अप्सरा उर्वशी और राजा पुरुरवा
उर्वशी और पुरुरवा
💠एक बार अप्सरा उर्वशी की दृष्टि पुरुरवा पर पड़ी। दोनों एक दूसरे के प्रति आसक्त हो गये। तब राजा पुरुरवा ने उर्वशी को अपने साथ रहने के लिए कहा।
💠तब उर्वशी ने बताया कि मेरी एक प्रतीज्ञा है अगर आप इसे मान लें तो मैं आपके साथ रह सकती हूँ।
उर्वशी की प्रतिज्ञा
💠उर्वशी की तीन प्रतीज्ञा थी पहला मेरे पुत्र रूपी दो मेषों (भेड़) को आप मेरे शय्या से दूर कभी नहीं करेंगे।
💠दूसरी मैं कभी आपको नग्न न देखने पाऊं।
💠तीसरी केवल घृत (घी) ही मेरा आहार होगा। यही मेरी तीन प्रतिज्ञाएं है।
ये सभी बातें राजा पुरुरवा ने स्वीकार कर ली।
पुरुरवा से उर्वशी की प्रतिज्ञा कैसे टूटी ?
💠पुरुरवा ने उर्वशी के साथ विहार करते हुए,60,000 वर्ष बिता दिये।
💠विश्वावसु ने एक दिन, रात्रि के समय गंधर्वों के साथ उर्वशी के एक मेष का हरण कर लिया। उसे आकाश में ले जाते समय उर्वशी ने उसकी आवाज सुन ली।
💠मेरे पुत्र को कौन ले गया। लेकिन यह सुनकर भी राजा पुरुरवा इस भय से की उर्वशी उन्हें नग्न न देख ले, राजा ने उसकी बात को अनसुनी कर दिया और गंधर्व दूसरे मेष को भी ले गये।
💠जब उर्वशी राजा को धिक्कारने लगी,तब राजा यह सोचकर कि इस समय अंधकार है (उर्वशी मुझे निर्वस्त्र नहीं देख सकेगी)।
राजा निर्वस्त्र अवस्था में हाथ में तलवार लेकर उन मेषों को बचाने के लिए उनके पीछे दौड़े।
💠तभी गंधर्वों ने बहुत ही तेज आकाशीय बिजली की रौशनी कर दी। इसके बाद गंधर्व भी उन मेषों को वहीं छोड़कर स्वर्ग चले गए।
लेकिन इस रौशनी में उर्वशी ने राजा को निर्वस्त्र देखा, जिससे उनकी प्रतिज्ञा टूट गई और उर्वशी तुरंत वहां से चली गई।
💠लेकिन जब राजा खुशी से उन मेषों को लेकर वापस लौटे तब उर्वशी को वहाँ न पाकर, राजा उसी निर्वस्त्र अवस्था में इधर - उधर घूमने लगे।
उर्वशी और पुरुरवा के पुत्र
💠एक दिन कुरूक्षेत्र में राजा पुरुरवा ने कमल सरोवर में चार अप्सराओं के साथ उर्वशी को देखा।
जब राजा उर्वशी के पास गये,तब उर्वशी ने कहा - महाराज अज्ञानियों की तरह व्यवहार मत करिये मैं इस समय गर्भवती हूँ।
💠एक साल बाद आप यहीं आये ,उस समय आपका एक पुत्र होगा और एक रात मैं भी आपके साथ रहूँगी। उर्वशी के ऐसा कहने पर राजा पुरुरवा खुश होकर नगर चले गये।
💠एक वर्ष बाद पुरुरवा उसी जगह वापस गये, उस समय उर्वशी ने उन्हें आयु नाम का एक पुत्र दिया और उनके साथ एक रात रहकर पाँच पुत्र उत्पन्न करने के लिए गर्भ धारण किया।
पुरुरवा का वरदान
💠उर्वशी ने कहा कि हमारे परस्पर प्रेम के कारण गन्धर्व गण आपको वरदान देना चाहते है, कोई वर माँगिये।
💠राजा पुरुरवा ने कहा - इस समय मुझे उर्वशी के साथ सहवास के अलावा किसी भी चीज की जरूरत नहीं है, मैं उसी के साथ रहना चाहता हूँ।
💠राजा के ऐसा करने पर गंधर्वों ने उन्हें एक अग्निस्थाली (अग्नियुक्त पात्र) दी और कहा कि इस अग्नि की वैदिक विधि से गार्हपत्य,आहवनीय और दक्षिणाग्निरुप तीन भाग करके इसमें उर्वशी के सहवास की कामना से भलीभाँति प्रार्थना करो, तब तुम अपनी इच्छा पूर्ण कर सकते हो। गंधर्वों के ऐसा कहने पर राजा उस अग्निस्थाली को लेकर चले गए।
वरदान में मिली अग्निस्थाली का प्रयोग
💠रास्ते में वन में जाते समय उन्होंने सोचा कि मैं कितना मूर्ख हूँ। मैं अग्निस्थाली को तो ले आया पर उर्वशी को वहीं छोड़ दिया। ऐसा सोचकर उस अग्निस्थाली को वन में ही छोड़कर वे अपने नगर चले गये।
💠आधी रात बीत जाने पर जब राजा की नींद खुली तब उन्होंने सोचा कि उर्वशी का साथ पाने के लिए ही गंधर्वों ने मुझे वो अग्निस्थाली दी थी और मैं उसे वन में छोड़ आया।
💠फिर राजा उस अग्निस्थाली को ढूंढने वन में पहुँचे लेकिन वो वहाँ नहीं मिला। उसके स्थान पर एक शमी गर्भ पीपल का वृक्ष देखकर राजा ने सोचा वह अग्निस्थाली ही वृक्ष हो गया है।
इसी को मैं नगर ले जाकर इसकी अरणि बनाकर उससे उत्पन्न अग्नि की ही उपासना करुंगा।
💠राजा ने उसकी अरणि बनाकर उसको काष्ठ करके एक - एक अंगुल करके गायत्री मंत्र का पाठ किया। उनके पाठ से गायत्री की अक्षर संख्या के बराबर एक एक अंगुल की अरणियां हो गई।
💠उनके मंथन से तीनों प्रकार की अग्नियों को उत्पन्न कर उसमें वैदिक विधि से हवन किया और उर्वशी से सहवास की इच्छा की। इस प्रकार कई प्रकार के यज्ञों के कारण उन्हें गन्धर्व लोक की प्राप्ति हुई और वे सदैव उर्वशी के साथ रहे।
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