बाहु की पत्नी ने एक बालक को जन्म दिया। और्व मुनि ने उसका नाम सगर रखा और उसे वेद, शास्त्र एवं भार्गव नामक आग्नेय शस्त्रों की शिक्षा दी।
💠थोड़ा बड़ा होने पर सगर ने अपने माँ से पूछा कि हम वन में क्यों रहते है ?
💠तब सगर की माँ ने सारी बात उन्हें बतायी। तब सगर ने हैहय और तालजंघ वंशीय राजाओं को नष्ट कर दिया।
💠उसके बाद शक, यवन, कांबोज, पारद और पहल्वगण भी हताहत होकर सगर के कुलगुरु वशिष्ठ के पास गयें।
💠वशिष्ठ जी ने अपनी शक्ति से उन सभी को जीवन्मृत (जीते हुए ही मरे के समान ) कर दिया। जब सगर उनके पीछे वशिष्ठ जी के आश्रम में पहुँचे।
💠तब वशिष्ठ जी ने कहा कि जीते जी मरे के पीछे जाने का क्या लाभ। राजा ने जो आज्ञा कहकर गुरुजी की बात मानी।
💠जीवन्मृत होने के कारण सगर ने उनके वेश बदलवा दिये।
उन्होंने यवनों के सिर मुड़वा दिये,
शकों को अर्द्धमुंडित कर दिया,
पारदों के लंबे - लंबे केश कटवा दिए, पहल्वो के मूंछ दाढ़ी रखवा दी तथा इनको और इनके समान बहुत से क्षत्रियों को भी स्वाध्याय वषट्कारादि से बहिष्कृत कर दिया।
💠तब महाराज सगर अपनी राजधानी में आकर इस संपूर्ण सप्तद्वीपवती पृथ्वी का शासन करने लगे।
राजा सगर अपने 60,000 पुत्रों के द्वारा खोदे गए इस सागर को महाराज ने स्नेहवश अपना पुत्र माना।
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