करतारसिंह सराबा भाग - 4
करतारसिंह की फांसी
जनवरी 1915 में रासबिहारी बोस अमृतसर आये। करतारसिंह और उनके अन्य क्रान्तिकारियों के बीच अंग्रेजो के खिलाफ सशस्त्र क्रान्ति की सहमति बनी हुई थी। इसके लिए 21 फरवरी,1915 का दिन पूरे भारत में एक साथ क्रांति के लिए तय हुआ। करतारसिंह ने लाहौर छावनी के शस्त्र भण्डार पर कब्जा करने का जिम्मा लिया।
लेकिन अपने ही एक साथी की गद्दारी के कारण पुलिस को सारी योजना की जानकारी मिल गई। "गदर पार्टी " के जितने भी नेता जहां भी मिले , उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया। अंग्रेजो ने इसे "लाहौर षडयंत्र " का नाम दिया।
इस आंदोलन की असफलता के बावजूद करतारसिंह ने 2 मार्च 1915 को ललितपुर पहुंच कर जगह - जगह फौजी छावनियों में जाकर सैनिकों को जागरूक करने लगे। जिसके बाद उन्हें और उनके साथियों को गिरफ्तार कर लिया गया।
13 सितम्बर, 1915 को करतारसिंह को उनके साथियों सहित लाहौर सेंट्रल जेल भेज दिया गया।
वहां उन पर मुकदमा चलाया गया। करतारसिंह को सबसे खतरनाक ठहराया गया। लाहौर षड़यंत्र केस 26 अप्रैल से 13 सितंबर 1915 तक जारी रहा। करतारसिंह पर हत्या, डाका, शासन को उलटने का आरोप लगाया गया। जिसके लिए करतारसिंह को 16 नवम्बर ,1915 को केवल 19 साल की उम्र में फांसी पर चढ़ा दिया गया।
क्रांतिकारी करतारसिंह सराबा, विष्णु गणेश पिंगले, हरनाम सिंह, जगत सिंह, बख्शीश सिंह, सुरैण सिंह आदि को फांसी दे दी गई।

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