श्री कृष्ण के वंशज - 4

अनमित्र और अंधक के वंशज

💠अनमित्र के शिनी नामक पुत्र हुआ,शिनी के पुत्र सत्यक और सत्यक से सात्यकि का जन्म हुआ जिसका दूसरा नाम युयुधान था।


💠सात्यकि के पुत्र संजय ,संजय के पुत्र कुणि और कुणि से युगन्धर का जन्म हुआ। ये सब शैनेय नाम से विख्यात हुये।


💠अनमित्र के वंश में ही पृश्नि का जन्म हुआ। पृश्नि के पुत्र श्वफल्क की थे। श्वफल्क का चित्रक नामक एक छोटा भाई और था। 


💠श्वफल्क की पत्नी गांदिनि से अक्रूर जी का जन्म हुआ तथा (एक दूसरी स्त्री से) उपमदगु , मृदामृद , विश्वारि , मेजय , गिरिक्षत्र , उपक्षत्र , शतघ्न , अरिमर्दन , धर्मदृक , दृष्टधर्म , गंधमोज ,वाह और प्रतिवाह नामक पुत्र तथा सुतारानाम्नी नामक कन्या का जन्म हुआ।


💠देववान् और उपदेव ये दो अक्रूर जी के पुत्र थे तथा श्वफल्क के छोटे भाई चित्रक  के पृथु ,विपृथु आदि अनेक पुत्र थे।

 इनमें से कुकुर, भजमान ,शुचिकम्बल और बार्हिष ये चार अंधक के पुत्र थे।


💠इनमें से कुकुर के पुत्र धृष्ट, धृष्ट के पुत्र कपोतरोमा ,कपोतरोमा के पुत्र विलोमा, तुम्बुरु के मित्र अनु का जन्म हुआ। 


💠अनु के पुत्र आनकदुंदुभि, आनकदुंदुभि के पुत्र अभिजीत ,अभिजीत के पुत्र पुनर्वसु और पुनर्वसु के पुत्र आहुक नामक पुत्र हुआ। 


💠आहुक के देवक और उग्रसेन नामक दो पुत्र हुए। उनमें से देवक के देववान, उपदेव , सहदेव और देवरक्षित नामक 4 पुत्र हुए। इन चारों की वृकदेवा , उपदेवा , देवरक्षिता, श्रीदेवा , शांतिदेवा, सहदेवा और देवकी ये सात भगिनियां थी। इन्हीं सभी का विवाह वसुदेव जी से हुआ था।


💠उग्रसेन के भी कंस , न्यग्रोध , सुनाम , आनकाह्व, शंकु , सुभूमि , राष्ट्रपाल, युद्धतुष्टि और सुतुष्टिमान नामक पुत्र तथा कंसा , कंसावती , सुतनु और राष्ट्रपालिका नाम की कन्याएँ हुई। 


💠भजमान के पुत्र विदूरथ , विदूरथ के पुत्र शूर , शूर के पुत्र शमी , शमी के पुत्र प्रतिक्षत्र ,प्रतिक्षत्र के पुत्र स्वयंभोज ,स्वयंभोज के पुत्र हृदिक तथा हृदिक के  कृतवर्मा , शतधन्वा , देवार्ह और देवगर्भ आदि पुत्र हुए। 


💠देवगर्भ के पुत्र शूरसेन थे। शूरसेन की मारिषा नाम की पत्नी थी। उससे वसुदेव आदि 10 पुत्र उत्पन्न हुये। वसुदेव के जन्म लेते ही देवताओं ने यह पता होने पर की भगवान इनके घर पर अवतार लेंगे। आनक और दुंदुभि आदि बाजे बजाये थे। इसलिए इनका नाम आनकदुंदुभि भी हुआ। 


💠वसुदेव देवभाग, देवश्रवा , अष्टक, ककुच्चक्र , वत्सधारक , सृंजय , श्याम , शमिक और गण्डूष नामक नौ भाई थे और इन वसुदेव आदि दस भाइयों की पृथा , श्रुतदेवा, श्रुतकीर्ति , श्रुतश्रवा और राजाधिदेवी ये पाँच बहने थी। 


💠शूरसेन के कुन्ति नामक एक मित्र थे वे निसंतान थे इसलिए शूरसेन ने अपनी पुत्री पृथा को उन्हें गोद दे दिया , जिसका विवाह महाराज पाण्डु से हुआ था।

जिनके युधिष्ठिर,भीम और अर्जुन नामक तीन पुत्र हुए। इसके पहले अविवाहित अवस्था में ही सूर्य देव द्वारा कर्ण नामक एक कानीन पुत्र हुआ। पाण्डु की दूसरी पत्नी माद्री थी जिनके नकुल और सहदेव नामक दो पुत्र हुए। 


💠शूरसेन की दूसरी कन्या श्रुतदेवा का कारूश नरेश वृद्धधर्मा से विवाह हुआ। उससे दंतवक्र नामक महादैत्य उत्पन्न हुआ।

श्रुतकीर्ति का केकय राज से विवाह हुआ, जिससे उन्हें पाँच पुत्र हुए जिनमें संतर्दन आदि नाम था।

राजाधिदेवी से अवंतिदेशीय विन्द और अनुविन्द का जन्म हुआ। 

श्रुतश्रवा का चेदिराज दमघोष ने व्याह किया, जिससे शिशुपाल का जन्म हुआ। शिशुपाल पूर्वजन्म में हिरण्यकशिपु था जिसे भगवान नरसिंह ने मारा था।


💠वसुदेव जी के पौरवी, रोहिणी, मदिरा, भद्रा और देवकी आदि पत्नियाँ थी। उनमें से रोहिणी से बलभद्र, शठ , सारण , और दुर्मद आदि कई पुत्र हुए।


💠बलराम जी की पत्नी रेवती से विशठ और उल्मुक नामक दो पुत्र हुए।


💠सार्ष्टि ,मार्ष्टि ,सत्य और धृति आदि सारण के पुत्र थे। इनके अतिरिक्त भद्राश्व , भद्रबाहु , दुर्दम, और भूत आदि भी रोहिणी जी की संतान थे। 


💠नन्द, उपनन्द और कृतक आदि मदिरा के तथा उपनिधि और गद आदि भद्रा के पुत्र थे। वैशाली के गर्भ से कौशिक नामक केवल एक ही पुत्र का जन्म हुआ।


💠आनकदुंदुभि (वसुदेव) के देवकी से कीर्तिमान, सुषेण, उदायु, भद्रसेन, ऋजुदास तथा भद्रदेव नामक छः पुत्र हुए। 

💠इन सबको कंस ने मार डाला और भगवान की इच्छा से योगमाया ने देवकी के सातवें गर्भ को आधी रात के समय खींचकर रोहिणी के गर्भ में स्थापित कर दिया ,आकर्षण करने से इस गर्भ का नाम संकर्षण हुआ। 

फिर देवकी की आठवीं संतान श्री कृष्ण का जन्म हुआ।


💠भगवान श्री कृष्ण की 16108 रानियाँ थी,उनमें रुक्मिणी, सत्यभामा आदि प्रमुख हैं। जिससे 180,000 पुत्र हुए। 


💠 श्री कृष्ण के प्रद्युम्न, चारुदेष्ण और सांब आदि तेरह पुत्र प्रधान थे। प्रद्युम्न ने भी रुक्मी की पुत्री रूक्मवती से विवाह किया।


💠प्रद्युम्न के पुत्र अनिरुद्ध थे। अनिरुद्ध ने रुक्मी की पौत्री सुभद्रा से विवाह किया था, उससे वज्र का जन्म हुआ। वज्र के पुत्र प्रतिबाहु तथा प्रतिबाहु के पुत्र सुचारू था।

 

यादव कुमारों को धनुर्विद्या की शिक्षा देने वालों की संख्या 3 करोड़ 88 लाख थी। तब यादवों की गणना करना कठीन है।


💠देवासुर संग्राम में जो दैत्य मारे गए थे वे मनुष्य लोक में उपद्रव करने वाले राजा लोग होकर उत्पन्न हुए। उनका नाश करने के लिए देवताओं ने यदुवंश में जन्म लिया, जिसमें 101 कुल थे। उनका नियंत्रण और स्वामित्व भगवान् विष्णु ने ही किया।

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