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Showing posts from May, 2021

रोशन सिंह भाग - 3

  काकोरी काण्ड रोशन सिंह काकोरी काण्ड में प्रत्यक्ष रूप से शामिल नहीं थे। बंगाल की अनुशीलन समिति के सदस्य केशव चक्रवर्ती से उनकी शक्ल काफ़ी मिलती थी। अंग्रेज सरकार को लगा की रोशन सिंह खुद इसमें शामिल थे। जब काकोरी काण्ड के लिए अंग्रेज सरकार ने गिरफ्तारियां शूरू की , तब रोशन सिंह को भी गिरफ्तार किया गया और नैनी कारा , इलाहाबाद का भग्नावशेष जहां उन्हे रखा गया था। 

रोशन सिंह भाग - 4

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 फांसी रोशन सिंह को दफा 120 बी और 121ए के तहत 5 - 5 वर्ष की सजा और काकोरी काण्ड के लिए धारा 396 के तहत फांसी की सजा सुनायी गई। जिन्दगी जिंदा दिली को जन ए रोशन , वरना कितने मरते और पैदा होते रहते है।                                  रोशन सिंह 19 दिसम्बर 1927 को फांसी वाले दिन भी रोज की तरह तड़के उठकर व्यायाम किया और गीता पढ़ी।  एक सिपाही ने उनसे पूछा "आपको तो अभी फांसी होने वाली है , तब आप कसरत क्यों कर रहे है ? रोशन सिंह ने कहा " जिस वक्त के लिए जो काम तय हो उसे अवश्य करना चाहिए।" जब ज़िला मजिस्ट्रेट रोशन सिंह को लेने आए तब उनके चेहरे पर मुस्कान थी। वे हाथ में गीता लेकर उनके साथ चल दिए और सीढ़ियां चढ़ते हुए लगातार " वन्दे मातरम् " कह रहे थे। फिर "ॐ ॐ ॐ " कहा और फांसी पर झूल गए।

ठाकुर रोशन सिंह भाग - 1

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 प्रारंभिक जीवन ठाकुर रोशन सिंह का जन्म उत्तर प्रदेश के शाहजहांपुर में 22 जनवरी, 1892 में नवादा नामक गांव में एक संपन्न परिवार में हुआ था। उनके पिता का नाम जंगी सिंह और माता का नाम कौशल्या देवी था। ठाकुर रोशन सिंह अच्छे निशानेबाज और पहलवान भी थे और उनका जुड़ाव आर्य समाज से भी था।

रोशन सिंह भाग - 2

  गोली कांड रोशन सिंह बरेली में चल रहे असहयोग आन्दोलन में शामिल थे। जिसे रोकने के लिए अंग्रेज सरकार ने लाठी चार्ज किया, तब रोशन सिंह ने एक सिपाही की बंदूक छीनकर गोली चला दी। जिससे एक व्यक्ति हताहत हो गया।  इस गोली काण्ड में उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया और सजा सुना दी गई। जेल से बाहर आने के बाद वे राम प्रसाद बिस्मिल से मिले और "हिंदुस्तान रिपब्लिक एसोसिएशन" में शामिल हो गए।  बमरौली 1913 में उन्होंने साथियों के साथ मिलकर अंग्रेजों के वफादार एक चीनी के व्यापारी के यहां डाका डाला।  मोहन लाल नामक व्यक्ति जिसने लूट के समय रोशन सिंह को ललकारा था। रोशन सिंह की गोली का शिकार हो गया। जो की आगे जाकर रोशन सिंह की फांसी का कारण बना। 

भगत सिंह भाग - 16

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  भगत सिंह से जुड़ी कुछ बातें 1) भगत सिंह के जन्म से पहले उनके पिता किशन सिंह, उनके भाई अजीत सिंह और स्वर्ण सिंह इन तीनों को अंग्रेज सरकार ने क्रान्तिकारी आन्दोलन के लिए जेल में बंद कर दिया था। 2) भगत सिंह के जन्म के बाद ही किशन सिंह और अजीत सिंह जेल से छूटे थे। अपने परिवार के लिए खुदकिस्मती लाने के कारण इनका नाम भगत सिंह रखा गया। जिसका अर्थ है  भागों वाला  या भाग्यवान । 3) भगत सिंह ने कॉलेज में कई नाटकों में भाग लिया था ,एक शिक्षक ने उन्हे राणा प्रताप, सम्राट चंद्रगुप्त और भारत दुर्दशा में प्रमुख पात्रों की भूमिका करते देखा तो उन्होंने कहा था, कि एक दिन ये लड़का एक महापुरुष बनेगा। 4) अप्रैल, 1919 में हुए जलियांवाला बाग़ हत्याकांड के बाद भगत सिंह वहां की मिट्टी एक बोतल में भरकर अपने घर में ले आये और अंग्रेजो से बदला लेने की बात कहते थे। 5) भगत सिंह ने कानपुर में कुछ दिनों तक समाचार पत्र बेचकर काम चलाया। यहां भगत सिंह ने अपना नाम बलवंत सिंह रखा था। 6) कुछ समय तक भगत सिंह ने कुछ गायें और भैसें पाली और डेयरी भी चलाई।  7) भगत सिंह ने कीर्ति  और अकाली  नामक अखब...

भगत सिंह भाग - 15

भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव की के शवों को अधजली हालत मे नदी में फेंका  भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव की फांसी के बाद पुलिस ने उनके शव को डर के मारे , जेल की पीछे की दीवार तोड़ कर फिरोजपुर में इनके अन्तिम संस्कार के लिए ले गये । वहां जाकर इनके शवों को जलाया गया और आधे जल जाने पर उन्हें जल्दीबाजी में सतलज नदी में फेक दिया गया और वहां से भाग गए। बाद में जब वहां के स्थानीय लोगों को पता चला कि यहां भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव के शवों को फेंका गया है , तब उन्होंने इसे नदी से निकाल कर उनका अंतिम संस्कार विधि से किया। 

भगत सिंह भाग - 14

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  भगत सिंह की फांसी का दिन 23 मार्च 1931 की सुबह भगत सिंह ने ट्रिव्यून अखबार में रूस के समाजवाद के संस्थापक " लेनिन " के जीवन चरित्र की आलोचना छपी थी।  भगत सिंह " लेनिन " का जीवन चरित्र पढ़ना चाहते थे। उन्होेंने जेल के वॉर्डन द्वारा अपने मित्र प्राणनाथ मेहता को एक गुप्त पत्र भिजवाया। जिसमें लिखा था कि  " अन्तिम वसीयत के बहाने तुरन्त मुझसे मिलो, पर लेनिन का जीवन चरित्र लाना न भूलना।"  यह वो अंतिम पुस्तक थी, जिसके कुछ पन्ने भगत सिंह ने अपनी फांसी से पहले पढ़े थे। लाहौर सेंट्रल जेल के चीफ वॉर्डन चतरसिंह को दोपहर बाद तीन बजे ये सूचना दी गई कि भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव को फांसी दी जाएगी। तीनों की फांसी 24 मार्च, 1930 को होने का हुक्म था, पर तय समय से एक दिन पहले ही तीनों को फांसी पर लटका दिया गया। 23 मार्च,1930 को शाम के साढ़े सात बजे। 

भगत सिंह भाग - 13

  भगत सिंह द्वारा लिखीं किताबें  भगत सिंह राष्ट्र के नव निर्माण के मार्ग खोज रहे थे स्वतंत्रता के बाद कैसी समाज व्यवस्था हो , जिसमें सब लोग सुखी हो ,इसके लिए भगत सिंह ने कुछ किताबें लिखी थी -  1) आत्म कथा 2) मौत के दरवाजे पर 3) समाजवाद आदर्श  4) स्वाधीनता की लड़ाई में पंजाब का पहला उभार जेल से सुरक्षित बाहर भिजवा देने पर भी यह प्रकाशित नहीं हुई और नष्ट हो गई। 

भगत सिंह भाग - 12

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लाहौर षड़यंत्र केस ऑर्डिनेंस  3 मई, 1930 को गवर्नर जनरल " लॉर्ड इर्विन " ने "लाहौर षड़यंत्र केस ऑर्डिनेंस" जारी किया। इसके अनुसार तीन जजों का स्पेशल ट्रिव्यूनल नियुक्त किया गया, जिसे अधिकार दिया गया कि अभियुक्तों की अनुपस्थिति में, सफाई के वकीलों और गवाहों के बिना और बिना सरकारी गवाहों की जिरह के भी वह मुकदमें का एक तरफा फैसला कर सकता है।  इस ट्रिव्यूनल के तीन सदस्यों में से दो अंग्रेज और एक भारतीय था। 5 मई ,1930 को ट्रिव्यूनल की पहली बैठक हुई।   इसके बाद भगत सिंह ने अपने साथियों से कहा यह ऑर्डिनेंस इस बात का सबूत है कि हमारी विजय हुई। उनके कुछ साथी उनसे सहमत थे और कुछ नहीं। वायसराय ने नए ऑर्डिनेंस के ट्रिव्यूनल बनाया। जस्टिस अब्दुल कादिर और जस्टिस जे. के. टैंप को सदस्य नियुक्त किया। तब सभी अभियुक्तों को अदालत आने को कहा , लेकिन भगत सिंह ने कहा कि   " जो लोग हमारे अपमान के लिए जिम्मेदार है उनमें जस्टिस हिल्टन भी है। वे हमसे माफी मांगे तब ही हम अदालत में आयेंगे।" मुकदमें की कार्यवाही 3 महीने तक चलती रही। पुलिस ने 400 से अधिक गवाह पेश किये। 26 अगस्त ,1930 को...

भगत सिंह भाग - 11

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पसंदीदा पुस्तकें 1) चार्ल्स डिकेंस उनके प्रिय लेखक थे। भगत सिंह राजनैतिक और आर्थिक समस्याओं पर आधारित पुस्तकें पढ़ना पसंद करते थे।                    चार्ल्स डिकेंस 2) रीड द्वारा लिखीं " टेन डेज दैट शुख द वर्ल्ड " ,रोपशिन की पुस्तक " रसियन डेमोक्रेसी " और मैक्सिविनी की पुस्तक "प्रिंसिपल ऑफ फ्रीडम" भगत सिंह ने पढ़ी थी।   3) अप्टन सिंक्लेयर के " बोस्टन ", "जंगल" , "ऑयल" उनके प्रिय उपन्यास थे। 4) गोर्गी, मार्क्स , उमर खैयाम, एन्जि, ऑस्कर वाइल्ड , जॉर्ज वरर्नार्ड शा, के साहित्य का उन्होंने बहुत गहराई से अध्ययन किया। भगत सिंह को रवींद्रनाथ टैगोर, कार्लमार्क्स और लेनिन भी पसंद थे। वर्डसवर्थ , टेनिसन, विक्टर ह्यूगो के भी वे प्रशंसक थे।

भगत सिंह भाग - 10

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भगत सिंह का "सिविल मिलिट्री गजट " पत्र जेल सुधार कमेटी ने जेलों में व्यवहार के सम्बन्ध में जो सिफारिशें की थी उन्हें लागू करने के लिए नवम्बर 1929 का समय घोषित किया गया था। लेकिन जनवरी 1930 तक कोई भी कार्यवाही नहीं की गई।  4 फरवरी ,1930 को एक सप्ताह का नोटिस देने के बाद भगत सिंह ने फिर भूख हड़ताल कर दी। सरकार ने घबरा कर एक पत्र प्रकाशित कर नया आश्वासन दिया और भगत सिंह ने भूख हड़ताल तोड़ दी।  इसके बाद भी उन्हें कुछ शिकायतें थी इसलिए उन्होंने अदालत में जाना बंद कर दिया। इस पर "सिविल मिलिट्री गजट " नामक पत्र में एक वक्तव्य छपा कि भगत सिंह ने अपनी और बटुकेश्वर दत्त की ओर से स्पेशल मजिस्ट्रेट को पत्र लिख कर कुछ शिकायतों को दूर करने की मांग की -  1) हमारे साथी अभियुक्त हिंदुस्तान के भिन्न - भिन्न दूर - दूर के प्रांतों के रहने वाले है, इसलिए उनको अपने बन्धुओं से भेंट की सुविधा मिलनी चाहिए। 2) मैं स्वयं पूरे समय के लिए वकील नहीं रख सकता , इसलिए मैं चाहता था कि मेरे आदमी अदालत में रहें। लेकिन बिना कोई कारण बताए उन्हें स्वीकृति न दे कर, लाला अमरदास एडवोकेट को जगह दे दी गई। इंस...

भगत सिंह भाग - 9

  जेल इंक्वायरी कमेटी  2 सितम्बर 1929 को सरकार ने इंक्वायरी कमेटी की स्थापना की। कमेटी के कई सदस्य जेल में आये। भगत सिंह भी उनकी बातचीत में शामिल हुए।  कमेटी के सदस्य इस बात पर राजी हो गए की सब लोग भूख हड़ताल तोड़ दे तो जातींद्रनाथ दास को छोड़ दिया जाएगा ,पर जातींद्रनाथ ने भूख हड़ताल नहीं तोड़ी और सरकार अपनी बात से पलट गई और 13 सितम्बर ,1929 को अपनी भूख हड़ताल के 63 वें दिन वे शहीद हो गए।  तब सरकार द्वारा नियुक्त जेल कमेटी ने अपनी रिर्पोट भेजी। फिर भगत सिंह और उनके साथियों ने भूख हड़ताल खत्म कर दी।  भूख हड़ताल के 114 वें दिन 5 अक्टूबर ,1929 को इस शर्त पर भूख हड़ताल तोड़ने को तैयार हुए कि हम सब को एक ऐसा करने का अवसर दिया जाय। उनकी बात जेल अधिकारियों ने मान ली और फलों का रस दिया गया और भगत सिंह ने "दाल फुलके" की मांग की, पर डॉक्टर ने मना कर किया। फिर भी भगत सिंह अपनी बात पर अड़े रहे और तब इनके लिए "दाल फुलके" और चावल मंगवाया गया।

भगत सिंह भाग - 8

  जेल की भूख हड़ताल  असेंबली बम काण्ड का मुकदमा दिल्ली में चला था, जहां भगत सिंह और बटुकेश्वर दत्त को यूरोपियन वार्ड में रखा गया था और उनके साथ बहुत अच्छा व्यवहार किया गया था।  भगत सिंह और बटुकेश्वर दत्त ने भूख हड़ताल करने का निर्णय लिया क्योंकि उनका उद्देश्य था अपने जीवन की आहुति देकर जेलों में बंद राजनैतिक कैदियों की दशा में सुधार लाना।  जेल में कैदियों को प्रताड़ित किया जाता था। लगातार सवाल पूछे जाना, नींद न लेना घंटो खड़े रखना और इस सबसे भयानक, यह कि तारकोल का तोकरा मुंह पर बांध देना और नीचे से उसे सेकना जिससे उसकी गरम लौ सांसों से जा कर बहुत कष्ट दे।    भगत सिंह और बटुकेश्वर दत्त ने 14 जून से भूख हड़ताल शुरू की। बिना खाए वे इतने कमजोर हो गए थे की उन्हें जेल की कोठरी तक पहुंचने के लिए स्ट्रेचर का उपयोग करना पड़ा। 10 जुलाई , 1929 को लाहौर के मजिस्ट्रेट श्री कृष्ण की अदालत में सांडर्स हत्याकाण्ड का मुकदमा शुरू हुआ तो भगत सिंह और बटुकेश्वर दत्त को स्ट्रेचर पर लाते देख दर्शकों में हाहाकार मच गया। उसी दिन बोस्र्टल जेल के उनके साथी अभियुक्तों ने उनकी सहानुभूत...

भगत सिंह भाग - 7

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भगत सिंह और असेंबली बम ब्लास्ट का मुकदमा और हाई कोर्ट में अपील   दिल्ली जेल में 4 जून ,1929 को मुकदमे की सुनवायी सेशन जज " मिस्टर मिडलटन" की अदालत में आरंभ हुई।  सरकारी गवाहों के बयान के बाद भगत सिंह ने अपनी और बटुकेश्वर दत्त की ओर से 6 जून, 1929 को जो बयान दिया और 10 जून 1929  को केस की सुनवायी खत्म हो गई। उसके तुरन्त बाद ही भगत सिंह को "मियांवाली जेल" में और बटुकेश्वर दत्त को "लाहौर सेंट्रल जेल" में भेज दिया गया।  हाई कोर्ट में अपील  असेंबली बम काण्ड में मुकदमें में बचाव की कोशिश बिल्कुल भी नहीं की गई थी। फिर भी सेशन जज के फैसले की अपील हाई कोर्ट में कर दी गई। यह भी भगत सिंह की योजना का ही एक अंग था।  भगत सिंह अपने विचारों को हाई कोर्ट के मंच के माध्यम से जनता तक पहुंचाना चाहते थे।  जस्टिस फोर्ड और जस्टिस एडिसन के सामने लाहौर हाई कोर्ट में अपील पेश हुई। सभी का बयान सुनने के बाद सेशन जज के फैसले को बहाल रखते हुए भगत सिंह और बटुकेश्वर दत्त को आजन्म कारावास का दण्ड सुना दिया।

भगत सिंह भाग - 5

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नौजवान भारत सभा का उद्देश्य भगत सिंह कानपुर से नौजवान भारत सभा के इस काम में उनके साथी थे भगवतीचरण वोहरा। इसे सभी क्रांतिकारियों का समर्थन मिला।  सभा ने भारतीय स्वतंत्रता के लिए बलिदान होने वाले शहीदों का "बलिदान दिवस " मनाना शुरू किया, जिससे जन - जन तक इस संस्था का नाम पहुंच गया। इस सभा का उद्देश्य थे -  1) समस्त भारत के मजदूरों और किसानों का एक पूर्ण स्वतंत्र गणराज्य स्थापित करना। 2) अखण्ड भारत राष्ट्र के निर्माण के लिए नौजवानों में देशभक्ति की भावना उत्पन्न करना। 3) ऐसे सभी आंदोलनों की सहायता करना जो सांप्रदायिकता विरोधी हों , और  4) किसानों और मजदूरों को संगठित करना। क्रान्तिकारी दल के लिए जोशीले सदस्यों की खोज भी सभा का एक उद्देश्य था। इसी काम के लिए भगत सिंह ने लाहौर के विद्यार्थियों की भी एक यूनियन संगठित की थी, जो " नौजवान भारत सभा " का ही एक अंग है। 

भगत सिंह भाग - 6

  हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन  8 और 9 सितम्बर ,1928 को दिल्ली के पुराने किले (तुगलक फोर्ट) में क्रांतिकारी दल की बैठक हुई, जिसमें पंजाब, उत्तर प्रदेश, बिहार और राजपूताना के क्रांतिकारी आये थे। दल के प्रमुख नेता और " हिंदुस्तान प्रजातंत्र सेना " के कमांडर - इन - चीफ चंद्रशेखर आजाद इस बैठक में नहीं आ सके थे। भगत सिंह ने दल की केंद्रीय समिति का निर्माण करके दल को नया रूप दिया और क्रांतिकारी संगठन का नाम " हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन" (हिंदुस्तान समाजवादी प्रजातंत्र संघ) कर दिया, जिसका अर्थ था क्रान्ति के उद्देश्य समाजवादी समाज की स्पष्ट घोषणा। इस निर्णय में विजय सिन्हा , शिववर्मा तथा सुखदेव जैसे कई साथी भगत सिंह के सहायक थे।  इस बैठक में साथी विभिन्न प्रान्तों के इंचार्ज नियुक्त किए गए। भगत सिंह और विजय कुमार सिन्हा को प्रांतों के बीच संपर्क स्थापित करने का काम सौंपा गया।  भगत सिंह बम बनाने के लिए कुछ रासायनिक द्रव्य खरीदने कलकत्ता गए। जहां उन्होंने फणींद्रनाथ घोष और यतींद्रनाथ दास के साथ मिलकर बम में काम आने वाली " गनकाटन " तैयार की। वा...

भगत सिंह भाग - 4

भगत सिंह की पहली गिरफ्तारी   एक बार जब वे अमृतसर में एक ट्रेन से उतरे तब अंग्रेज सरकार के कुछ खुफिया लोग उनके पीछे लग गए और ट्रेन में बैठकर लाहौर पहुंचे। वहां पहुंचते ही उन्हें  गिरफ्तार कर लिया गया और लाहौर फोर्ट जेल में बंद कर दिया। 1926 में दशहरा मेले में उपद्रवियों ने बम फेंक दिया था। जिससे 10 - 12 लोग मर गये और 50 लोग घायल हो गये थे। जिसके लिए भगत सिंह को गिरफ्तार किया गया। दूसरे क्रांतिकारियों के बारे में जानने के लिए उन्हें तरह - तरह यातनाएं दी। वे उन्हें कांटेदार चाबुक से पीटते थे और भाले से उनकी देह को छेड़ते थे, लेकिन भगत सिंह ने उन्हें कुछ नहीं बताया। अंत में एक मजिस्ट्रेट ने यह फैसला दिया कि 60 हजार रुपए की जमानत देने पर भगत सिंह को रिहा किया जा सकता है। ये जमानत दुनीचंद और दौलतराम ने दी। 

भगत सिंह भाग - 3

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भगत सिंह का विवाह  1923 में भगत सिंह की दादी उनका विवाह करना चाहती थी। जिसके लिए उन्होंने एक लड़की भी पसंद कर ली। कुछ रस्में तय की गई , लेकिन ठीक उसी दिन क्रांति के नेता ने उन्हें बुलाया और भगत सिंह लाहौर चले गए।  भगत सिंह ने घर से जाने से पहले एक खत लिखा था कि  " मेरे जीवन का उद्देश्य भारत की स्वतंत्रता के लिए लड़ना ही है। मुझे सांसारिक सुख की चाह नहीं है। मेरे यज्ञोंपवीत के समय मेरे चाचा जी ने मुझसे एक पवित्र वचन लिया था। मैने देश की खातिर बलिदान हो जाने की प्रतिज्ञा की थी। तदानुसार, मैं अपनी खुद की खुशियों को त्याग रहा हूं और देश की सेवा के लिए घर से बाहर जा रहा हूं। " जब उनकी दादी सख्त बीमार पड़ी, तब उनके पिताजी ने "वन्देमातरम " अख़बार में विज्ञापन छपवाया की भगत सिंह जहां भी है, फौरन वापस आ जाये। उनसे शादी की कोई बात नहीं की जाएगी। 

भगत सिंह भाग - 2

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साइमन कमीशन  फरवरी 1928 को एक कमिटी इंग्लैंड से भारत आयी,जो साइमन कमीशन के नाम से प्रसिद्ध है। इस कमीशन का काम यह निर्धारित करना था कि भारत की जनता को किस हद तक स्वतंत्रता और जिम्मेदारी सौंपी जा सकती है। लेकिन इसका एक भी सदस्य भारतीय नहीं था। भारत के लोग इससे बहुत नाराज थे। सब चाहते थे की "साइमन कमीशन " वापस जाये। जब साइमन कमीशन लाहौर पहुंचा तो " नव भारत सभा " के द्वारा आयोजित हजारों लोगों के जुलूस ने इसका विरोध किया। उस समय " स्कॉट " नामक पुलिस सुप्रीटेंडेंट ने लाठीचार्ज का आदेश दे दिया। पुलिस ने लोगों को लाठियों से पीटना शुरू कर दिया और वहां भगदड़ मच गई।  लाला लाजपत राय और उनके साथी लोग वहां से बिल्कुल नहीं हटे। तब एक पुलिस सार्जेंट जिसका नाम "सांडर्स" था, दौड़कर आगे बढ़ा और उसने लाला लाजपत राय की छाती पर बेतों से वार किया। लाला जी बूढ़े थे और उन दिनों बीमार थे। छाती पर इस प्रहार वे बिस्तर पर पड़ गये, और एक महीने बाद उनका निधन हो गया। क्रांतिकारियों में लाला जी की मौत का बदला लेने के लिए भगत सिंह और राजगुरु ने "सांडर्स" को गोली मार दी...

भगत सिंह भाग - 1

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  जन्म   भगत सिंह का जन्म 28 सितंबर ,1907 को लगभग सुबह के 9 बजे, उस समय के पंजाब प्रान्त में ,लायलपुर जिले में,  बंगा   नामक गांव में हुआ था। उनके पिता का नाम किशन सिंह और मां का नाम विद्यावती देवी था। वे अपने माता पिता की तीसरी संतान थे। शिक्षा   भगत सिंह की शिक्षा बंगा गांव के प्राइमरी स्कूल में शुरू हुई। प्राइमरी स्कूल से पास होने पर भगत सिंह अपने माता पिता के पास नवांकोट, लाहौर चले गए। जहां उनका दाखिला 1916 में डी. ए. वी. स्कूल में पांचवी कक्षा में करा दिया गया। जहां उन्होंने संस्कृत ऊर्दू और अंग्रेजी की शिक्षा ली। 1923 में भगत सिंह ने एफ. ए. इण्टर की परीक्षा पास की और बी. ए. के प्रथम वर्ष में दाखिला हुए।  कानपुर में वे एक क्रांतिकारी गणेश शंकर विद्यार्थी के संपर्क में आए। भगत सिंह को उनके दैनिक समाचार पत्र " प्रताप " के कार्यालय में एक जगह मिल गयी और वहीं उन्हें एक क्रांतिकारी के रुप में प्रथक प्रशिक्षण मिला। कानपुर में भगत सिंह बलवंत सिंह के नाम से रहते थे। भगत सिंह को विद्यार्थी जी ने शादीपुर गाँव (जिला अलीगढ़ ) के नेशनल स्कूल में हेड मास्टर बनवा दि...