निमी ने वसिष्ठ जी को क्या श्राप दिया ?

✳️इक्ष्वाकु के पुत्र निमी ने एक सहस्त्र वर्ष में समाप्त होने वाले यज्ञ का आरंभ किया।


✳️उस यज्ञ में उन्होंने वसिष्ठ जी को होता (यज्ञ करने वाला) वरण किया। तब वसिष्ठ जी ने निमी से कहा कि पाँच सौ वर्ष के यज्ञ के लिये इंद्र ने मुझे पहले ही वरण कर लिया है। इसलिए इतने समय तुम ठहर जाओ, वहाँ से आने के बाद मैं तुम्हारा यज्ञ करूँगा।


✳️उनके ऐसा कहने पर राजा ने कुछ भी उत्तर नहीं दिया,तब वसिष्ठ जी को लगा कि राजा ने उनकी बात मान ली है और वे इंद्र के यज्ञ में चले गए। 

लेकिन निमी ने उसी समय गौतम ऋषि को होता वरण कर लिया और यज्ञ आरम्भ कर दिया।


✳️देवराज इंद्र का यज्ञ समाप्त होते ही निमी का यज्ञ करना है ऐसा कहकर वे वहाँ से चले आये।


✳️ लेकिन जब वसिष्ठ जी ने अपने स्थान पर गौतम ऋषि को यज्ञ
 का कर्म करते देखा तब क्रोध से सोते हुए निमी को श्राप दिया कि इसने मेरी अवज्ञा करके संपूर्ण कर्म का भार गौतम को सौंपा है इसलिये यह देहहीन हो जायेगा।


निमी का श्राप वशिष्ठ जी को 

✳️सोकर उठने पर राजा निमी को जब ये बातें पता चली तब उन्होंने कहा इस दुष्ट गुरु ने मुझसे बिना बात किये मुझे श्राप दिया है इसलिये इसका देह भी नष्ट हो जाएगा। 

इस प्रकार श्राप देकर राजा ने अपना देह त्याग दिया।


निमी के कारण पलकें झपकते हैं सभी ?


✳️राजा निमी के श्राप से वसिष्ठ जी का लिंगभेद मित्रावरुण के वीर्य में प्रविष्ट हुआ और उर्वशी के देखने से उसका वीर्य स्खलित होने पर उसी से उन्होंने दूसरा देह धारण किया।


✳️निमी का शरीर भी अति मनोहर गंध और तैल आदि से सुरक्षित रहने के कारण गला सड़ा नहीं, बल्कि तत्काल मरे हुए देह के समान ही रहा।


✳️यज्ञ समाप्त होने पर जब देवगण अपना भाग ग्रहण करने के लिये आये तो उनसे वर मांगने को कहा, तब निमी ने कहा मैं अब फिर से अपना शरीर वापस ग्रहण करना नहीं चाहता सभी लोगों के नेत्रों में वास करना चाहता हूँ ।


राजा के ऐसा कहने पर देवताओं ने उनको सभी जीवों के नेत्रों में अवस्थित कर दिया। तभी से प्राणी निमेषोंन्मेष (पलक खोलना मूंदना) करने लगे हैं। 


जनक का जन्म 

तब अराजकता के भय से मुनिजनों ने पुत्रहीन राजा के शरीर को अरणि (शमीदण्ड) से मंथा।


उससे एक पुत्र का जन्म हुआ जो जन्म लेने के कारण जनक कहलाया। इसके पिता विदेह थे इसलिये यह वैदेह कहलाता है और मंथन से उत्पन्न होने के कारण मिथी भी कहा जाता है।

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