श्री कृष्ण के वंशज - 2
ययाति पुत्र अनु का वंश
💠ययाति के चौथे पुत्र अनु के सभानल, चक्षु और परमेषु नामक तीन पुत्र थे। सभानल के पुत्र कालानल, कालानल के पुत्र सृंजय, सृंजय के पुत्र पूरंजय ,पूरंजय के पुत्र जनमेजय, जनमेजय के पुत्र महाशाल ,महाशाल के पुत्र महामना और महामना के उशीनर तथा तितिक्षु नामक दो पुत्र हुए।
💠उशीनर के शिबि, नृग, नर, कृमि और वर्म नामक पाँच पुत्र हुए। उनमें से शिबि के पृषदर्भ , सुवीर , केकय और मद्रक ये चार पुत्र थे।
💠तितिक्षु के पुत्र रुशद्रथ, रुशद्रथ के पुत्र हेम, हेम के पुत्र सूतपा तथा सूतपा के बलि नामक पुत्र हुआ।
💠 इन बलि के क्षेत्र (रानी) में दीर्घतमा नामक मुनि ने अंग, वंग , कलिंग, सुह्य और पौण्ड्र नामक पाँच वालेया क्षत्रिय उत्पन्न हुये। इन पाँच बलि पुत्रों के नाम से पाँच देशों के भी ये ही नाम पड़े।
💠इनमें अंग के पुत्र अनपान, अनपान के पुत्र दिविरथ, दिविरथ के पुत्र धर्मरथ और धर्मरथ के पुत्र चित्ररथ का जन्म हुआ, जिसका दूसरा नाम रोमपाद था।
💠 इन रोमपाद के मित्र दशरथ जी थे। अज के पुत्र दशरथ जी ने रोमपाद को संतानहीन देखकर उन्हें अपनी पुत्री शांता को गोद दे दिया।
💠रोमपाद के पुत्र चतुरंग थे,चतुरंग के पृथुलाक्ष और पृथुलाक्ष के चम्प नामक पुत्र हुआ। जिसने चम्पा नाम की पुरी बसायी थी।
💠चम्प के हर्यंग नामक पुत्र, हर्यंग के पुत्र भद्ररथ ,भद्ररथ के पुत्र बृहद्रथ ,बृहद्रथ के पुत्र बृहत्कर्मा , बृहत्कर्मा के पुत्र बृहद्भानु , बृहद्भानु के पुत्र बृहन्मना और बृहन्मना से जयद्रथ का जन्म हुआ।
💠जयद्रथ की ब्राह्मण और क्षत्रिय के संसर्ग से उत्पन्न हुई पत्नी के गर्भ से विजय नामक पुत्र का जन्म हुआ। विजय के पुत्र धृति ,धृति के पुत्र धृतव्रत, धृतव्रत के पुत्र सत्यकर्मा और सत्यकर्मा से अतिरथ का जन्म हुआ।
जिसने कि (स्नान के लिए ) गंगाजी में जाने पर पिटारी में रखकर पृथा द्वारा बहाये हुए कर्ण को पुत्र रूप में पाया। कर्ण का पुत्र वृषसेन था, अंग वंश इतना ही है।
ययाति पुत्र पुरु का वंश
💠पुरु के पुत्र जनमेजय थे,जनमेजय के पुत्र प्रचिन्वान् ,प्रचिन्वान् के पुत्र प्रवीर ,प्रवीर के पुत्र मनस्यु, मनस्यु के पुत्र अभयद ,अभयद के पुत्र सुद्यु ,सुद्यु के पुत्र बहुगत, बहुगत के पुत्र संयाति,संयाति के पुत्र अहंयाति तथा अहंयाति के पुत्र रौद्राश्व थे।
💠रौद्राश्व के पुत्र ऋतेषु ,कक्षेषु ,स्थण्डिलेषु ,कृतेषु ,जलेषु ,धर्मेषु ,घृतेषु ,स्थलेषु ,सन्नतेषु और वनेषु नामक दस पुत्र थे।
💠ऋतेषु के पुत्र अंतिनार हुये तथा अंतिनार के सुमति, अप्रतिरथ और ध्रुव नामक तीन पुत्र हुए।
उनमें से अप्रतिरथ का पुत्र कण्व और कण्व का मेधातिथि हुआ जिसकी संतान काण्वायन ब्राह्मण हुए।
💠अप्रतिरथ के दूसरे पुत्र ऐलीन थे। ऐलीन के दुष्यंत आदि चार पुत्र थे। दुष्यंत के यहाँ चक्रवर्ती सम्राट भरत का जन्म हुआ।
💠भरत की तीन स्त्रियाँ थी जिनके नौ पुत्र हुए। भरत के ये कहने पर कि ये सभी मेरे अनुरूप नहीं है, इनकी माताओं ने इस भय से की राजा हमें त्याग देंगे, सभी पुत्रों को मार डाला।
💠तब भरत ने पुत्र की कामना से मरुत्सोम नामक एक यज्ञ किया। उस यज्ञ के अंत में मरुद् - गण ने उन्हें भरद्वाज नामक एक पुत्र दिया, जो उतथ्यपत्नी ममता के गर्भ में स्थित दीर्घतमा मुनि के पाद -प्रहार से स्खलित हुए बृहस्पति जी के वीर्य से उत्पन्न हुआ था।
पुत्र जन्म विफल होने पर मरुद् गण ने राजा भरत को भरद्वाज दिया था, इसलिए उसका नाम वितथ भी हुआ।
💠वितथ के पुत्र मन्यु हुये, मन्यु के बृहत्क्षत्र ,महावीर्य , नर और गर्ग आदि कई पुत्र हुए। नर के पुत्र संकृति और संकृति के गुरुप्रीति एवं रंतिदेव नामक दो पुत्र हुए।
💠गर्ग के पुत्र शिनी हुये जिससे कि गार्ग्य और शैन्य नाम से विख्यात क्षेत्रोपेत ब्राह्मण उत्पन्न हुए। उनके त्रय्यारुणि , पुष्करिण्य और कपि नामक तीन पुत्र हुए।
💠ये तीनों पुत्र पीछे ब्राह्मण हो गये थे। बृहत्क्षत्र के पुत्र सुहोत्र, सुहोत्र के पुत्र हस्ती थे जिन्होंने हस्तिनापुर नामक नगर बसाया था।
💠हस्ती के तीन पुत्र अजमीढ, द्विजमीढ और पुरुमीढ थे। अजमीढ के पुत्र कण्व और कण्व के पुत्मधातिथि नामक पुत्र हुये, जिससे कि काण्वायन ब्राह्मण उत्पन्न हुए।
💠अजमीढ के दूसरा पुत्र बृहदिषु थे। बृहदिषु के पुत्र बृहद्धनु,बृहद्धनु के पुत्र बृहत्कर्मा,बृहत्कर्मा के पुत्र जयद्रथ ,जयद्रथ के पुत्र विश्वजित तथा विश्वजित के पुत्र सेनजित हुये।
💠सेनजित के रुचिराश्व , काश्य, दृढ़हनु और वत्सहनु नामक चार पुत्र हुए। रुचिराश्व के पुत्र पृथुसेन, पृथुसेन के पुत्र पार और पार के पुत्र नील हुये।
💠नील के सौ पुत्र थे, जिनमें काम्पिल्य नरेश समर प्रधान थे। समर के पार, सुपार और सदश्व नामक तीन पुत्र थे। सुपार के पुत्र पृथु,पृथु के पुत्र सुकृति, सुकृति के पुत्र विभ्राज और विभ्राज के अणुह नामक पुत्र हुआ, जिसने शुककन्या कीर्ति से विवाह किया था।
💠अणुह से ब्रह्मदत्त का जन्म हुआ। ब्रह्मदत्त के पुत्र विष्वक्सेन,विष्वक्सेन के पुत्र उदक्सेन तथा उदक्सेन के भल्लाभ नामक पुत्र उत्पन्न हुआ।
💠द्विजमीढ के पुत्र यवीनर थे उसके पुत्र धृतिमान,धृतिमान के पुत्र सत्यधृति ,सत्यधृति के पुत्र दृढ़नेमि,दृढ़नेमि के पुत्र सुपार्श्व ,सुपार्श्व के पुत्र सुमति, सुमति का सन्नतिमान् तथा सन्नतिमान् के पुत्र कृत हुआ, जिसे हिरण्यनाभ ने योगविद्या की शिक्षा दी थी। जिसने प्राच्य सामग श्रुतियों की 24 संहिताएँ रची थी। कृत के पुत्र उग्रायुध थे जिसने अनेकों नीपवंशीय क्षत्रियों का नाश किया।
💠उग्रायुध के पुत्र क्षेम्य,क्षेम्य के पुत्र सुधीर, सुधीर के पुत्र रिपुंजय और रिपुंजय के पुत्र बहुरथ ने हुये। ये सब पुरुवंशीय राजागण हुए।
💠अजमीढ की नलिनीनाम्नी एक भार्या थी। उसके नील नामक एक पुत्र हुआ। नील के पुत्र शान्ति, शान्ति के पुत्र सुशांति, सुशांति के पुत्र पूरंजय, पूरंजय के पुत्र ऋक्ष और ऋक्ष के पुत्र हर्यश्व नामक पुत्र हुआ।
हर्यश्व के मुद्गल, सृंजय ,बृहदिषु ,यवीनर और काम्पिलय नामक पाँच पुत्र हुए। पिता ने कहा था कि मेरे ये पुत्र मेरे आश्रित पाँचों देशों की रक्षा करने में समर्थ हैं, इसलिए वे पांचाल कहलाये।
💠मुदगल (मुद्गल) से मौदगल्य नामक क्षत्रोपेत ब्राह्मणों की उत्पत्ति हुई। मुद्गल से बृहदश्व और बृहदश्व से दिवोदास नामक पुत्र एवं अहल्या नाम की एक कन्या का जन्म हुआ।
💠अहल्या (अहिल्या) से गौतम ऋषि का विवाह हुआ जिससे शतानंद का जन्म हुआ। शतानंद से धनुर्वेद का पारदर्शी सत्यधृति उत्पन्न हुआ।
💠 एक बार अप्सराओं में श्रेष्ठ उर्वशी को देखने से सत्यधृति का वीर्य स्खलित होकर शरस्तम्ब (सरकण्डे) पर पड़ा, उसके दो भागों में बंट जाने के कारण पुत्र और पुत्री रूप दो संताने उत्पन्न हुई।
उन्हें शिकार के लिए गये हुए शांतनु कृपावश ले आये। पुत्र का नाम कृप और कन्या का नाम कृपी हुआ। कृपी का विवाह द्रौणाचार्य से हुआ और इनका पुत्र अश्वत्थामा हुआ।
💠दिवोदास का पुत्र मित्रायु हुआ। मित्रायु के पुत्र च्यवन नामक राजा हुआ,च्यवन के पुत्र सुदास ,सुदास के पुत्र सौदास,सौदास के पुत्र सहदेव, सहदेव के पुत्र सोमक और सोमक के सौ पुत्र हुए, इनमें जंतु सबसे बड़ा और पृषत सबसे छोटा था।
💠पृषत के पुत्र द्रुपद, द्रुपद के पुत्र धृष्टद्युम्न और धृष्टद्युम्न का पुत्र धृष्टकेतु था।
💠अजमीढ का ऋक्ष नामक पुत्र और था। उसका पुत्र संवरण हुआ तथा संवरण का पुत्र कुरु था जिसने कि कुरूक्षेत्र की स्थापना की।
💠कुरु के पुत्र सुधनु, जह्नु और परीक्षित आदि हुए। सुधनु के पुत्र सुहोत्र थे। सुहोत्र के पुत्र च्यवन,च्यवन के पुत्र कृतक और कृतक के पुत्र उपरिचर वसु हुआ।
💠वसु के पुत्र बृहद्रथ, प्रत्यग्र, कुशाम्बु, कुचेल और मात्स्य आदि सात पुत्र थे। इनमें से बृहद्रथ के पुत्र कुशाग्र,कुशाग्र के पुत्र वृषभ,वृषभ के पुत्र पुष्पवान,पुष्पवान के पुत्र सत्यहित,सत्यहित के पुत्र सुधन्वा और सुधन्वा से जतु का जन्म हुआ।
💠बृहद्रथ के दो खण्डों में विभक्त एक पुत्र हुआ था जो जरा के द्वारा जोड़ दिये जाने के पर जरासंध कहलाया। जरासंध से सहदेव का जन्म हुआ और सहदेव के पुत्र सोमप ,सोमप के पुत्र श्रुतिश्रवा की उत्पत्ति हुईं।

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