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Showing posts from August, 2025

किस राजा ने वशिष्ठ जी को नरमांस खाने को दिया और क्यों ?

🍁इक्ष्वाकु वंश के सुदास के पुत्र सौदास मित्रसह थे, जिन्होंने एक दिन मृगया के लिए वन में घूमते - घूमते दो व्याघ्र देखे। इन्होंने संपूर्ण वन को मृगहीन कर दिया, ऐसा समझ उन्होंने उसमें से एक को बाण मार दिया। 🍁मरते समय वह बहुत ही क्रूर राक्षस में बदल गया और दूसरा भी " मैं इसका बदला लूँगा" ऐसा कहकर गायब हो गया। राक्षस का बदला और ऋषि का श्राप  🍁एक बार सौदास ने एक यज्ञ किया। यज्ञ हो जाने पर जब वशिष्ठ जी बाहर चले गये, तब वह राक्षस वशिष्ठ जी का रूप बनाकर बोला यज्ञ के पूर्ण होने पर मुझे नर मांस युक्त भोजन कराना चाहिए, इसलिए तुम ऐसा अन्न तैयार कराओ, मैं अभी आता हूं। 🍁ऐसा कहकर वो बाहर चले गए। फिर रसोइए का वेश बनाकर राजा की आज्ञा से उसने मनुष्य का मांस पकाकर उसे वशिष्ठ जी के लिए दे दिया। 🍁राजा भी उसे सुवर्ण पात्र में रखकर वशिष्ठ जी के आने की प्रतिक्षा करने लगा और उनके आते ही वह मांस निवेदन कर दिया। 🍁 जब वशिष्ठ जी को पता चला कि उन्हें नरमांस खाने के लिए दिया गया है तब क्रोध में उन्होंने राजा को श्राप दिया कि "तूने जानबूझ कर मुझे नर मांस खाने को दिया इसलिए तू नरभक्षी राक्षस हो जाय...

डॉ. सत्येंद्र नाथ बोस - 4

पुरस्कार 1* सन् 1954 में इन्हें भारत सरकार ने पद्म विभूषण एक उपाधि दी। 2*1960 में इन्हें मेघनाथ साहा पुरस्कार मिला। सत्येंद्र नाथ बोस की कृतियां - 1* क्विंटम थ्योरी पर ठोस शोध कार्य और उस पर किताब भी लिखी। 2* प्लैंक लॉ पर शोध कार्य 3* आइंस्टाइन बोस स्ट्रेटिस्टीकल के जनक 4* एफाइन कनेक्शन कॉफीशिंट्स 5* प्रोबेबिलिटी पर शोध कार्य Bosons और Fermious पार्टिकल थ्योरी पर इनका शोध आइंस्टाइन की टक्कर का था। उसी समय फर्मी नामक वैज्ञानिक का भी इसी विषय पर शोध जारी हुआ। इसके बाद के वैज्ञानिकों ने पार्टिकल थ्योरी के शोध को दो भागों में विभक्त कर दिया ,उनमें से एक भाग को सत्येंद्र नाथ बोस के नाम पर " Bosons " और दूसरे भाग को फर्मी के नाम पर " Fermious" कहा जानें लगा। बोसोन के विचार पर आधारित शोधों "बोस आइंस्टाइन स्ट्रेटिस्टीकल " और बोस आइंस्टाइन कांडेंसेट " पर नोबेल पुरस्कार प्रदान किया जा चुका है। 2001 में भौतिकी का नोबल पुरस्कार "थ्योरी ऑफ  बोस आइंस्टाइन कंडेंसेट्स " प्रदान किया गया लेकिन बोस इससे वंचित ही रहे। पुस्तकालय और बोस  सत्येंद्र नाथ को शोध कार्...

डॉ. सत्येंद्र नाथ बोस - 3

सत्येंद्र नाथ बोस , मैडम क्यूरी और अल्बर्ट आइंस्टाइन सन् 1920 में क्वांटम मैकेनिक्स के क्षेत्र में बोस - आइंस्टाइन को आधार प्रदान करने और  "बोस - आइंस्टाइन कांडेंसेट का सिद्धांत " के बाद इनकी तुलना जर्मनी के अल्बर्ट आइंस्टाइन से की जानें लगी। आइंस्टाइन भी इनके प्रतिभा के कायल थे। 1924 में जब बोस ढ़ाका विश्वविद्यालय में रीडर के पद पर थे तब उन्होंने बिना किसी क्लासिकल फिकिक्स के संदर्भ के समतुल्य कणों की दशा गणना के श्रेष्ठ तरीकों का प्रयोग कर "प्लैंक क्वांटम रेडिएशन लॉ" (प्लैंक का नियम' और प्रकाश क्वांटम परिकल्पना) की स्थापना कर शोध पत्र तैयार किया। यह शोध पत्र तुरन्त ही प्रकाशित होने के लिए स्वीकृत नहीं हुआ, तब बोस ने इस शोध पत्र को आइंस्टाइन के पास जर्मनी भेज दिया। आइंस्टाइन ने जर्मनी भाषा में इसका अनुवाद कर के बोस की ओर से यह शोध पत्र "zeitschrift fur physik" में प्रकाशन के लिए भेज दिया। जिसके बाद बोस यूरोप की एक्स - रे तथा क्रिस्टिलोग्राफी प्रयोगशालाओं में 2 साल तक काम करने के लिए सक्षम हो गये। इस दौरान इन्होंने लुइस डि ब्रोगली , मैडम क्यूरी और अल्ब...

डॉ. सत्येंद्र नाथ बोस - 2

कार्य और उपलब्धियां 1* बोस ने सांख्यिकी यांत्रिकी, आयन मंडलीय , विद्युत चुंबकत्व क्ष - किरण केलास विज्ञान और ताप संदिप्त के क्षेत्र में अनेक योगदान दिए। 2* बोस ने आइंस्टीन के " यूनिफाइड फील्ड थियरी" के बारे में कई महत्वपूर्ण संशोधन के भी सुझाव दिए। हालांकि पहले तो बोस के सुझाव मान्य नहीं हुए पर बाद में जब वैज्ञानिकों ने इन्हें परखा तो ये अत्यंत तार्किक और मौलिक थे। 3* बोस को 1952 से 1958 तक राज्यसभा का सदस्य मनोनित किया गया। 4* 15 अगस्त,1958 में सरकार ने इन्हें राष्ट्रीय आचार्य मनोनित किया। 5* वे विश्व भारती विश्वविद्यालय के उपकुलपति के रूप में कार्यरत रहे जिसके संस्थापक गुरुदेव रवीन्द्रनाथ टैगोर थे। 6* बोस ने स्वयं एक्स - 2 क्रिस्टिलोग्राफी लेबोरेट्री के लिए उपकरण तैयार किए। 7* इन्होंने विभागों में " एक्स - रे स्पेक्ट्रोस्कोपी " , " एक्स - रे  डिफ्रेक्शन " , "मैग्नेटिक प्रॉपर्टीज ऑफ मैटर" , "ऑप्टिकल स्पेक्ट्रोस्कोपी" , "वायरलेस और यूनिफाइड फील्ड थ्योरीज " में शोध केंद्र स्थापित करने की दृष्टि से विभागों में प्रयोगशालाओं में त...

डॉ. सत्येंद्र नाथ बोस (1894 - 1974) - 1

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सत्येंद्र नाथ बोस एक प्रसिद्ध गणितज्ञ और भौतिकविद थे। प्रारंभिक जीवन इनका जन्म 1 जनवरी,1894 को कलकत्ता में हुआ था। इनकी मां का नाम आमोदिनी देवी था ,वो एक धार्मिक महिला थीं। इनके पिता सुरेंद्र नाथ बोस रेलवे विभाग में एक अधिकारी थे। इनका पैतृक गांव कलकत्ता से 40 किलोमीटर दूर नाडिया जिले के बड़ा जुगलिया में था। बोस स्वभाव से काफ़ी विनम्र थे, इन्हें बच्चों से बहुत लगाव था। विज्ञान के अलावा इन्हें कला संगीत और साहित्य में भी रुचि थी। वे बांग्ला, हिंदी , अंग्रेजी, फ्रेंच, लैटिन आदि भाषाओं के अच्छे ज्ञाता थे। उनका मानना था कि बच्चों की प्रारंभिक शिक्षा उनकी ही मातृभाषा में दी जानी चाहिए। 4 फरवरी,1974 को इनका निधन हो गया। शिक्षा सत्येंद्र नाथ का 5 वर्ष की आयु में दाखिला घर के पास ही के स्कूल में करा दिया गया। बाद में जब इनका परिवार गोवा बागान चला गया, तब इनका दाखिला दूसरे विद्यालय में करा दिया गया। स्कूली शिक्षा के अन्तिम वर्ष में इन्होंने हिन्दू स्कूल में दाखिला लिया। सत्येंद्र नाथ ने 1909 में एंट्रेंस एग्जाम पास किया और मेरिट में 5 वें स्थान पर रहे। इन्होंने प्रेसीडेंसी कॉलेज, कलकत्ता में वि...

डॉ.धर्मवीर भारती - 2

सम्मान और पुरस्कार  (1) 1967 में संगीत नाटक अकादमी के मनोनित सदस्य बनें।  (2) भारत सरकार ने 1972 में पद्मश्री से सम्मानित किया।  (3) 1997 में महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ने हिंदी की सर्वश्रेष्ठ रचना को "धर्मवीर भारती महाराष्ट्र सारस्वत" पुरस्कार को हर साल देने की घोषणा की। (जिसकी धनराशि 51,000 ₹ )  (4) 1984 में हल्दीघाटी श्रेष्ठ पत्रकारिता पुरस्कार मिला जो महाराणा प्रताप फाउंडेशन के द्वारा दिया गया।  (5) 1985 में साहित्य अकादमी रत्न सदस्यता सम्मान। (6) 1986 में संस्था सम्मान , उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान और 1988 में सर्वश्रेष्ठ नाटककार पुरस्कार, संगीत नाटक अकादमी, नई दिल्ली द्वारा प्रदान किया गया। (7) 1989 डॉ. राजेंद्र प्रसाद शिखर सम्मेलन, बिहार सरकार द्वारा और इसी वर्ष गणेश शंकर विद्यार्थी पुरस्कार केंद्रीय हिंदी संस्थान, आगरा द्वारा प्रदान किया गया। (8) 1989 में भारत भारती पुरस्कार , उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान द्वारा और 1990 में महाराष्ट्र गौरव, महाराष्ट्र सरकार द्वारा दिया गया। (9) 1991 में साधना सम्मान, कोडिया स्मृति सम्मान और 1992 में महाराष्ट्रच्य...

डॉ.धर्मवीर भारती (1926 - 1997) - 1

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गुनाहों का देवता  जैसे  एक महान उपन्यास के रचयिता     प्रारंभिक जीवन धर्मवीर भारती का जन्म 25 दिसम्बर, 1926 को उत्तर प्रदेश के, इलाहाबाद शहर, के अतरसुइया मोहल्ले में हुआ था। इनके पिता का नाम चिरंजीव लाल वर्मा और मां का नाम चंदा देवी था।  इनका प्रथम विवाह कांता कोहली के साथ हुआ था और इनसे अलगाव के बाद भारती जी का दूसरा विवाह पुष्पा लता शर्मा (पुष्पा भारती) के साथ हुआ,जो की एक प्रसिद्ध साहित्यकार थी। 4 सितम्बर,1997 में इनका निधन हो गया।  शिक्षा और कार्य  (1) भारती जी इलाहाबाद विश्वविद्यालय से हिंदी विषय से एम.ए. और हिंदी सिद्ध साहित्य पर पी.एच.डी. की पढ़ाई की थी। (2) वर्ष 1950 से 1960 तक इलाहाबाद विश्वविद्यालय में ये शिक्षक के तौर पर कार्यरत रहे। (3) कुछ वर्षों तक भारती जी ने इलाहाबाद से ही प्रकाशित होने वाले साप्ताहिक पत्र "  संगम  " के संपादक के रूप में कार्य किया। भारती जी इलाहाबाद विश्वविद्यालय के हिंदी विभाग में भी शामिल रहे। (4) भारती जी 1959 से 1987 तक बंबई से प्रकाशित होने वाले साप्ताहिक पत्र "  धर्म  " के प्रधान संपादक भी रहे...

महाराज सगर ने किन राजाओं से प्रतिशोध लिया ?

💠इक्ष्वाकु वंशीय राजा बाहु की पत्नी ने एक बालक को जन्म दिया। और्व मुनि ने उसका नाम सगर रखा और उसे वेद, शास्त्र एवं भार्गव नामक आग्नेय शस्त्रों की शिक्षा दी। 💠थोड़ा बड़ा होने पर सगर ने अपने माँ से पूछा कि हम वन में क्यों रहते है ? 💠तब सगर की माँ ने सारी बात उन्हें बतायी। तब सगर ने हैहय और तालजंघ वंशीय राजाओं को नष्ट कर दिया।  💠उसके बाद शक, यवन, कांबोज, पारद और पहल्वगण भी हताहत होकर सगर के कुलगुरु वशिष्ठ के पास गयें।  💠वशिष्ठ जी ने अपनी शक्ति से उन सभी को जीवन्मृत (जीते हुए ही मरे के समान ) कर दिया। जब सगर उनके पीछे वशिष्ठ जी के आश्रम में पहुँचे। 💠तब वशिष्ठ जी ने कहा कि जीते जी मरे के पीछे जाने का क्या लाभ। राजा ने जो आज्ञा कहकर गुरुजी की बात मानी। 💠जीवन्मृत होने के कारण सगर ने उनके वेश बदलवा दिये।  उन्होंने यवनों के सिर मुड़वा दिये,  शकों को अर्द्धमुंडित कर दिया,  पारदों के लंबे - लंबे केश कटवा दिए, पहल्वो के मूंछ दाढ़ी रखवा दी तथा इनको और इनके समान बहुत से क्षत्रियों को भी स्वाध्याय वषट्कारादि से बहिष्कृत कर दिया। 💠 तब महाराज सगर अपनी राजधानी में आकर इस ...

महाराज सगर का जन्म किस ऋषि के आश्रम में हुआ था ?

💠वृक के बाहु नामक पुत्र हुआ जो हैहय और तालजंघ आदि क्षत्रियों से पराजित होकर अपनी गर्भवती पटरानी के सहित वन में चला गया। 💠बाहु की पटरानी (पहली पत्नी) का गर्भ रोकने के इच्छा से  उसकी दूसरी पत्नी ने  उसे विष खिला दिया। जिसके प्रभाव से उसका गर्भ 7 वर्ष तक गर्भाशय ही में रहा।  💠अंत में बाहु वृद्धावस्था के कारण और्व मुनि के आश्रम के समीप मर गये। तब उसकी पटरानी ने अपने पति के साथ सती होने का निश्चित किया। लेकिन और्व  मुनि के समझाने पर उन्होंने  सती होने का विचार त्याग दिया।  💠कुछ समय बाद बाहु की पत्नी ने एक बालक को जन्म दिया। और्व मुनि ने उसका नाम सगर रखा और उसे वेद, शास्त्र एवं भार्गव नामक आग्नेय शस्त्रों की शिक्षा दी।

6 करोड़ गंधर्वों को इक्ष्वाकु वंश के किस राजा ने मारा ?

💠पूर्व काल में रसातल में मौनेय नामक 6 करोड़ गंधर्व रहते थे, उन्होंने सभी नागकुलों के सभी रत्न और अधिकार छीन लिये थे। 💠गंधर्वों से अपमानित उन नागेश्वरों ने भगवान नारायण की स्तुति की और पूछा कि इन गंधर्वों से हमारा भय किस प्रकार शांत हो ? 💠तब भगवान् ने उन्हें बताया कि  युवनाश्व  पुत्र मांधाता का  पुरुकुत्स  नामक पुत्र है उसमें प्रविष्ट होकर मैं उन सभी गंधर्वों का नाश कर दूँगा। 💠यह सुनने के बाद सभी नाग लोक लौट आए और पुरुकुत्स को लाने के लिए (अपनी बहन और पुरुकुत्स की पत्नी)  नर्मदा  से कहा और वे उन्हें ले आयी।  💠रसातल में पहुंचने पर पुरुकुत्स भगवान् के बल से अपना बल बढ़ा लिया और सभी गंधर्वों का वध कर दिया और अपने नगर में लौट आये।  💠उस समय सभी नागराजों ने नर्मदा को यह वर दिया "कि जो कोई तेरा स्मरण करते हुए तेरा नाम लेगा उसको सर्प विष से कोई भय न होगा।  💠श्लोक " नर्मदा को प्रातः काल नमस्कार है और रात्रि काल में भी नर्मदा को नमस्कार है। हे नर्मदे तुमको बारम्बार नमस्कार है, तुम मेरी विष और सर्प से रक्षा करों।" 💠इस श्लोक का उच्चारण करते हुए दि...

स्वर्ग का सिंहासन दिलाने के लिए किसने यज्ञ किया ?

💠 चंद्रवंशीय राजा आयु के पाँच पुत्र थे नहुष, क्षत्रवृद्ध, रम्भ, रजि और अनेना। 💠जिनमें महाराज रजि के 500 पुत्र थे। एक बार देवासुर संग्राम के आरम्भ में  देवता और दैत्यों ने ब्रह्मा जी के पास जाकर पूछा कि हम दोनों में से कौन जीतेगा। 💠तब ब्रह्मा जी ने बताया कि जिस पक्ष से महाराज रजि युद्ध करेंगे उसी पक्ष को विजय प्राप्त होगी। 💠इसके बाद दैत्यों ने रजि से अपनी सहायता के लिए प्रार्थना की, इस पर रजि ने कहा कि, यदि युद्ध के बाद मुझे इंद्र के सिंहासन की प्राप्ति होगी तो मैं आपके पक्ष से युद्ध करूंगा।  💠तब दैत्यों ने कहा कि हमारे इंद्र तो प्रह्लाद जी होंगे। हम लोग अपनी बात से कभी पीछे नहीं हटते। 💠देवताओं ने भी राजा रजि से अपने पक्ष से लड़ने का आग्रह किया। तब रजि में इंद्र के सिंहासन देने को कहा देवताओं ने इनकी यह शर्त स्वीकार कर ली।  💠तब रजि ने देवताओं के पक्ष से युद्ध किया और जीत भी गये।  💠युद्ध जीतने के बाद इंद्र ने रजि के पैर पकड़कर कहा - आपने मेरी भय से रक्षा की है इसलिए आप मेरे पिता समान हैं।  💠तब रजि ने स्वर्ग का सिंहासन छोड़ दिया और अपने राज्य में वापस चले ...

विश्वामित्र और ऋषि जमदग्नि में क्या रिश्ता है ?

💠 चंद्रवंशीय राजा  गाधि की पुत्री का नाम सत्यवती था। उनका विवाह भृगु ऋषि के पुत्र ऋचीक से हुआ था। 💠एक बार ऋचीक ने संतान की कामना से सत्यवती के लिए चरु (यज्ञीय खीर) तैयार किया और पुत्र की उत्पत्ति के लिए चरु सत्यवती की माता के लिए भी बनाया।  💠फिर अपनी पत्नी से बताया कि यह चरु तुम्हारे लिए है और यह तुम्हारी माता के लिए इसका सही प्रकार से उपयोग करना। ऐसा कहकर वे वन चले गये।  💠उनके जाने के बाद सत्यवती की माता ने कहा कि तू अपना चरु मुझे दे दे और मेरा तू ले ले। सत्यवती ने ऐसा ही किया। 💠वन से वापस लौटने पर ऋषि को पता चला कि सत्यवती ने अपना चरु अपनी माँ को दे दिया।  💠तब उन्होंने क्रोधित होकर अपनी पत्नी से कहा कि मैंने माता के चरु में संपूर्ण ऐश्वर्य, पराक्रम, शूरता और बल की संपत्ति का आरोपण किया था और तुम्हारे चरु में शांति, ज्ञान, तितिक्षा आदि संपूर्ण ब्राह्मणोचित गुणों का समावेश किया था।  💠इसका विपरीत उपयोग करने से तुम्हारा बहुत भयानक अस्त्र शस्त्रधारी क्षत्रिय के समान आचरण वाला पुत्र होगा और तुम्हारी माता को शांतिप्रिय ब्राह्मणाचारयुक्त पुत्र होगा। 💠तब सत्...

किस राजा ने 1000 घोड़े लाने की शर्त रखी, अपनी पुत्री के विवाह के लिए ?

💠 चंद्रवंशीय राजा गाधि की पुत्री का नाम सत्यवती था। उनका विवाह भृगु ऋषि के पुत्र ऋचीक से हुआ था। विवाह की शर्त   गाधि ने अति क्रोधी और अति वृद्ध ब्राह्मण को कन्या न देने की इच्छा से ऋचीक से कन्या के मूल्य में जो चंद्रमा के समान कांतिमान और पवन के समान वेगवान हो, ऐसे एक सहस्त्र श्यामकर्ण घोड़े माँगे।  लेकिन महर्षि ऋचीक ने अश्वतीर्थ से उत्पन्न हुए वैसे एक सहस्त्र घोड़े उन्हें वरुण से लेकर दे दिया और सत्यवती से विवाह किया।

कंस पूर्वजन्म में कौन था ?

देवकी के सभी छः बालक जो कंस द्वारा मारे गए थे, वे बालक पूर्वजन्म में हिरण्यकशिपु के भाई कालनेमी के पुत्र थे। कालनेमी का ही जन्म कंस के रूप में हुआ था। इसी से इन्हें इनका पुत्र कहा गया है। इन राक्षस कुमारों ने हिरण्यकशिपु का अनादर कर भगवान की भक्ति की थी, अतः उसने कुपित होकर इन्हें श्राप दिया कि तुम लोग अपने पिता के हाथ से ही मारे जाओगे, यह प्रसंग हरिवंश पुराण में है। 

अप्सरा उर्वशी और राजा पुरुरवा

  उर्वशी और पुरुरवा  💠एक बार अप्सरा उर्वशी की दृष्टि पुरुरवा पर पड़ी। दोनों एक दूसरे के प्रति आसक्त हो गये। तब राजा पुरुरवा ने उर्वशी को अपने साथ रहने के लिए कहा।   💠तब उर्वशी ने बताया कि मेरी एक प्रतीज्ञा है अगर आप इसे मान लें तो मैं आपके साथ रह सकती हूँ। उर्वशी की प्रतिज्ञा   💠उर्वशी की तीन प्रतीज्ञा थी पहला मेरे पुत्र रूपी दो मेषों (भेड़) को आप मेरे शय्या से दूर कभी नहीं करेंगे। 💠दूसरी मैं कभी आपको नग्न न देखने पाऊं। 💠तीसरी केवल घृत (घी) ही मेरा आहार होगा। यही मेरी तीन प्रतिज्ञाएं है।  ये सभी बातें राजा पुरुरवा ने स्वीकार कर ली। पुरुरवा से उर्वशी की प्रतिज्ञा कैसे टूटी ? 💠पुरुरवा ने उर्वशी के साथ विहार करते हुए,60,000 वर्ष बिता दिये। 💠विश्वावसु ने एक दिन, रात्रि के समय गंधर्वों के साथ उर्वशी के एक मेष का हरण कर लिया। उसे आकाश में ले जाते समय उर्वशी ने उसकी आवाज सुन ली। 💠मेरे पुत्र को कौन ले गया। लेकिन यह सुनकर भी राजा पुरुरवा इस भय से की उर्वशी उन्हें नग्न न देख ले, राजा ने उसकी बात को अनसुनी कर दिया और गंधर्व दूसरे मेष को भी ले गये। 💠जब उर्वशी राजा ...