किस राजा ने वशिष्ठ जी को नरमांस खाने को दिया और क्यों ?
🍁इक्ष्वाकु वंश के सुदास के पुत्र सौदास मित्रसह थे, जिन्होंने एक दिन मृगया के लिए वन में घूमते - घूमते दो व्याघ्र देखे। इन्होंने संपूर्ण वन को मृगहीन कर दिया, ऐसा समझ उन्होंने उसमें से एक को बाण मार दिया।
🍁मरते समय वह बहुत ही क्रूर राक्षस में बदल गया और दूसरा भी " मैं इसका बदला लूँगा" ऐसा कहकर गायब हो गया।
राक्षस का बदला और ऋषि का श्राप
🍁एक बार सौदास ने एक यज्ञ किया। यज्ञ हो जाने पर जब वशिष्ठ जी बाहर चले गये, तब वह राक्षस वशिष्ठ जी का रूप बनाकर बोला यज्ञ के पूर्ण होने पर मुझे नर मांस युक्त भोजन कराना चाहिए, इसलिए तुम ऐसा अन्न तैयार कराओ, मैं अभी आता हूं।
🍁ऐसा कहकर वो बाहर चले गए। फिर रसोइए का वेश बनाकर राजा की आज्ञा से उसने मनुष्य का मांस पकाकर उसे वशिष्ठ जी के लिए दे दिया।
🍁राजा भी उसे सुवर्ण पात्र में रखकर वशिष्ठ जी के आने की प्रतिक्षा करने लगा और उनके आते ही वह मांस निवेदन कर दिया।
🍁 जब वशिष्ठ जी को पता चला कि उन्हें नरमांस खाने के लिए दिया गया है तब क्रोध में उन्होंने राजा को श्राप दिया कि "तूने जानबूझ कर मुझे नर मांस खाने को दिया इसलिए तू नरभक्षी राक्षस हो जायेगा।"
🍁लेकिन जब राजा ने बताया कि आप ही ने ऐसा करने को कहा था,तब वशिष्ठ जी ने अपनी दिव्य शक्ति से पता किया और राजा से कहा कि तुम केवल 12 वर्षों तक ही नरमांस भोजन करोगे।
🍁वशिष्ठ जी के ऐसा कहने पर राजा सौदास ने भी क्रोध में उन्हें श्राप देने के लिए अंजुली में जल उठा लिया,लेकिन अपनी पत्नी मदयंती ने उन्हें रोक दिया , जिसके बाद उस जल को उसने अपने पैरों पर ही गिरा दिया जिससे राजा के पैर झुलसकर कल्माषवर्ण (चितकबरे) हो गये, तभी से उनका नाम कल्माषपाद हुआ।
राजा का दूसरा श्राप
🍁वशिष्ठ जी के श्राप के तीसरे दिन के अंतिम भाग में वह राक्षस स्वभाव धारण कर वन में घूमते हुए अनेकों मनुष्यों को खाने लगा।
🍁एक दिन उसने एक ब्राह्मण को उसकी पत्नी के साथ संगम के समय ही उसके पति को मार कर खा लिया।
🍁 जिससे क्रोधित होकर ब्राह्मणी ने राजा को श्राप दिया कि एक दिन विषय कामना में प्रवृत्त होने पर तुम्हारी मृत्यु हो जाएगी, ऐसा कहकर ब्राह्मणी ने अग्नि में प्रवेश कर लिया।
🍁12 वर्ष बाद जब सौदास मित्रसह ने वशिष्ठ ऋषि के श्राप से मुक्ति पाने के बाद रानी मदयंती ने ब्राह्मणी के श्राप को याद दिलाया ,तभी से राजा ने स्त्री संभोग त्याग दिया।
🍁वशिष्ठ जी के आशीर्वाद से रानी मदयंती ने गर्भ धारण किया, लेकिन सात वर्ष तक संतान न होने पर रानी ने पत्थर से अपने गर्भ पर प्रहार किया, जिससे उसी समय पुत्र का जन्म हुआ जिसका नाम अश्मक रखा गया।
🍁अश्मक के मूलक नामक पुत्र हुआ। जब परशुराम जी पृथ्वी को क्षत्रिय हीन किया था, तब मूलक की रक्षा वस्त्रहीन स्त्रियों ने घेरकर की थी, जिससे इन्हें नारीकवच भी कहते है।
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