स्वर्ग का सिंहासन दिलाने के लिए किसने यज्ञ किया ?
💠 चंद्रवंशीय राजा आयु के पाँच पुत्र थे नहुष, क्षत्रवृद्ध, रम्भ, रजि और अनेना।
💠जिनमें महाराज रजि के 500 पुत्र थे। एक बार देवासुर संग्राम के आरम्भ में देवता और दैत्यों ने ब्रह्मा जी के पास जाकर पूछा कि हम दोनों में से कौन जीतेगा।
💠तब ब्रह्मा जी ने बताया कि जिस पक्ष से महाराज रजि युद्ध करेंगे उसी पक्ष को विजय प्राप्त होगी।
💠इसके बाद दैत्यों ने रजि से अपनी सहायता के लिए प्रार्थना की, इस पर रजि ने कहा कि, यदि युद्ध के बाद मुझे इंद्र के सिंहासन की प्राप्ति होगी तो मैं आपके पक्ष से युद्ध करूंगा।
💠तब दैत्यों ने कहा कि हमारे इंद्र तो प्रह्लाद जी होंगे। हम लोग अपनी बात से कभी पीछे नहीं हटते।
💠देवताओं ने भी राजा रजि से अपने पक्ष से लड़ने का आग्रह किया। तब रजि में इंद्र के सिंहासन देने को कहा देवताओं ने इनकी यह शर्त स्वीकार कर ली।
💠तब रजि ने देवताओं के पक्ष से युद्ध किया और जीत भी गये।
💠युद्ध जीतने के बाद इंद्र ने रजि के पैर पकड़कर कहा - आपने मेरी भय से रक्षा की है इसलिए आप मेरे पिता समान हैं।
💠तब रजि ने स्वर्ग का सिंहासन छोड़ दिया और अपने राज्य में वापस चले आये।
💠तब शतक्रतु ही इंद्र पद पर बैठे। फिर रजि की मृत्यु के बाद नारद जी के कहने पर उनके पुत्रों ने इंद्र से अपने पिता का सिंहासन वापस मांगा, लेकिन इंद्र के मना कर दिया। जिसके बाद रजि पुत्रों ने युद्ध में स्वर्ग जीता और उस पर राज्य किया।
💠बहुत समय बाद एक दिन बृहस्पति जी के पास जाकर शतक्रतु इंद्र ने सहायता माँगी।
💠 तब रजि पुत्रों की बुद्धि को मोहित करने के लिए बृहस्पति जी ने यज्ञ किया , जिसके कारण रजि पुत्र ब्राह्मण विरोधी, धर्म त्यागी और वेद विमुख हो गए। जिसके बाद इंद्र ने उन्हें मार डाला और स्वर्ग के सिंहासन को प्राप्त कर लिया।
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