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Showing posts from October, 2020

पारले - जी का इतिहास !

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1) भारत में आजादी से पहले विदेशी चीजें बाजार में ऊंची दामों पर बेची जाती थी। उस समय अंग्रेजों द्वारा एक कैंडी लायी गई ,जो सिर्फ अंग्रेजो तक सीमित रही क्योंकि ये बहुत महंगी हुआ करती थी ,जो आम आदमी के पहुंच से बाहर थी। ये बात मोहन लाल दयाल को पसंद नहीं आई। वो जर्मनी गए और वहां कैंडी बनाना सीखा। 3) मोहन लाल दयाल 1929 में एक कैंडी मेकर मशीन को 60,000 रुपए में खरीद कर भारत लाए। 4) मोहन लाल दयाल का पहले से ही रेशम का व्यापार था फिर भी उन्होंने मुंबई के पास विरला पार्ला में एक पुरानी फैक्टरी खरीदी। 5) शुरू में उनकी फैक्टरी में केवल 12 कर्मचारी ही थे जो कि उनके परिवार के सदस्य ही थे।  इस फैक्टरी में सबसे पहले ऑरेंज कैंडी बनाई गई थी।  7) 1939 में उन्होंने पारले -  ग्लूको  बिस्किट जो गेहूं से बनता था और बहुत कम दाम का और स्वादिष्ट भी था, बनाना शुरू किया। 8) 1947 में आजादी के बाद पारले ने एक कैंपेन चलाया जिसमें ये कहा गया कि यह बिस्किट अंग्रेजों के बिस्किट का विकल्प है। 9) द्वितीय विश्व युद्ध खत्म होने के बाद पारले - ग्लूको को अपना प्रोडक्शन देश में गेहूं की कमी की वजह से बंद ...

भारतीय वैज्ञानिक वी. रामालिंगास्वामी ! - भाग 2

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  कार्य 9) रामालिंगास्वामी गरीब देशों में बीमारियों के कारणों को समझना और शोध द्वारा उनके उपचार खोजना चाहते थे। 10) जिन भिन्न क्षेत्रों में उन्होंने मौलिक शोधकार्य किया वो है - प्रोटीन ऊर्जा और कुपोषण का सम्बन्ध , आयोडीन का अभाव , कुपोषण द्वारा खून की कमी और गर्म देशों में यकृत की बीमारी आदि। 11) देश के विकास के लिए प्राथमिक स्वास्थ्य - सेवा , संक्रामक रोगों और स्वास्थ्य अनुसंधान में रामा की रूचि थी। 12) 1967  के बिहार अकाल और  1971  के बांग्लादेश युद्ध में हजारों - लाखों लोग कुपोषण से बच पाए। 13) घेघा रोग  (थायराइड से गला फूलना ) के अत्यधिक प्रचलन के कारण रामा ने समुदायिक स्वास्थ्य के क्षेत्र में एक क्लासिक प्रयोग किया। इसमें कांगड़ा पहाड़ियों  में रहने वाले एक लाख से अधिक लोगों का सर्वेक्षण शामिल था। आयोडीन युक्त नमक खाने से इस बीमारी में भारी कमी आयी। इसी शोधकार्य ने ही राष्ट्रीय आयोडीन अभाव नियंत्रण कार्यक्रम की नीव रखी, जिससे 30 करोड़ से ज्यादा लोगों को इस रोग से सुरक्षा मिली। 14) रामालिंगास्वामी  ने गर्भवती माताओं में लोहे (आयरन) की कमी को ...

भारतीय वैज्ञानिक वी. रामालिंगास्वामी ! - भाग 1

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  वी. रामालिंगास्वामी (1921 - 2001 ) प्रोफेसर विलिमिरी रामालिंगास्वामी  को प्रसिद्ध लियोन बर्नाड फाउंडेशन अवॉर्ड  के पुरस्कार से सम्मानित करते हुए 1976  में वर्ल्ड हेल्थ एसेंबली  के अध्यक्ष ब सर हैरल्ड वॉल्टर ने प्रशंसा में कहा कि रामालिंगास्वामी " एक डॉक्टर, शोध - वैज्ञानिक, शिक्षक और मानववादी व्यक्ति थे।" प्रारंभिक जीवन और शिक्षा 1)  विलिमिरी रामालिंगास्वामी  जिन्हें उनके मित्र रामा के नाम से बुलाते थे। उनका जन्म 8 अगस्त 1921  को आंध्रा प्रदेश  के श्रीकाकुलम  में हुआ। 2) उनका पूरा परिवार शिक्षा से जुड़ा था और वे अपने दादा जी से बहुत प्रभावित थे। उनके दादाजी स्थानीय स्कूल के प्रिंसिपल थे और उनकी शेक्सपीयर में गहरी रूचि थी। 3) रामा  एक अच्छे अभिनेता थे और उन्होंने कॉलेज में शेक्सपीयर के कई पात्रों का रोल निभाया। वे एक अच्छे गायक भी थे। 6) 1944  में रामा ने अपनी पहली मेडिकल की डिग्री हासिल की और  1946  में उन्होंने उसी यूनिवर्सिटी से एमडी की डिग्री  प्राप्त की। 7) फिर वे ऑक्सफोर्ड इंग्लैंड  में गए जहां  ...

टी. आर. शेषाद्री के महत्वपूर्ण कार्य !

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1) टी. आर. शेषाद्री प्रेसीडेंसी कॉलेज के केमिस्ट्री विभाग में शोधकार्य शूरू किया। 2) इंग्लैंड की मैनचेस्टर यूनिवर्सिटी में शेषाद्री ने कैमेस्ट्री प्रोफेसर रॉबर्ट रॉबिंसन (एफआरएस) के देख रेख में शोध कार्य किया। प्रोफेसर रॉबिंसन बाद में रॉयल सोसायटी के अध्यक्ष मनोनीत हुए और उन्हें नोबेल पुरस्कार से सम्मानित किया गया। 3) शेषाद्री ने मलेरिया के रोकथाम की औषधियों और रासायनों के संश्लेषण पर रास्ता दिखाया। इस शोध कार्य के लिए 1929 में उन्हें पीएचडी की उपाधि प्रदान की गई। 4) डॉक्ट्रेट की उपाधि पाने के बाद शेषाद्री ने कुछ महीने ऑस्ट्रिया मी नोबेल पुरस्कार विजेता प्रोफेसर फ्रिट्ज प्रेगल के साथ बिताए। प्रोफेसर प्रेगल केमिस्ट्री में सूक्ष्म विश्लेषण के अपने काम के लिए प्रसिद्ध थे। 5) शेषाद्री यूनिवर्सिटी ऑफ एडिनब्रा के केमिस्ट्री विभाग में प्रोफेसर जॉर्ज बार्जर (एफआरएस) के साथ कुछ समय बिताया और 1930 में वापस लौट आए। 6) 1934 में उन्होंने आंध्रा यूनिवर्सिटी केमिस्ट्री विभाग के अध्यक्ष के पद पर काम शुरू किया। 7) उन्होंने शोध स्कूल की स्थापना की, फिर यूनिवर्सिटी ने उन्हें कैमिकल टेक्न...

भारतीय वैज्ञानिक टी. आर.शेषाद्री !

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थिरुवेंगदम राजेंद्रराम शेषाद्री (1900 - 1975) 1) टी. आर. शेषाद्री का जन्म 3 फरवरी 1900 को कुलितताई में हुआ जो तिरूचापल्ली जिले में कावेरी नदी के पास स्थित एक छोटा शहर है। 2) उनके पिता टी. आयनगर स्थानीय स्कूल में शिक्षक थे। शेषाद्री की प्रारंभिक शिक्षा, मन्दिरों के शहर श्रीरंगम और तिरूचापल्ली में हुई। 3) 1917 में शेषाद्री ने मद्रास के प्रेसीडेंसी कॉलेज में बीएससी (केमिस्ट्री) के लिए दाखिला लिया। 4) कॉलेज के दौरान वो रामकृष्ण मिशन द्वारा संचालित छात्रावास में रहते थे। 5) प्रेसीडेंसी कॉलेज में बी. बी. डे और पी. नारायण अय्यर ने उन्हें पढ़ाया। 6) बीएससी की पढ़ाई खत्म करने के बाद शेषाद्री ने एक साल रामकृष्ण मिशन में काम किया। 7) 1927 में भारत सरकार ने इंग्लैंड में उच्च शिक्षा पाने के लिए शेषाद्री को एक वजीफा दिया। सम्मान 1) 1961 में शेषाद्री को फेलो ऑफ द रॉयल सोसायटी के सम्मान के लिए चुना गया। 2) कई विश्वविद्यालयों ने उन्हें डॉक्ट्रेट की डिग्री से नवाजा। 3) वो इंडियन साइंस कांग्रेस और इंडियन नेशनल साइंस एकेडमी के अध्यक्ष भी रहे। 4) वो अंतर्राष्ट्रीय शोध पत्रिकों - टेट्र...

बी. पी. पाल द्वारा किए गए विशेष कार्य !

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1) अपने शोध में पाल ने पहली बार गेहूं कि संकर प्रजातियों  की संभावनाओं को उजागर किया। 2) 1933 में उन्होंने बिहार  स्थित पुसा  में इंडियन (इंपिरियल) एग्रीकल्चरल इंस्टीटयूट  में काम करना शुरू किया। 3) 1937 में पदोन्नति के बाद वो वही इंपिरियल इकनॉमिक वाॅटानिस्ट  ‌बने। 4) 1936 के भूकंप में पूसा इंस्टीटयूट  बुरी तरह ध्वस्त हो गई और उसे दिल्ली  शिफ्ट किया गया, तब पाल  भी  दिल्ली  आए। 5)  1960  में खाद्यान्यों की बेहद किल्लत के कारण सारी दुनिया भारत को भुखमरों का देश मानने लगी थी। उस दौरान हजारों लाखों भारतीय अमेरिका द्वारा पीएल - 480  में दान दिए खाद्यान्यों की वजह से ही जिंदा बच पाए। पाल  के नेतृत्व में शुरू हुई हरित क्रांति देश में एक अभूतपूर्व परिवर्तन लाई और धीरे - धीरे करके भारत एक भूखे देश से एक खाद्यान बाहुल्य देश बना। 6)  पाल  ने कृषि के जिन पांच क्षेत्रों में महत्त्वपूर्ण योगदान थे - अनुसन्धान , शिक्षा , कृषि विस्तार , संस्था निर्माण और अंतराष्ट्रीय सहयोग। 7) अनुसन्धान के क्षेत्र में पाल क...

भारतीय जेनेटिक वैज्ञानिक बेंजेमिन

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बेंजेमिन पियरे पाल (1906 - 1989 ) बेंजेमिन पियरे पाल  एक विश्वविख्यात जेनेटिक वैज्ञानिक  तो थे, पाल  के कई अलग - अलग चीजों में गहरी रूचि रखने के कारण कुछ लोग उन्हें " कृषि के होमी भाभा "  मानते थे। प्रारंभिक जीवन और शिक्षा 1)  बेंजेमिन पियरे पाल  का जन्म 26 मई , 1906  को मुकुंदपुर  , पंजाब  में हुआ था। 2) उनकी प्रारंभिक शिक्षा बर्मा  में हुई , जहां उनके पिता मेडिकल डॉक्टर थे। 3)  बर्मा  में वो सेंट माइकल स्कूल  में पढ़े और यहां उनको गुलाबो और चित्रकारों में रूचि पैदा हुई। 4) 1929  में उन्होंने  एचएससी  (वनस्पतिशास्त्र) में पुरी यूनिवर्सिटी में टॉप किया और मैथ्यू हंटर मेडल  जीता। 5) इसके बाद वो केंब्रिज  गए जहां उन्होंने पीएचडी  पुरी की। 6) सर रोलैंड बिफिन  और सर फ्रैंक एंग्लडो  के मार्गदर्शन में संपन्न उनकी पीएचडी  आज भी एक क्लासिक समझी जाती है। किताबें फूलों के प्रति अपने प्रेम के प्रचार प्रसार के लिए उन्होंने ढेरों लोकप्रिय किताबें लिखीं जिनमें-   " द रोज़ इन इंडि...

सलीम अली की कार्य और उनकी लिखी किताबें !

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कार्य 1) 1930  में अच्छी नौकरी न मिलने की वजह से वो बंबई  के निकट एक तटवर्ती गांव किहिम में बस गए। वहां उन्होंने मचान से " बया पक्षियों "  का सूक्ष्म अवलोकन और अध्ययन किया। " बया पक्षियों "  के प्रजनन संबंधी जीवशास्त्र ने उन्हें एक विश्व - स्तरीय पक्षी निरीक्षक के रुप में स्थापित किया। उन्होंने पाया कि नर "  बया  " ही घोंसला बनाता है। फिर एक दिन मादा "  बया  " आकर आधे बने घोंसले और अपने पति का भार संभालती है। "  बया  " के हजारों शिशु सिर्फ छोटे कीड़े खाते है क्योंकि वे सख्त अनाज को हजम नही कर सकते। इसलिए व्यस्क "  बया  " पक्षी हानिकारक कीड़े मकौड़ों की आबादी को काबू रखने में एक अहम भूमिका निभाते है। 2) सलीम अली  ने आर्थिक वनस्पतिशास्त्र  के विषय को हरेक कृषि विश्वविद्यालय में पढाएं जाने की सिफारिश की। 3)  सलीम अली  पक्षियों का निरीक्षण बाॅयनाॅक्यूलर  से ही किया , कभी - कभी वो पक्षी पहचानने के लिए पकड़ते। उनके पैर में एक निशानी - छल्ला  (रिंग) फंसा कर उन्हें छोड़ देते। पैर में एक ' रिंग '  स...

भारतीय वैज्ञानिक जिन्हें बर्डमैन के नाम से जाना जाता है !

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  सलीम  अली  (1896 - 1987 ) सलीम अली  बीसवीं सदी में निर्विवाद रूप से भारत के सबसे महान जीवशास्त्री  थे। उन्हें लोग प्यार से "बर्डमैन "  के नाम से संबोधित करते थे। उन्होंने 80 वर्षों  तक भारतीय महाद्वीप के पक्षियों का अवलोकन  किया और उनकी जानकारी को किताबों में संजोया। प्रारंभिक जीवन 1)  सलीम अली  का जन्म एक धनी व्यापारी परिवार में हुआ था। 2) दस साल  की उम्र में ही उनके माता पिता का देहांत हो गया। 3) उसके बाद उनके मामा अमरुद्दीन तैयाबजी  और मामी हमीदा  ने पाला। 4) उन्होंने बंबई के सेंट जेवियर कॉलेज  में जीवशास्त्र  पढ़ा , लेकिन बीच में ही अपनी पढ़ाई छोड़ कर उन्हें टंगस्टन के व्यापार की देख रेख के लिए बर्मा जाना पड़ा। फिर जल्द वापस जीवशास्त्र की पढ़ने लगे। 5) 1918  में उनके दूर के रिश्तेदार तहमीना  के साथ उनका विवाह हुआ। 6) जियोलॉजीकल सर्वे ऑफ इंडिया  में जब उन्हें नौकरी नहीं मिली तो उन्होंने कुछ समय के लिए प्रिंस ऑफ वेल्स म्यूसियम ऑफ बर्लिन  में गाइड जैसा काम किया। 7)  1928 ...

जी. एन. रामचंद्रन के महत्वपूर्ण कार्य !

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1) सी. वी. रमन  ने रामचंद्रन को लॉर्ड रैले  द्वारा सुझाई एक कठिन समस्या का हल खोजने को कहा। एक ही दिन में रामचंद्रन  ने इस समस्या की समीकरणे लिखीं और उनका हल ढूंढ निकाला। इससे  सी. वी. रमन  बहुत प्रभावित हुए। 2)  सी. वी. रमन  के मार्गद्शन में ऑप्टिक्स  और एक्स - रे  टोमिग्राफी के क्षेत्र में शोधकार्य किया।  3) 1947  में रामचंद्रन इंग्लैंड की कैविंडिश लैबोरेट्री  में शोधकार्य करने गए। इस प्रयोगशाला के प्रमुख सर लौरेंस ब्रैग थे। 4) कैंब्रिज  में उन्होंने डब्लू. ए. वुस्टर  और  एच. लैंग  के साथ क्रिस्टलोग्राफी  पर काम किया। यहां उन्होंने क्रिस्टलस इलास्टिक कंटस्टेंट  मापने के लिए एक गणितीय थ्योरी भी विकसित की। 5) 1949  में रामचंद्रन को कैंब्रिज विश्वविद्यालय  ने पीएचडी  प्रदान की।  कैंब्रिज  के ही दौरान रामचंद्रन  की भेंट प्रसिद्ध वैज्ञानिक लॉइनस पॉलिंग  से हुई। वे  पॉलिंग  के भाषणों और पेप्टाइड चेंस  के मॉडल्स से अत्यंत प्रभावित हुए। 6) 1949  में...

भारतीय वैज्ञानिक जी. एन. रामचंद्रन !

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गोपालसमुद्रम नारायण रामचंद्रन (1922 - 2001) प्रारंभिक जीवन और शिक्षा 1) जी. एन. रामचंद्रन  का जन्म 8 अक्टूबर 1922  को भारत के दक्षिण - पश्चिमी तटवर्ती शहर कोचीन  के पास एक छोटे शहर में हुआ था। 2) उनके पिता का नाम नारायण अय्यर  था। वे एक स्थानीय कॉलेज में गणित के प्रोफेसर थे। वे रोज अपने कॉलेज की लाइब्रेरी से गणित की कोई नई किताब लाते और रामचंद्रन  को नई - नई प्रमेयों को हल करने के लिए प्रोत्साहित करते थे। 3)  रामचंद्रन  हर एक परीक्षा में 100% अंक पाते थे। 4) 1942  में  रामचंद्रन  ने मद्रास यूनिवर्सिटी  से बीएससी के कोर्स में पूरे विश्वविद्यालय में टॉप किया। 5) सेंट जोसेफ कॉलेज  में जिन दो शिक्षकों के कारण रामचंद्रन  की रूचि फिजिक्स में जगी, वे श्री पी. ई. सुब्रमण्यम  और  जेसुआइट पादरी फादर राजम । 6)  रामचंद्रन  के पिता चाहते थे कि वे इंडियन सिविल सर्विस  में जाए। बाद में रेलवे इंजीनियरिंग बोर्ड की परीक्षा के लिए  रामचंद्रन  को दिल्ली भेजा गया। रामचंद्रन  ने जानबूझ कर गलतियां की और इस...

भारतीय वैज्ञानिक औतार सिंह पेंटर के किए कुछ कार्य !

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1) औतार सिंह  ने मानवीय विद्युतीय संवेदना मापने की एक नई इंडेक्स  बनाई। शुरुआती दौर में शोध कर्ताओं ने इस "पेंटर  इंडेक्स "  का खूब उपयोग किया। औतार सिंह " किंग जॉर्ज मेडिकल कॉलेज "  में ही रहे और बाद में वहीं पर शरीर - विज्ञान  पढ़ाने लगे। 2) बाद में उन्हें एडिनब्रा मेडिकल स्कूल  में पीएचडी करने के लिए रॉकेफेलर स्कॉलरशिप  मिला। यहां पर उन्होंने जे - रिसेप्टर्स  को खोजा। उस समय किसी तंत्रिका के एक रेशे  को उसकी सक्रियता खत्म किए बिना विच्छेदित करना बहुत मुश्किल काम था।  उन्होंने एक नया तरीका खोजा जिसमें उन्होंने पुरी तंत्रिका को तरल पैराफिन  में डुबोया और फिर बिना सक्रियता खोए एक - एक रेशे को अलग किया। 3) 1953 में  औतार सिंह  भारत लौटे और उन्होंने कानपुर की डिफेंस लैबोरेट्री  में कार्य शुरू किया। वहां  5 वर्ष  काम करने के बाद उन्होंने  शरीर - विज्ञान  के शोधकर्ता के रूप में ऑल इंडिया इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंस  (एम्स) में काम शुरू किया। 4) 6  वर्ष  बाद वो बल्लव भाई पटेल  च...

भारतीय शरीर - वैज्ञानिक (फिजियोलॉजिस्ट) ,औतार सिंह पेंटर !

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औतार सिंह पेंटर (1925 - 2004) औतार सिंह पेंटर  शायद भारत  के सबसे पहले शरीर - वैज्ञानिक  (फिजियोलॉजिस्ट) थे। प्रारंभिक जीवन और शिक्षा 1)  औतार सिंह  का जन्म  1925  में मोगौक  " बर्मा " में हुआ था। जहां उनके पिता ब्रिटिश मेडिकल सर्विस में काम करते थे। 2) उन्होंने 14 साल की उम्र में लाहौर  से दसवीं की परीक्षा पास की और उसके बाद फौरमैन क्रिस्टियन कॉलेज  से इंटर पास किया। 3) 1943  में उन्होंने किंग जॉर्ज मेडिकल कॉलेज  में दाखिला लिया,इसमें बर्मा की सरकार  ने उनकी पैसों की मदद की। 4)  औतार सिंह  ने एमबीबीएस के दौरान कई पुरस्कार जीते। जिनमें सर्वश्रेष्ठ छात्र और हवीइट गोल्ड मेडल  शामिल था। 5)  औतार सिंह  की एमडी  के शोध का विषय था -  " इलेक्ट्रिकल रिजिस्टेंस ऑफ द स्किन इन नॉर्मल बिइन्गस एंड सायकौटिक्स ।" इस शोध के लिए उन्होंने खुद अपने हाथों से सारा वैज्ञानिक उपकरण बनाया। इस शोध के लिए 400 मनोवैज्ञानिकों की जरूरत थी। पुरस्कार 1) 1981 में उन्हें रॉयल सोसायटी , लंदन में और 1996 में रॉयल सोसायटी ,...

भारतीय वैज्ञानिक प्रफुल्ल चंद्र महालनोबिस के महत्वपूर्ण कार्य !

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  कार्य 1) प्रफुल्ल चंद्र महालनोबिस  ने तीन कार्य किए - बड़े पैमाने पर सर्वे की मशीनरी गठित की, सांख्यिकी के सिद्धांतो द्वारा देश की ठोस समस्याओं को सुलझाया और विश्वस्तरीय संस्थाओं को गठित किया। 2) केंब्रिज यूनीवर्सिटी  से गणित और भौतिशास्त्र का उच्च अध्ययन करने के बाद उन्होंने कुछ समय तक कैविंडिश लैबोरेटरी  में काम किया। 3) 1915  में वो अल्प अवकाश के लिए भारत  में आए और प्रेसीडेंसी कॉलेज  में भौतिक शास्त्र  पढ़ाना शुरू किया।   वहां उन्हें सांख्यिकी  द्वारा परीक्षा परिणामों के विश्लेषण का मौका मिला। इस काम में उन्हें इतना मजा आया कि , उन्होंने फिजिक्स छोड़ दी और फिर तथ्य, आंकड़ों , ग्राफ और चार्ट्स में ही उलझे रहे। 4)  महालनोबिस  के भारत आने से पहले भारत में सांख्यिकी का विषय को किसी भी विश्वविद्यालय में नहीं पढ़ाया जाता था। 5)  महालनोबिस  सर्वे सैंपलिंग तकनीक के अग्रणी प्रणेता। 6) भारत की स्वतंत्रता के तुरन्त बाद उन्हें सरकार ने सांख्यिकी सलाहकार  की हैसियत से नियुक्त किया। 7) 1955  में उन्होंने भारत  ...

भारतीय वैज्ञानिक प्रफुल्ल चंद्र महालनोबिस !

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प्रफुल्ल चंद्र महालनोबिस (1893 - 1972 ) प्रफुल्ल चंद्र महालनोबिस प्रशिक्षण से भौतिकशास्त्री  थे,दिल से स्टैटिटीशियन   और विचारों से अर्थशास्त्री  थे। प्रारंभिक जीवन और शिक्षा 1)  प्रफुल्ल चंद्र महालनोबिस  का जन्म 29 जून ,1893  में  कलकत्ता  में हुआ। 2) दो भाई और तीन बहनों में वो सबसे बड़े थे। उनका परिवार धनी था और ब्रहमो समाज के उदार मूल्यों और परंपराओं में विश्वास रखते थे। 3) उनकी शुरुआती शिक्षा ब्रहमो स्कूल  कलकत्ता में हुई। 4) 1912  में उन्होंने कलकत्ता विश्वविद्यालय  से बीएससी की डिग्री प्राप्त की। 5) वो कलकत्ते  में भौतिकशास्त्री सत्येन्द्र नाथ बोस  और मेघनाथ साहा  के समकालीन थे। 6) उनकी पत्नि निर्मला कुमारी  ने जीवन भर उनके सभी कामों में हाथ बंटाया। सम्मान 1) विश्व की अकादमियों ने सांख्यिकी और योजना के क्षेत्र में उत्कर्ष कार्य करने के लिए महालनोबिस को सम्मानित किया। 2) 1945  में उन्हें फेलो ऑफ द रॉयल सोसायटी  (एफआरएस) की सदस्यता चुना गया। 3) 1935  में इंडियन नैशनल साइंस एकादमी ...