डॉ. सत्येंद्र नाथ बोस - 3
सत्येंद्र नाथ बोस , मैडम क्यूरी और अल्बर्ट आइंस्टाइन
सन् 1920 में क्वांटम मैकेनिक्स के क्षेत्र में बोस - आइंस्टाइन को आधार प्रदान करने और "बोस - आइंस्टाइन कांडेंसेट का सिद्धांत " के बाद इनकी तुलना जर्मनी के अल्बर्ट आइंस्टाइन से की जानें लगी। आइंस्टाइन भी इनके प्रतिभा के कायल थे।
1924 में जब बोस ढ़ाका विश्वविद्यालय में रीडर के पद पर थे तब उन्होंने बिना किसी क्लासिकल फिकिक्स के संदर्भ के समतुल्य कणों की दशा गणना के श्रेष्ठ तरीकों का प्रयोग कर "प्लैंक क्वांटम रेडिएशन लॉ" (प्लैंक का नियम' और प्रकाश क्वांटम परिकल्पना) की स्थापना कर शोध पत्र तैयार किया।
यह शोध पत्र तुरन्त ही प्रकाशित होने के लिए स्वीकृत नहीं हुआ, तब बोस ने इस शोध पत्र को आइंस्टाइन के पास जर्मनी भेज दिया।
आइंस्टाइन ने जर्मनी भाषा में इसका अनुवाद कर के बोस की ओर से यह शोध पत्र "zeitschrift fur physik" में प्रकाशन के लिए भेज दिया। जिसके बाद बोस यूरोप की एक्स - रे तथा क्रिस्टिलोग्राफी प्रयोगशालाओं में 2 साल तक काम करने के लिए सक्षम हो गये।
इस दौरान इन्होंने लुइस डि ब्रोगली , मैडम क्यूरी और अल्बर्ट आइंस्टाइन के साथ काम किया।
इस काम के लिए ढ़ाका विश्वविद्यालय ने इन्हें अवकाश दिया।
फ्रांस में एक वर्ष रहकर इन्होंने उनके साथ काम किया और कई प्रसिद्ध वैज्ञानिकों से मिले।
अगले एक वर्ष इन्होंने बर्लिन में रहकर आइंस्टाइन के साथ रहकर काम किया।
सन् 1926 में ढाका विश्वविद्यालय में वापस लौटने के बाद बोस प्रोफ़ेसर बने।
उनके पास शोध में डॉक्टरेट की डिग्री नहीं थी फिर आइंस्टाइन के साथ काम करने के कारण यह पद उनको प्राप्त हुआ।
पहली पुस्तक
मेघनाथ साहा के साथ सत्येंद्र नाथ बोस ने 1919 में आइंस्टाइन को जर्मन में लिखें शोध पत्र " स्पेशल एंड जनरल रिलेटिविटी" के फ्रांसीसी अनुवाद के आधार पर अंग्रेजी में पहली पुस्तक लिखी।
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