पारले - जी का इतिहास !
1) भारत में आजादी से पहले विदेशी चीजें बाजार में ऊंची दामों पर बेची जाती थी। उस समय अंग्रेजों द्वारा एक कैंडी लायी गई ,जो सिर्फ अंग्रेजो तक सीमित रही क्योंकि ये बहुत महंगी हुआ करती थी ,जो आम आदमी के पहुंच से बाहर थी। ये बात मोहन लाल दयाल को पसंद नहीं आई। वो जर्मनी गए और वहां कैंडी बनाना सीखा। 3) मोहन लाल दयाल 1929 में एक कैंडी मेकर मशीन को 60,000 रुपए में खरीद कर भारत लाए। 4) मोहन लाल दयाल का पहले से ही रेशम का व्यापार था फिर भी उन्होंने मुंबई के पास विरला पार्ला में एक पुरानी फैक्टरी खरीदी। 5) शुरू में उनकी फैक्टरी में केवल 12 कर्मचारी ही थे जो कि उनके परिवार के सदस्य ही थे। इस फैक्टरी में सबसे पहले ऑरेंज कैंडी बनाई गई थी। 7) 1939 में उन्होंने पारले - ग्लूको बिस्किट जो गेहूं से बनता था और बहुत कम दाम का और स्वादिष्ट भी था, बनाना शुरू किया। 8) 1947 में आजादी के बाद पारले ने एक कैंपेन चलाया जिसमें ये कहा गया कि यह बिस्किट अंग्रेजों के बिस्किट का विकल्प है। 9) द्वितीय विश्व युद्ध खत्म होने के बाद पारले - ग्लूको को अपना प्रोडक्शन देश में गेहूं की कमी की वजह से बंद ...