श्री कृष्ण के वंशज - 1
💠ययाति ने शुक्राचार्य जी की पुत्री देवयानी और वृषभपर्वा की पुत्री शर्मिष्ठा से विवाह किया था।
💠देवयानी ने यदु और तुर्वसु को जन्म दिया तथा शर्मिष्ठा ने द्रुह्यु, अनु और पुरु को जन्म दिया।
💠ययाति को शुक्राचार्य जी के श्राप से असमय ही वृद्धावस्था आ गई। फिर क्षमा माँगने पर शुक्राचार्य जी ने ययाति को वृद्धावस्था किसी और को देने की छूट दी।
ययाति ने अपने सभी पुत्रों से अपनी वृद्धावस्था को ग्रहण करने को कहा परन्तु यदु, तुर्वसु, द्रुह्यु और अनु ने उनकी बात नहीं मानी। तब ययाति ने इन सभी को श्राप दे दिया।
💠अंत में सबसे छोटे पुत्र पुरु ने अपने पिता की वृद्धावस्था ग्रहण कर ली। बहुत समय तक ययाति ने अपने विषय भोगों को भोगते हुये मैं सभी कामनाओं का अंत कर दूँगा। ऐसा सोचते हुए फिर पुरु को उनका यौवन वापसी कर दिया।
💠ययाति ने दक्षिण में यदु को, दक्षिण पूर्व दिशा में तुर्वसु को, पश्चिम में द्रुह्यु को, उत्तर में अनु को मांडलिक पद पर नियुक्त किया और पुरु को संपूर्ण भूमंडल का राज्य दे दिया। फिर स्वयं वन चले गये।
तुर्वसु के वंश
💠तुर्वसु का पुत्र वह्नि,वह्नि के पुत्र भार्ग , भार्ग के पुत्र भानु, भानु के पुत्र त्रयीसानु ,त्रयीसानु के पुत्र करंदम और करंदम के पुत्र मरुत्त थे। मरुत्त निसंतान थे इसलिए उन्होंने पुरुवंश का आश्रय लिया।
द्रुह्य वंश
💠 द्रुह्यु के पुत्र बभ्रु ,बभ्रु के पुत्र सेतु ,सेतु के पुत्र आरब्ध ,आरब्ध के पुत्र गांधार ,गांधार के पुत्र धर्म ,धर्म के पुत्र घृत ,घृत के पुत्र दुर्दम, दुर्दम के पुत्र प्रचेता तथा प्रचेता के पुत्र पुत्र शतधर्म थे। इन्होंने उत्तरवर्ती बहुत से म्लेच्छों का आधिपत्य किया।

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