विश्वामित्र और ऋषि जमदग्नि में क्या रिश्ता है ?

💠 चंद्रवंशीय राजा गाधि की पुत्री का नाम सत्यवती था। उनका विवाह भृगु ऋषि के पुत्र ऋचीक से हुआ था।


💠एक बार ऋचीक ने संतान की कामना से सत्यवती के लिए चरु (यज्ञीय खीर) तैयार किया और पुत्र की उत्पत्ति के लिए चरु सत्यवती की माता के लिए भी बनाया। 

💠फिर अपनी पत्नी से बताया कि यह चरु तुम्हारे लिए है और यह तुम्हारी माता के लिए इसका सही प्रकार से उपयोग करना। ऐसा कहकर वे वन चले गये। 


💠उनके जाने के बाद सत्यवती की माता ने कहा कि तू अपना चरु मुझे दे दे और मेरा तू ले ले। सत्यवती ने ऐसा ही किया।


💠वन से वापस लौटने पर ऋषि को पता चला कि सत्यवती ने अपना चरु अपनी माँ को दे दिया। 

💠तब उन्होंने क्रोधित होकर अपनी पत्नी से कहा कि मैंने माता के चरु में संपूर्ण ऐश्वर्य, पराक्रम, शूरता और बल की संपत्ति का आरोपण किया था और तुम्हारे चरु में शांति, ज्ञान, तितिक्षा आदि संपूर्ण ब्राह्मणोचित गुणों का समावेश किया था। 


💠इसका विपरीत उपयोग करने से तुम्हारा बहुत भयानक अस्त्र शस्त्रधारी क्षत्रिय के समान आचरण वाला पुत्र होगा और तुम्हारी माता को शांतिप्रिय ब्राह्मणाचारयुक्त पुत्र होगा।


💠तब सत्यवती ने अपने पति से माफ़ी मांगी और कुछ ऐसा करने को कहा जिससे उनका पुत्र ऐसा न हो भले ही पौत्र ऐसा हो जाए।

💠तब सत्यवती ने जमदग्नि को जन्म दिया और उनकी माता ने विश्वामित्र को तथा सत्यवती कौशिकी नाम की नदी हो गयी। 


💠जमदग्नि ने इक्ष्वाकु कुल रेणू की कन्या रेणुका से विवाह किया, जिससे परशुराम जी का जन्म हुआ। जो भगवान नारायण के अंश थे।

💠देवताओं ने विश्वामित्र जी को भृगुवंशी शुन:शेप पुत्र रूप से दिया था। बाद में उनके एक देवरात नामक एक पुत्र हुआ और फिर मधुच्छन्द, धनञ्जय, कृतदेव, अष्टक, कच्छप और हारीतक नामक और भी पुत्र हुए, जहां अन्य ऋषि वंशों में विवाह हुआ और कौशिक गोत्रिय हुए।

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