चन्द्रवंशीय राजा किसके वंशज थे ?

💠चन्द्रवंश (सोमवंश ) के नहुष, ययाति, कार्तवीर्य और अर्जुन आदि अनेक राजा हुए।


💠संपूर्ण जगत के रचयिता भगवान नारायण के नाभि कमल से ब्रह्मा जी के पुत्र अत्रि प्रजापति उत्पन्न हुए थे, उनके पुत्र चंद्रमा को ब्रह्मा जी ने संपूर्ण औषधि, द्विजन और नक्षत्र गण के अधिपत्य दे दिया। 


💠चंद्रमा ने राजसूय यज्ञ किया और राजमद में चूर होकर देवताओं के गुरु बृहस्पति जी की पत्नी तारा को हरण कर लिया और सभी के समझाने पर भी उसे वापस नहीं लौटाया। उन्हीं तारा और चंद्रदेव का पुत्र बुध था।


पुरुरवा वंश 

💠बुध की पत्नी इला से पुरुरवा का जन्म हुआ। पुरुरवा अति दानशील, यज्ञिक और वृद्ध थे। मित्रवरुण के श्राप के कारण उन्हें पृथ्वी पर शोक करना पड़ा।


💠राजा पुरुरवा के आयु, अमावसु, विश्वावसु, श्रुतायु, शतायु और अयुतायु नामक छ: पुत्र हुए। अमावसु के भीम, भीम के कांचन, कांचन के सुहोत्र और सुहोत्र के जाह्नु नामक पुत्र हुआ। 


💠जह्नु के सुमन्तु नामक पुत्र थे। सुमन्तु के पुत्र अजक, अजाक के पुत्र बलाकाश्व, बलाकाश्व के पुत्र कुश और कुश के कुशांब, कुशनाभ, अधुर्त्तरजा, और वसु नामक चार पुत्र थे। 


💠उनमें से कुशांब ने इस इच्छा से की मेरे इंद्र के समान पुत्र हो, तपस्या की। उनके उग्र तप को देखकर बल में कोई और मेरे समान न हो जाए, इस भय से इंद्र स्वयं ही इनके पुत्र हो गया। वह गाधि नामक पुत्र कौशिक कहलाया।


💠गाधि ने सत्यवती नाम की कन्या को जन्म दिया और उनका विवाह भृगु ऋषि के पुत्र ऋचीक से कर दिया। 


💠गाधि ने अति क्रोधी और अति वृद्ध ब्राह्मण को कन्या न देने की इच्छा से ऋचीक से कन्या के मूल्य में जो चंद्रमा के समान कांतिमान और पवन के समान वेगवान हो, ऐसे एक सहस्त्र (1000) श्यामकर्ण घोड़े की माँगे। 
महर्षि ऋचीक राजा की शर्त पूरी की और सत्यवती से विवाह किया।


💠 महर्षि ऋचीक और सत्यवती के पुत्र जमदग्नि हुये,सत्यवती की माता ने विश्वामित्र को जन्म दिया तथा सत्यवती कौशिकी नाम की नदी हो गयी। 


💠जमदग्नि ने इक्ष्वाकु कुल के रेणू की कन्या रेणुका से विवाह किया। जिससे परशुराम जी का जन्म हुआ,जो भगवान नारायण के अंश थे।


💠देवताओं ने विश्वामित्र जी को भृगुवंशी शुन:शेप पुत्र रूप से दिया था। बाद में उनके एक देवरात नामक पुत्र हुआ और फिर मधुच्छन्द, धनञ्जय, कृतदेव, अष्टक, कच्छप और हारीतक नामक और भी पुत्र हुए, जिनका अन्य ऋषि वंशों में विवाह हुआ और वे कौशिक गोत्रिय हुए।


काश्य वंश 

💠आयु नामक जो पुरुरवा का बड़ा पुत्र थे, उन्होंने राहु की कन्या से विवाह किया। उनके पाँच पुत्र हुए, नहुष क्षत्रवृद्ध, रम्भ, रजि और अनेना थे।


💠क्षत्रवृद्ध के सुहोत्र नामक पुत्र और सुहोत्र के काश्य, काश, गृत्समद नामक तीन पुत्र हुए। गृत्समद के पुत्र शौनक चातुर्वर्ण्य का प्रवर्तक हुआ।


💠काश्य का पुत्र काशीराज काशेय हुये। उनके पुत्र राष्ट्र, राष्ट्र के पुत्र दीर्घतपा और दीर्घतपा के धन्वंतरि नामक पुत्र हुए। 


💠धन्वंतरि को पूर्व जन्म में भगवान नारायण ने यह वर दिया था कि काशीराज के वंश में उत्पन्न होकर संपूर्ण आयुर्वेद को लेकर आठ भागों में विभक्त करोगे और यज्ञ भाग के भोक्ता होगे।


💠धन्वंतरि के पुत्र केतुमान, केतुमान के पुत्र भीमरथ, भीमरथ के पुत्र दिवोदास तथा दिवोदास के पुत्र प्रतर्दन थे।


💠उन्होंने मद्रश्रेण्य वंश का नाश करके सभी शत्रुओं पर विजय प्राप्त की थी, इसलिए उनका नाम शत्रुजीत पड़ा।


💠दिवोदास ने अपने पुत्र (प्रतर्दन) से अत्यंत प्रेमवश वत्स कहा इसलिए इसका नाम वत्स हुआ।


💠अत्यंत सत्यपरायण होने के कारण ऋतुध्वज हुआ। फिर इन्होंने कुवलय नामक अश्व को प्राप्त किया। इसलिए यह पृथ्वीतल पर कुवलयाश्व नाम से विख्यात हुआ। इस वत्स के अलर्क नामक पुत्र थे।


💠पूर्वकाल में अलर्क के अतिरिक्त और किसी ने भी 66000 वर्ष तक युवा रहकर इस पृथ्वी का भोग नहीं किया।


💠 अलर्क के भी सन्नति नामक पुत्र हुआ, सन्नति के पुत्र सुनीथ, सुनीथ के पुत्र सुकेतु, सुकेतु के पुत्र धर्मकेतु, धर्मकेतु के पुत्र सत्यकेतु और सत्यकेतु के पुत्र विभु हुये।


💠विभु के पुत्र सुविभु, सुविभु के पुत्र सुकुमार, सुकुमार के पुत्र धृष्टकेतु, धृष्टकेतु के पुत्र वितिहोत्र, वितिहोत्र के पुत्र भार्ग और भार्ग के पुत्र भार्गभूमि,भार्गभूमि के पुत्र चातुर्वर्ण्य थे।


 रजि वंश

💠आयु के पाँच पुत्र थे नहुष क्षत्रवृद्ध, रम्भ, रजि और अनेना। जिनमें महाराज रजि के 500 पुत्र थे।


💠(आयु के दूसरे पुत्र) रम्भ संतानहीन थे। क्षत्रवृद्ध के पुत्र प्रतिक्षत्र, प्रतिक्षत्र के पुत्र संजय, संजय के पुत्र जय, जय के पुत्र विजय, विजय के पुत्र कृत, कृत के पुत्र हर्यधन और हर्यधन के पुत्र सहदेव थे।


💠सहदेव के पुत्र अदीन, अदीन के पुत्र जयत्सेन, जयत्सेन की पुत्री संस्कृति और संस्कृति का क्षत्रधर्मा नामक पुत्र हुआ। ये सब क्षत्रवृद्ध के वंशज हुए।

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