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Showing posts from March, 2021

ऊधमसिंह भाग - 4

 ऊधमसिंह को 2 अप्रैल ,1940 को अदालत के सामने पेश किया गया। उस वक्त उन्होंने कहा था कि -  " मैंने ये हत्या इसलिए कि है क्योंकि मुझे इस इंसान से नफरत थी। उसे जो सजा मिली है वह इसके काबिल था। वह सच्चे अर्थों में एक अपराधी था। " वह मेरे देश के लोगों की आत्मा की हत्या करना चाहता था। इसलिए मैंने उसकी हत्या कर दी। अगर आप सच माने तो मैं पूरे 20 वर्ष तक इस बदले को लेने के लिए यहां वहां घूमता रहा हूं।  मुझे खुशी है कि मैंने अपना काम पूरा कर लिया है। मैं मृत्यु से नहीं डरता मैं जवान मौत मरना चाहता हूं। बूढ़ा होकर या अपाहिज होकर मरने से क्या लाभ ? मैं अपने देश की जनता के लिए अपने प्राण त्याग रहा हूं।  क्या लॉर्ड जैट लैंड भी मर गए है ? उनको जरूर मरना चाहिए। मैंने उनके शरीर पर भी गोलियों से वार किया था। " " मैंने अपनी आंखों से देखा है कि अंग्रेजी हुकूमत में भारत की जनता भूखी मर रही है। मैं उसके विरोध में यह अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त कर रहा हूं। यह मेरा कर्त्तव्य है। इससे ज्यादा सम्मान मुझे क्या दिया जा सकता है कि अपनी प्यारी मातृभूमि के लिए मैं मृत्यु को वरण करूं ।"

ऊधमसिंह भाग - 5

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  ऊधमसिंह की अस्थियां भारत लायी गयी  पंजाब सरकार और भारत सरकार के संयुक्त प्रयासों से शहीद ऊधमसिंह के अवशेष 19 जुलाई ,1974 को भारत लाये गए। पालम हवाई अड्डे पर उनके अवशेषों की अगवानी के लिए देश के सभी प्रमुख नेता पहुंच गए थे।  ये अवशेष 23 जुलाई तक दिल्ली में दर्शनार्थ रखे गए और फिर दिल्ली से चंडीगढ़ होते हुए 31 जुलाई , 1974 को सुनाम पहुंचाए गए। सुनाम से उनको गंगा में विसर्जन के लिए हरिद्वार ले जाया गया। 

ऊधमसिंह भाग - 3

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 जनरल डायर की मृत्यु 1927 में ब्रेन हेमरेज से हो चुकी थी। 13 मार्च , 1940 के दिन सर माइकल ओ'डायर और लॉर्ड जैट लैंड दोनों एक साथ रॉयल सेंट्रल एशियन सोसायटी और ईस्ट इण्डिया एसोसिएशन द्वारा कैक्स्टन हॉल में आयोजित अफगानिस्तान के संबंध में एक परिसंवाद में भाग लेने के लिए उपस्थित हुए थे। लॉर्ड जैट लैंड इस सेमिनार के अध्यक्ष थे और उन्हें इसका उदघाटन करना था। ऊधमसिंह मंच के एकदम सामने चार - पांच पंक्तियां छोड़ कर बैठ गया।  सर माइकल ओ'डायर ने अपना भाषण दिया जो हमेशा की तरह भारत विरोधी था। ज्यो ही वह अपना भाषण समाप्त कर , अपनी कुर्सी की तरह मुड़े और सचिव धन्यवाद देने के लिए खड़े हुए, ऊधमसिंह एकदम खड़े हो गए और अपनी पिस्तौल निकालकर माइकल ओ'डायर को गोली मार दी। उस समय शाम के 4 बजे थे।  लॉर्ड जैट लैंड को भी गोली लगी थी और उन्हें अस्पताल ले जाया गया।  इस घटना के बाद ऊधमसिंह वहां से भागे नहीं और कहा कि " माइकल ओ'डायर को गोली मैने मारी है " किसी को डरने की जरूरत नहीं है।

ऊधमसिंह भाग - 2

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  जलियांवाला बाग हत्याकांड जलियांवाला बाग हत्याकांड के तीन प्रमुख पात्र थे - सर माइकल ओ ' डायर पंजाब के लेफ्टिनेंट गवर्नर, ब्रिगेडियर जनरल इ. एच. डायर , भारत में पैदा हुए अंग्रेजी सेना का अफसर जिसने गोली चलाने का आदेश दिया और लॉर्ड जेट  लैंड , भारत के राज्य सचिव। ऊधमसिंह इस हत्याकांड के चश्मदीद गवाह थे। उन्होंने ये शपथ ली थी कि वह इस हत्याकांड का बदला इन तीनों से लेंगे।  बदला लेने के उद्देश्य से वह जहाज से विदेश रवाना हो गए और पहले दक्षिण अफ्रीका पहुंचे। यहां से वह अमेरिका चले गए। 1923 में वे इंग्लैंड पहुंचे। लेकिन 1928 में भगत सिंह के बुलाने पर हिंदुस्तान लौटना पड़ा। जब वे लाहौर पहुंचे ,तो शस्त्र संहिता का उल्लंघन करने के आरोप में उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया। एक बनावटी मुकदमें के बाद उनको चार वर्ष के कठोर कारावास की सजा दे दी गई।  ऊधमसिंह को 1932 में रिहा किया गया।

ऊधमसिंह भाग - 1

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 ऊधमसिंह का जन्म 20 दिसम्बर , 1899  पंजाब के सगरूर जिले में सुनाम नामक स्थान पर हुआ था। उनके पिता का नाम सरदार निहाल सिंह था।l उनके माता पिता का निधन उनके सात वर्ष के होने तक हो चुका था। किसी संबंधी से आर्थिक सहायता न मिली ,तब प्रसिद्ध समाजसेवी चंदा सिंह ने उनकी सहायता की और अमृतसर के पुतलीघर स्थान पर स्थित अनाथालय में उन्हें भर्ती करा दिया। इस अनाथालय में उन्होंने पंजाबी , हिन्दी और उर्दू का ज्ञान प्राप्त किया। आगे चलकर वे अच्छी अंग्रेजी भी सीख गए। उनकी आजीविका का साधन उनके हाथ की कारीगरी थी। पेण्टोनबिला जेल में ऊधमसिंह को 31 जुलाई, 1940 को फांसी दे दी गई। 

लाला हरदयाल भाग - 3

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  कुछ प्रसिद्ध क़िताबें - 1) हमारी शैक्षणिक समस्या (1922) 2) शिक्षा पर विचार/सोच (1969) 3) हिन्दू दौड़ की सामाजिक जीत 4) राइटिंग ऑफ़ लाला हरदयाल (1920) 5) जर्मनी और टर्की के 44 माह 6) लाला हरदयाल जी के स्वाधीन विचार (1922) 7) अमृत में विष (1922) 8) आत्म संस्कृति के संकेत (1934) 9) विश्व धर्मो की झलक 10) बोधिसत्व सिद्धांत (1970)

लाला हरदयाल भाग - 2

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  शिक्षा कैम्ब्रिज मिशन सेंट स्टीफेन कॉलेज में उन्होंने बी. ए. में सर्वोच्च स्थान प्राप्त किया। दिल्ली से संस्कृत में बैचलर की डिग्री हासिल की और उसके दो साल बाद उन्होंने अंग्रेज और इतिहास विषयों से एम. ए. किया और साथ ही पंजाब यूनीवर्सिटी से उन्होंने संस्कृत में मास्टर डिग्री भी हासिल की थी। 1905 में संस्कृत में उच्च शिक्षा प्राप्त करने के लिए उन्हें पंजाब सरकार से इंग्लैंड के ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी भेजा , जहां से उन्हें 2 छात्र वृत्तियां मिली। पंजाब सरकार से उन्हें इंग्लैंड में उच्च शिक्षा के लिए छात्रवृत्ति मिली। वहां वे पंडित श्यामजी कृष्ण वर्मा के सम्पर्क में आए , हरदयाल अपनी शिक्षा को अधूरी छोड़ कर क्रान्तिकारी आन्दोलन में शामिल हो गए।

लाला हरदयाल भाग - 1

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लाला हरदयाल का जन्म 14 नवम्बर, 1884 को दिल्ली में हुआ था। उनके पिता का नाम लाला गुरुदयाल माथुर था। उनकी माता का नाम भोली रानी था। वे दिल्ली की कोर्ट में रीडर थे। उनके साथी के रूप में मास्टर अमीरचंद , लाला हनुमंत सहाय, दीनानाथ , जे. ए. चटर्जी थे। लाला हरदयाल 13 भाषाएं जानते थे। जेनेवा में वंदे मातरम् पत्रिका के सम्पादक का पद भी संभालते थे।  1910 में वे अल्जीरिया चले जाते है। फिर वे छोटे से टापू मार्तिनिक चले जाते है और संन्यासी की तरह जीवन जीते है। 3) वे अलग - अलग देशों में क्रांति का प्रचार करते थे। गदर पार्टी के निर्माण में लाला हरदयाल का बड़ा हाथ था। मृत्यु 4 मार्च 1939 को लाला हरदयाल अमेरिका के फिलाडेलफिया में उनकी मृत्यु हुई थी।

करतारसिंह सराबा भाग - 5

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गदर पत्रिका करतारसिंह एक पत्रिका " गदर " निकालने लगे,यह अमेरिका में छपती थी। जिसके वह स्वयं संपादक बने। यह पत्रिका चार भाषाओं में छपती थी - अंग्रेजी ऊर्दू , हिंदी और पंजाबी में ,जोकि साप्ताहिक थी।  यह  पत्रिका रात्रि के समय गोपनीय प्रेस में छपता था। रात में करतारसिंह इसकी देखभाल करते थे।  अंग्रेज सरकार ने इस पर्चे पर प्रतिबंध लगा दिया। लेकिन इसके बावजूद पर्चा छावनियों में भारतीय सिपाहियों तक पहुंचता रहा। कई छावनियों में इसकी कॉपियां जब्त कर ली गई। यह सिलसिला करीब दो साल तक जारी रहा।

करतारसिंह सराबा भाग - 4

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करतारसिंह की फांसी  जनवरी 1915 में रासबिहारी बोस अमृतसर आये।  करतारसिंह और उनके अन्य क्रान्तिकारियों के बीच अंग्रेजो के खिलाफ सशस्त्र क्रान्ति की सहमति बनी हुई थी। इसके लिए 21 फरवरी,1915 का दिन पूरे भारत में एक साथ क्रांति के लिए तय हुआ। करतारसिंह ने लाहौर छावनी के शस्त्र भण्डार पर कब्जा करने का जिम्मा लिया। लेकिन अपने ही एक साथी की गद्दारी के कारण पुलिस को सारी योजना की जानकारी मिल गई। "गदर पार्टी " के जितने भी नेता जहां भी मिले , उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया। अंग्रेजो ने इसे "लाहौर षडयंत्र " का नाम दिया। इस आंदोलन की असफलता के बावजूद करतारसिंह ने 2 मार्च 1915 को ललितपुर पहुंच कर जगह - जगह फौजी छावनियों में जाकर सैनिकों को जागरूक करने लगे। जिसके बाद उन्हें और उनके साथियों को गिरफ्तार कर लिया गया। 13 सितम्बर, 1915 को करतारसिंह को उनके साथियों सहित लाहौर सेंट्रल जेल भेज दिया गया। वहां उन पर मुकदमा चलाया गया। करतारसिंह को सबसे खतरनाक ठहराया गया। लाहौर षड़यंत्र केस 26 अप्रैल से 13 सितंबर 1915 तक जारी रहा। करतारसिंह पर हत्या, डाका, शासन को उलटने का आरोप लगाया गया। जिसके ...

करतारसिंह सराबा भाग - 3

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  करतारसिंह से जुड़ी कुछ बातें! 1) भगत सिंह हर साल लाहौर में 16 नवंबर को करतारसिंह का शहीदी दिवस मनाते थे। 2) एक बार थ्रेडला हॉल में दुर्गावती वोहरा (दुर्गा भाभी) ने करतारसिंह की तस्वीर पर अपनी उंगली काटकर टीका लगाया था। उस दिन , उस जलसे में जितने क्रांतिकारी इकठ्ठे हुए थे, उन सबने शपथ ली थी कि जब तक भारत आजाद नहीं होगा , वे चैन से नहीं बैठेंगे। 3) करतारसिंह एक क्रांतिकारी के साथ ही एक समाजवादी भी थे। ऐसा कहा जाता है कि करतरसिंह से मिलने के बाद डरपोक भी डरपोक नहीं रहता था।  4) एक अंग्रेज अफसर के आंखों देखें बयान के अनुसार ,जब करतारसिंह को फांसी लगने का समय आया ,तब उन्होंने फांसी के फंदे की रस्सी को चूमा उसी समय आकाश से बादल इस जोर से गरजा कि जल्लाद के हाथ पैर कांपने लगे।  5) फांसी पर लटकने से पहले करतारसिंह ने अपने बयान में कहा कि  " अगर मुझे एक से ज्यादा जिन्दगी मिलती तो मैं अपनी हर जिंदगी भारत माता पर अर्पण कर देता और करता ही रहता जब तक भारत माता आजाद न होती।" 6) भगत सिंह करतारसिंह सराबा की फोटो हमेशा अपने पॉकेट में रखते थे। 

करतारसिंह सराबा भाग - 2

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करतारसिंह , भगत सिंह की नज़र में - अपने हिंदी के लेख " बागी करतारसिंह " में भगतसिंह ने लिखा है कि " रणचण्डी के उस परमभक्त बागी करतारसिंह की आयु उस समय 20 साल की भी ना होने पाई थी। जब उन्होंने स्वतंत्रता की बलि बेदी पर निज रक्तांजलि भेंट कर दी।  आंधी की तरह वे एकाएक कहीं से आए ,आग भड़काई सुमुप्त रणचण्डी को जगाने की चेष्टा की , विप्लय यज्ञ रचा और उसी में स्वाहा हो गये। वो क्या थे , किस लोक से एकाएक आये थे और फिर झट से किधर चले गये, हम कुछ भी न समझ सके।"

करतारसिंह सराबा भाग - 1

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प्रारंभिक जीवन  1) करतारसिंह का जन्म 16 नवंबर ,1896 को "सराबा " नाम के गांव में जिला लुधियाना में हुआ था। 2) करतारसिंह के पिता का नाम मंगल सिंह था ,जो एक सफल काश्तकार और उनकी मां का नाम साहिब कौर था। उनकी छोटी बहन का नाम धनकौर था। 3) करतारसिंह के दादाजी सोहनसिंह ने कूका नेताओं को मलेर कोटला में अंग्रेजों की तोपों से शहीद होते देखा था।  4) करतारसिंह ने लुधियाना से मैट्रिक करके लाहौर में दाखिला ले लिया। 5) सराबा गांव के कुछ लोग "गदर आंदोलन" के सदस्य थे। वे अमेरिका में हिंदुस्तानी "गदर पार्टी " के नियंत्रण पर सैनफ्रैंसिस्को जा रहे थे। करतारसिंह अपनी शिक्षा को अधुरी छोड़कर उनके साथ चले गए। 6) वहां उनको "गदर पार्टी " के प्रेस का इंचार्ज बना दिया गया। प्रथम महायुद्ध शूरू हो चुका था। गदर पार्टी बहुत तेजी से काम कर रही थी। 7) 16 नवंबर, 1915 को करतारसिंह को फांसी पर लटका दिया गया।

जतीद्रनाथ दास भाग - 2

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  अनशन और शहादत  14 जून ,1929 को लाहौर षड्यंत्र केस में उन्हें गिरफ्तार किया गया। उन दिनों क्रांतिकारियों से जेल में बहुत दुर्व्यवहार होता था।  जबकि सत्याग्रहियों को राजनीतिक बंदी मान कर सभी सुविधाएं दी जाती थी। इसके विरोध में बटुकेश्वर दत्त, भगत सिंह और उनके अन्य साथियों ने 13 जुलाई ,1929 से लाहौर के केंद्रीय कारागार में भूख हड़ताल शुरू कर दी। इनके समर्थन में बाकी क्रांतिकारियों ने भी अनशन शुरू कर दी। अनशन तुड़वाने के लिए वे बंदियों के हाथ पैर पकड़कर , नाक में रबर  की नली डालकर पेट में दूध डाल देते थे। जतींद्र दास के साथ भी ऐसा ही किया गया ,तो वे जोर से खांसने लगे जिसके कारण दूध उनके फेफड़ों में चला गया। जिसके कारण उनकी तबीयत बिगड़ गई। 13 सितम्बर, 1926 को शाम के पांच बजे लाहौर सेंट्रल जेल में एक 25 साल के युवक ने 63 दिनों के अनशन के बाद अपने प्राण त्याग दिए। उनकी मृत्यु के कुछ दिन बाद ही ब्रिटिश सरकार ने बंदियों को सभी प्रकार की सुविधाएं दे दी।

जतीद्रनाथ दास भाग - 1

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प्रारंभिक जीवन और शिक्षा -  जतीद्रनाथ दास दक्षिणी कलकत्ता में भवानीपुर के निवासी थे। इसी जगह पर 27 अक्टूबर,1904 के दिन जतीन्द्रनाथ का जन्म हुआ था। उनके पिता का नाम बंकिम बिहारी दास और माता का नाम सुहासिनी देवी था। जतीन्द्र नौ वर्ष के थे, तभी उनकी माता का स्वर्गवास हो गया था। शिक्षा   वे स्कूल के विद्यार्थी ही थे जब उन्होंने विभिन्न प्रकार के सार्वजनिक सेवा कार्यो में भाग लेना शूरू कर दिया था। मैट्रिक की परीक्षा पास करने पर जतीद्र दास ने कलकत्ता के दक्षिण सर्बन कॉलेज, भवानीपुर से इण्टर की परीक्षा पास करने के बाद बी. ए . करने के लिए कॉलेज गये।

मदन लाल धींगरा भाग - 6

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  17 अगस्त ,1909 को फांसी पर चढ़ने के पहले उन्होंने कहा  " मेरे देश में देशभक्त भारतीय युवकों को जो यातनाएं दी जा रही है और जिन बेकसूर लोगों की फांसी दी जा रही है उनके प्रति यह मेरी एक प्रतिक्रिया मात्र हैं। "  " मैं विश्वास करता हूं कि विदेशी सगीनों के साये में पनप रहे राष्ट्र में एक युद्ध के लिए तैयारी हो रही है। क्योंकि खुली लड़ाई असंभव मालूम होती है और तमाम बंदूकों पर प्रतिबन्ध लगा दिया गया है, ऐसी स्थिति में , मैं यही कर सकता था कि अपनी पिस्तौल लेकर गोली दाग दूं। मेरे जैसा गरीब और सामाजिक रूप से अप्रतिष्ठित व्यक्ति यही कर सकता था कि अपनी मातृभूमि के लिए अपना रक्त बहाऊं और वही मैने किया है। 

मदन लाल धींगरा भाग - 5

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67 साल बाद मदन लाल की अस्थियां भारत लायी गयी! उनकी मृत्यु के 67 वर्ष बाद 1976 को उनकी अस्थियां भारत लायी गयी थी। अजमेर रेलवे स्टेशन के सामने मदन लाल स्मारक है। शहीद उधमसिंह जिन्होंने ओ'डायर को मारा था। इनके अवशेषों को खोदते समय मदन लाल धींगरा की कब्र का पता चला। उनके अवशेषों को भारतीय हाई कमिश्नर की उपस्तिथि में निकाला गया और 13 दिसम्बर ,1976 को भारत लाया गया। दिल्ली में अवशेषों का स्वागत पालम हवाई अड्डे पर पंजाब और दिल्ली के नागरिकों ने किया। जब अस्थि - कलश अपनी मातृभूमि पर पहुंचा तो लोगों के मुंह से निकल पड़ा - " इंकलाब ज़िंदाबाद ।"

मदन लाल धींगरा भाग - 4

  पहली बार मदन लाल की कब्र की खुदाई सन् 1973 में जब भारत सरकार ने ब्रिटेन के अधिकारियों से कब्र खोदने की मांग की तो वहां के गृह विभाग ने यह उत्तर दिया ," उनकी कब्र पर कोई आलेख नहीं लगाया गया है। उनका नाम भी पत्थर पर नहीं गोदा गया था, केवल एक संख्या दी गई थी।" 

मदन लाल ढींगरा भाग - 3

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  मदन लाल की अन्तिम इच्छा  मदन लाल की अंतिम इच्छा थी की उन्हें हिंदुस्तानी विधि से जलाया जाए, जिसे अंग्रेजो ने नामंजूर कर दिया। ‌और इनके शरीर को दफनाने का निश्चय किया गया क्योंकि  " भारत सरकार के गृह विभाग को जो पत्र लिखा था उसका तार द्वारा उत्तर यह आया कि , हम यह नहीं चाहते कि इस शहीद के अवशेष भारत में पार्सल द्वारा भेजे जाएं। "  विनायक दामोदर सावरकर ने यह आग्रह किया कि उनके शरीर के अंतिम संस्कार के लिए उन्हें मदन लाल का शरीर सौंपा जाए, इस आग्रह को भी अंग्रेजों ने नामंजूर कर दिया। मदन लाल के शरीर को " पेंटोनविली कब्रिस्तान " में दफनाया गया।

मदन लाल ढींगरा भाग - 1

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मदन लाल ने किसकी हत्या की ? 1) 1 जुलाई सन् 1909 की रात "इण्डिया हाउस लंदन " के इंस्टिट्यूट ऑफ़ इम्पीरियर स्टडीज के जहांगीर हाउस में, एक समारोह में बड़ी संख्या में भारतीय, सेवा निवृत्त अंग्रेज ,सिविल ऑफिसर और इंग्लैंड के नागरिक आमंत्रित थे।  2) इस समारोह के अंतिम चरण में जो की भारतीय राष्ट्रीय एसोसिएशन के वार्षिक दिन के रूप में मनाया जा रहा था।  3) सर कर्जन अपनी पत्नी के साथ हॉल में आए। मदन लाल उनके पास गए और कुछ देर बात करते रहे और फिर अचानक से उन्होंने अपने कोट की अंदर की जेब से एक बेल्जियम रिवॉल्वर निकाला और सर कर्जन के चेहरे पर 5 गोलियां मार दी। 4) एक पारसी डॉक्टर र्कोवस खुर्शीदजी लालका का जिन्होंने कर्जन को बचाने की कोशिश की मदन लाल ने एक गोली उन्हें भी मारी। 5) मदन लाल ने भागने का कोई प्रयास नहीं किया। 7 जुलाई को उन्हें कोर्ट में पेश किया गया और उन्हें 7 दिन के लिए पुलिस की हिरासत में दे दिया गया।

मदन लाल धींगरा भाग - 2

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मदन लाल धींगरा एक क्रांतिकारी थे , जिन्हें 1 जुलाई ,1909 में फांसी दी गई थी,उस समय वे मात्र 22 वर्ष के थे।    प्रारंभिक जीवन  मदन लाल का जन्म 18 सितंबर 1883 में पंजाब में बहुत ही संपन्न परिवार में हुआ़ था।               मदन लाल धींगरा उनके पिता डॉ. साहब दित्तमल पंजाब चिकित्सा सेवा में सिविल सर्जन के पद से रिटायर हुए थे।   मदन लाल के 6 भाई थे। 5 उनसे बड़े और एक उनसे छोटा और एक बहन थी। उनका छोटा भाई कुन्दन लाल व्यवसाय करता था और बाकी भाई प्रसिद्ध वकील और डॉक्टर थे। शिक्षा  मदन लाल ने गवरमेंट कॉलेज , अमृतसर से मैट्रिक की परीक्षा पास की। इण्टर म्युनिसिपल कॉलेज ,अमृतसर से किया और कुछ समय के लिए गवरमेंट कॉलेज , लाहौर में भी पढ़ते रहे।  उन्होेंने कुछ समय तक पंजाब सरकार काश्मीर सेंटलमेंण्ट विभाग में काम किया और कुछ समय तक अपने चाचा के अधीन परिवहन सेवा में भी रहें।  मदन लाल को इंजिनियरिंग पढ़ने के लिए लंदन भेजा गया। वे मई के महिने में वहां पहुंचे और 19 अक्टूबर को यूनीवर्सिटी कॉलेज में दाखिल हुए। 

कैसे दिखते थे शाह अब्दुल लतीफ ?

 डा॰ एच॰ एम॰ गुरुबक्षानी के अनुसार शाह अब्दुल लतीफ बहुत लंबे नहीं थे लेकिन उनका कद सामान्य से अधिक ऊंचा था। उनका रंग गेहुआं होते हुए भी गोरेपन से थोड़ा करीब था। उनका मुख तेजस्वी था और विशेष रुप से वृद्धावस्था में उनके चेहरे पर असाधारण दीप्ति झलकती थी।

शाह अब्दुल लतीफ के जीवन से जुड़ी कुछ महत्वपूर्ण वर्ष !

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1) 1689 - हैदराबाद (सिंध, अब पाकिस्तान) में हाला तालुका हाला हवेली गांव में जन्म। 2) 1694 - वाई गांव के आखॅड नूर मुहम्मद भट्टी के पास शिक्षा - प्राप्ति के लिए भेजे गए। बच्चे ने अरबी भाषा की बारहखड़ी के पहले अक्षर " अलिफ" के आगे कुछ भी पढ़ने से इन्कार कर दिया। 3) 1708 - प्रेम में निष्फलता के बाद दरवेश बन गए। 4) 1709 - 1712 = रेगिस्तान में भटकते रहे और लखपत, गिरनार, द्वारका, जैसलमेर, बीकानेर, धार, गांजा, हारो, लहुट , लामाकन , काबुल, हिंगलाज, करांची, भामभोर , मुघाभीम , पोरबंदर और थाटा की मुलाकातें ली। 5) 1714 - मिर्जा मुगल वेग की पुत्री सईदा बेगम से विवाह। 6) 1720 - शाह ईनायत खान की मृत्यु। 7) 1721 - शाह मुल्तान गये। मुल्तान के सम्राट मियां नूर मोहम्मद ने शाह को मारने के लिए कई उपाय किये। निष्फल होने पर शाह की महानता का अनुभव कर उसने शाह के कदमों में गिरकर माफी मांगी। 8) 1742 - शाह के पिताजी शाह हबीब की मृत्यु। 9) 1752 - भीत में शाह की मृत्यु।  1754 में शाह की कब्र पर मियां गुलाम शाह कुल्होरो ने स्मारक बनाया। उस समय के महानतम कलाकार इदान ने इस स्मारक की रचना की थी।