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ग्रेगोरियन कैलेंडर किसे कहते है?

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1) ग्रिगेरियन कैलेण्डर को इंटरनेशनल कैलेण्डर भी कहा जाता है यही कारण है कि दुनिया के ज्यादातर देशों में इसी दिन नया साल का जश्न मनाया जाता है। 2) पोप ग्रेगोरी अष्टम ने 1582 ईस्वी में इसे तैयार किया था इसलिए इसे ग्रिगेरियन कैलेण्डर के नाम से जाना जाता है। 3) यह सोलर कैलेंडर है जिसकी तारीख सूर्य की गति से तय होती है। 4) इसे जूलियस कैलेंडर का सुधरा हुआ रूप माना जाता है ,जिसे रोम के शासक  जूलियन सीजर ने बनाया था। 5) जूलियस कैलेंडर में हर 128 साल बाद एक दिन का हेर फेर जो जाता है जिसे ग्रिगेरियन कैलेण्डर में दूर किया गया। 6) तकरीबन चार हजार साल से नया साल मनाया जाता है। इसकी शुरुआत बेबीलोन से हुई थी। 7) बेबीलोन मेसोपोटामिया सभ्यता का महत्वपूर्ण शहर था ,जो इराक की राजधानी बगदाद से 85 किमी. दूर स्थित है। 8) भारत सरकार ने ग्रिगेरियन कैलेंडर के साथ साथ शक संवत पर आधारित राष्ट्रीय पंचांग 22 मार्च ,1957 को अपनाया। माना जाता है कि इसे कुषाण शासक कनिष्क ने 78 ईस्वी में आरंभ किया था।

भारतीय नौसेना की सबसे पहली पनडुब्बी ?

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1) आठ दिसंबर 1967 को भारतीय नौसेना की पहली पनडुब्बी INS कलवरी को नवसेना में शामिल किया गया था। 2) इस पनडुब्बी को सोवियत संघ (रूस) से लिया गया है। 3) 31 मई 1996 को 30 वर्ष की राष्ट्र सेवा के बाद इसे नौसेना से सेवानिवृत्त ( रिटायर ) कर दिया गया था। 4) इसका नाम हिन्द महासागर में पाए जाने वाली खतरनाक टाइगर शार्क के नाम पर रखा गया। 5)" कलवरी " को दुनिया की सबसे घातक पनडुब्बियों में से एक माना जाता है।

दुनिया की पहली पनडुब्बी का नाम क्या है ?

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1)  पनडुब्बी एक प्रकार का जलयान है , जो पानी के अंदर रहकर काम करता है। आमतौर पर इसका उपयोग सेना द्वारा किया जाता रहा है। सबसे पहले प्रथम विश्व युद्ध में इसका इस्तेमाल हुआ था। 2) जॉन हॉलैंड को पनडुब्बी का आविष्कारक माना जाता है। 3) पहली पनडुब्बी " टर्टल " है,जो 1775 में बनाई गई। 1950 में पहली बार परमाणु ऊर्जा से इसे चलाया जाने लगा , जिससे यह समुद्री पानी से ऑक्सीजन ग्रहण करने और कई महीनों तक पानी में रहने में सक्षम हो गई। 4) द्वितीय विश्व युद्ध के समय पनडुब्बियों का उपयोग परिवहन के लिए सामान को एक स्थान से दुसरे स्थान तक ले जाने के लिए किया जाता था।

चाय से जुड़ी कुछ अनसुनी बातें ?

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1) चाय का जन्म चीन में हुआ था और वहां से उत्तर पूर्वी भारत में इसका प्रसार हुआ। 2) आयुर्वेद के किसी ग्रंथ में चाय का उल्लेख नहीं मिलता। 3) संस्कृत में चाय को " श्यामाचर्णा‌ " कहते है। 4) चीनी भाषा में चाय को पहले ' चा ' और बाद में चाय के नाम से जाना जाने लगा। अंग्रेजी में चाय को ' टी ' या टे कहते है। 5) चाय पर लिखी सबसे पहली किताब का नाम "चुचांग " है। इसका संपादन आठवीं शताब्दी में "ल्यूओ " नाम के चीनी विद्वान ने किया था। इस किताब में चाय की पत्ती और चाय बनाने कि विधि के बारे में लिखा गया है। चीन में इस पुस्तक को " चाय - वेद " के नाम से जाना जाता है। 6) दूसरी किताब चीन में " चाक्यो " नाम की मिलती है। जिसे वहां के लोग " चाय - शास्त्र " के नाम से जानते है। 7) चाय की पूरी प्रक्रिया को चीन में " चो - नो - यु " कहा जाता है। 8) ईसा मसीह के जन्म से 2737 साल पहले चीन में सेन नांग नामक एक राजा थे। चीन में चाय का प्रचलन उसी ने शूरू किया था। 9) बौद्ध मठो में पुजारियों ने अफीम के घातक नशे के विरूद्ध चाय पीने की प...

पृथ्वी पर चाय (Tea) की उत्पत्ति कैसे हुई ?

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पृथ्वी पर चाय की उत्पत्ति के बारे में जापान कि एक लोक कथा प्रसिद्ध है - कथा के अनुसार 520 ई॰ में दारूपा नामक एक बौद्ध पुजारी धर्म प्रचार के लिए भारत से नानकिंग गया था। वहां उसका खूब आदर सत्कार हुआ और वह " ता मो " के नाम से प्रसिद्ध होकर वहीं स्थायी रूप से रहने लगा। एक बार उसने अपने अनुयायियों के सामने व्रत लिया कि वह नौ वर्षो तक साधना करेगा और उस काल में वह पल भर के लिए भी नींद के वश में न होगा। पर वह नींद को नहीं जीत सका और सो गया। नींद से उठने पर उसे प्रायश्चित हुआ। अपनी इस कमजोरी के लिए क्रोध में आकर उसने अपनी आंखो की पुतलियों को नोच - नोचकर फेक दिया। उसकी आंखो की वह पुतलियां जहां जहां गिरी, वहीं - वहीं एक एक झाड़ी उग गई। जिसे चाय की झाड़ी का नाम दिया गया। इसी से मिलती जुलती एक कहानी चीन में भी मिलती है। जिसमें एक बौद्ध भिक्षु की कटी पलकों से चाय की झाड़ियां उगी बताई गई है।

मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिग से जुड़ी बातें !

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1) मल्लिका अर्जुन ज्योतिर्लिंग 12 ज्योतिर्लिंगों में दूसरा है। यह आंध्र प्रदेश के कृष्णा जिले के, कृष्णा नदी के, श्री शैल पर्वत पर स्थित है। 2) इसे दक्षिण का कैलाश भी कहते है। 3) महाभारत के अनुसार श्री मल्लिका अर्जुन ज्योतिर्लिंग के पूजन से अश्वमेध यज्ञ का फल मिलता है। 4) यह मंदिर 183 मीटर की ऊंचाई ,152 मीटर और 8.5 मीटर की ऊंचाई वाली दीवारों से बना है। 5) स्कन्द पुराण में शैल कांड नाम का अध्याय है। जिसमें मल्लिका अर्जुन ज्योतिर्लिंग का वर्णन मिलता था। 6) कहा जाता है कि आदि शंकराचार्य ने जब इस मंदिर की यात्रा की तब उन्होंने शिव नंद लहरी की रचना की थी।

मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग के रूप में क्यूं स्थापित हुए शिव और पार्वती !

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मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग कृष्ण नदी के तट पर श्री शैल पर्वत पर स्थित है।  भगवान शिव के दोनों पुत्र गणेश और कार्तिकेय में इस बात पर विवाद हुआ की पहले किसका विवाह होगा। इस पर पिता भगवान शिवजी और माता पार्वती ने कहा कि जो पहले धरती की परिक्रमा करके लौटेगा उसी का विवाह पहले होगा। शास्त्रों के अनुसार माता - पिता की पूजा धरती की ही परिक्रमा मानी जाती है और उसका भी वही फल मिलता है जो पूरी धरती की परिक्रमा से मिलता है। इसी कारण गणेश जी ने अपने माता पिता की परिक्रमा की और गणेश जी का विवाह पहले हुआ। जब कार्तिकेय जी पूरे धरती की परिक्रमा करके लौटे और पूरी घटना को जानकर रूठकर क्रौंच पर्वत पर चले गए। भगवान शिव और माता पार्वती कार्तिकेय को मनाने के लिए मल्लिका और अर्जुन के रूप में वहां गए। अपने माता- पिता के आने कि खबर सुनकर कार्तिकेय तीन योजन दूर क्रौंच पर्वत (श्री शैल पर्वत) पर चले गए और भगवान शिव और माता पार्वती वहीं ज्योतिर्लिंग के रूप में बस गए। जिसे मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग के नाम से जाना जाता है।

सोमनाथ मन्दिर से जुड़ी कुछ खास बातें !

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1) सोमनाथ मंदिर  भगवान् शिव के 12 ज्योतिर्लिंगों  में सबसे पहला ज्योतिर्लिंग  माना जाता है। इस मंदिर का निर्माण चन्द्र देव ने खुद पर लगे श्राप से मुक्ति के लिए करवाया था। 2) सोमनाथ मन्दिर का उल्लेख ग  में भी मिलता है। 3) लोककथाओं के अनुसार भगवान श्रीकृष्ण  ने अपने देह का त्यागा यहीं पर किया था। यहां पर उनका एक मंदिर भी है। 4)  सोमनाथ मंदिर  में कुल 24 शिवलिंगों को स्थापित किया गया था और सोमनाथ का शिवलिंग सभी शिवलिंगों के बीच में था। 5) इस मन्दिर के इतिहास के बारे में कहा जाता है कि ईसा के पूर्व यहां एक मन्दिर था जिस जगह पर दूसरी बार मन्दिर का निर्माण 7 वीं सदी  में वल्लभी के मैत्रक राजाओं ने करवाया। 6) साल 1970  में जामनगर कि राजमाता ने अपने स्वर्गीय पति की याद में मंदिर के आगे पूर्वदिशा में उनके नाम से दिग्विजय द्वार  का निर्माण करवाया। 7) सोमनाथ मन्दिर में रोज साढ़े सात बजे से लेकर साढ़े आठ बजे तक एक लाइट और साउंड शो चलता है। जिसमें  सोमनाथ मन्दिर का इतिहास वर्णन बताया जाता है।

सोमनाथ मंदिर कितनी बार तोड़ा और बनवाया गया ?

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1) इस मंदिर पर 17 बार आक्रमण  किया गया था।  2) इस मन्दिर के इतिहास के बारे में कहा जाता है कि ईसा  के पूर्व यहां एक मन्दिर था जिस जगह पर दूसरी बार मन्दिर का निर्माण 7 वीं सदी  में वल्लभी के मैत्रक राजाओं  ने करवाया। 3)  8 वीं सदी  में सिंध के अरबी गवर्नर जुनायद ने तोड़ने के लिए अपनी सेना भेजी। 4) प्रतिहार राजा नागभट्ट  ने इसका तीसरी बार निर्माण कराया। 5) अरब यात्री अलू बर्णी  ने यात्रा वृतांत में इस मंदिर के बारे में लिखा। जिससे प्रभावित होकर महमूद गजनवी  ने 1024  में हाथ जोड़कर पूजा कर रहे हजारों लोगों को कत्ल कर दिया। उसने मंदिर में लूटपाट और तोड़फोड़ भी की। उसने यहां लगे चन्दन के दरवाजे तक को भी उखाड़ दिया। 6) बाद में राजा भीमदेव  ने इस मंदिर को बनवाया और साल 1093  में सिद्धराज जयसिंह  ने भी मंदिर की प्रतिष्ठा में सहयोग दिया। 7) साल 1168 ईसवी  में विजेश्वर कुमार पाल  और सौराष्ट्र के राजा खंगार ने भी सोमनाथ मंदिर का सौंदर्यीकरण करवाया था। 8) साल 1297  में जब दिल्ली सल्तनत के अलाउद्दीन खिलजी  ने ...

सोमनाथ मन्दिर की, चंद्रदेव के शाप से जुड़ी पौराणिक कथा !

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  ब्रह्मा जी के पुत्र दक्ष प्रजापति ने अपनी 27 कन्याओं का विवाह चंद्रमा से एक साथ ही किया था। लेकिन चंद्रदेव की अपनी पत्नि रोहिणी से अधिक प्रेम करते थे, जिसके कारण चंद्रदेव की बाकी पत्नियां और रोहिणी की बहनें बहुत दुःखी रहती थी। जब दक्ष प्रजापति को यह बात पता चली तब उन्होंने चंद्रदेव को समझाया। लेकिन चंद्रदेव पर कोई असर नहीं पड़ा , तब दक्ष ने  चंद्रदेव को क्षय रोग से ग्रस्त हो जाने का शाप दे दिया। इससे चंद्रदेव का शरीर निरंतर घटने लगा। चंद्रदेव ब्रह्माजी के पास गए। तब ब्रह्माजी ने चंद्रदेव को बाकी सभी देवताओं के साथ प्रभास क्षेत्र में सरस्वती के समुद्र से मिलन स्थल पर जाकर भगवान  शिव की आराधना करने को कहा , तब प्रभास क्षेत्र में देवताओं के साथ जाकर छह मास तक दस करोड़ महामृत्युंजय मंत्र का जाप किया। चंद्रदेव की आराधना से प्रसन्न होकर भगवान शिव और माता पार्वती वहां प्रकट हुए और चंद्र देव को अमरता का वरदान दिया। दक्ष के शाप का असर उन्होंने यह वरदान देकर कम कर दिया कि महीने के पंद्रह दिनों में चंद्र देव के शरीर का थोड़ा−थोड़ा क्षय घटेगा और इन पंद्रह दिनों को कृष्ण पक्ष कहा जा...

नूर इनायत खान से जुड़ी कुछ खास बातें !

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1) नूर का पूरा नाम नूर-उन-निसा इनायत खान  था। 2) उनकी मां ओरा मीना रे बेकर  (अमीना बेगम) अमेरिकी और पिता हजरत इनायत खान  था और वो टीपू सुल्तान  के परपोते थे। 3) नूर  का जन्म रूस  की राजधानी मॉस्को  में 1914  को हुआ था। 4) नूर  के पैरेस  के घर का नाम फजल मंजल  था। 6) 1943  में वह सीक्रेट एजेंट बनी। 7) वह दुसरे विश्व युद्ध  में पहली एशियन सीक्रेट एजेंट  थी। 8) द्वितीय विश्व युद्ध  के दौरान नूर विंस्टन चर्चिल  की काफ़ी विश्वशनीय थी। 9) नूर पहली महिला रेडियो ऑपरेटर  थी,जिन्हें नाजियों के कब्जे वाले फ्रांस में भेजा गया था। वहां नूर का काम था कि वो छापामार कारवाही को बढ़ावा दे। 10) लंदन  में रहने वाली भारतीय मूल की एक पत्रकार बीश्राबणी बासु  ने उनकी आत्मकथा “स्पाई प्रिंसेस यानी जासूस राजकुमारी- नूर इनायत ख़ान”  लिखी है। 11) नूर  महात्मा गांधी  के विचारों की प्रशंसक थी और भगवान बौद्ध  से प्रभावित होकर उन्‍होंने एक किताब " ट्वेंटी जातका टेल्स "  लिखी जो 1939  में प्रकाशित...

कैसी थी प्राचीन भारत के पैदल सैनिकों की वेशभूषा और अस्त्र शस्त्र ?

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1) महाभारत के अनुसार पैदल सैनिक  लाल रंग के कपड़े पहनते थे।  2) नील वस्त्रधारी , पितवस्त्रधारी , लाल पगड़ी वाले, सफेद वस्त्र वाले और अलग - अलग तरह के कपड़े पैदल सैनिक पहनते थे , जिसका वर्णन महावेस्सन्तर जातक में मिलता है। 3) धनुष बाण उनका प्रमुख अस्त्र शस्त्र, तलवार , विभिन्न प्रकार के भाले , परशु और गदा आदि का इस्तेमाल किया जाता था। 4) पैदल सैनिक अपनी रक्षा के लिए कवच धारण करते थे। जैन ग्रंथो के अनुसार हाथो पर चमड़े की पट्टी बांधते थे। 5) अलीढ़ , प्रत्यालीढ़ , वैशाख, मंडल और समपाद नाम के आसन योद्धा लोग धनुष - बाण चलाते समय स्वीकार किया करते थे। 6) पैदल सैनिक तलवार , शक्ति, मीन्दीपाल , बरछी, तोमर, भाला, तीर, शुल गोफन,धनुष - बाण आदि शस्त्र इस्तेमाल करते थे। 7) नील कवचधारी धनुष और तृणीरधारी पैदल सैनिक का उल्लेख महाजनक जातक में मिलता है। 8) एरियन ने लिखा है कि भारतीय पैदल सैनिक अपनी लंबाई के बराबर धनुष धारण करते है। वे इससे बाण छोड़ने के लिए धनुष को जमीन पर टेक कर बाएं पैर के सहारा देकर इसकी डोरी खींचते है। उनके बाण लगभग तीन गज लम्बे होते है। उनके द्वारा छोड़े गए बाण को किसी प्रक...

पदाति सेना और अक्षोहिणी सेना !

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पदाति सेना 1) प्राचीन भारत में विश्व के बाकी भागों की तरह पदाति सैनिक  (पैदल सैनिक), सेना को प्रमुख अंग माना जाता था। वैदिक काल में पदाति सेना का काफी महत्व था। 2) दुर्ग की रक्षा के लिए पैदल सैनिक का अधिक महत्व है क्योंकि जिस समय शत्रु दुर्ग के फाटक को तोड़ रहा हो, उस समय पैदल सैनिक ही दुर्ग की दीवारों पर और बुर्जो में या दीवालों के पीछे से अपने अस्त्र शस्त्र के साथ दुर्ग की रक्षा करते हुए आक्रमणकारियों पर प्रहार कर सकते थे। 3) अथर्ववेद  के अनुसार पदाति सेना रथ - सेना से कम महत्व की मानी जाती थी।  अथर्ववेद  में कहा गया है कि अग्नि देवता  शत्रुओं पर उसी तरह विजय प्राप्त करते है जैसे रथारोही पैदल पर। 4) महाभारत  के अनुसार उनके युद्धों से यह पता चलता है कि पदाति योद्धा  रथ पर सवार योद्धा के पीछे - पीछे अनुग , पदानुग और अनुचर की तरह चलने वाले थे। 5) पी. सी. चक्रवर्ती  के अनुसार हिन्दू सेनाओं में चौथी शताब्दी ई. पू.  से लेकर  1200 ई . के अंत तक पैदल सैनिकों की अधिकता बनी रही। 6) अग्नि पुराण  के अनुसार जिस राजा की सेना के पदाति सैनिकों ...

चतुरंगिणी सेना का इतिहास !

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1) सेना के तीन मुख्य अंग थे - पदाति , रथ,अश्व। 2) वैदिक काल में ,वैदिक काल के बाद सैन्य संगठन में उत्तरोत्तर विकास होता गया। 3) रामायण  और महाभारत  काल से ही सेना को चतुरंगिणी  कहा जाने लगा, पर  महाभारत  के शांति पर्व  में सेना के 6 अंगों के बारे में जानकारी मिलती है। 4) बौद्ध जातक  व जैन ग्रंथों  में भी  चतुरंगिणी सेना  का विस्तार से वर्णन किया गया है। 5) सेना के लिए  चतुरंगिणी सेना  प्रचुर प्रयोग होने के कारण चतुरंग  शब्द सेना के लिए साहित्यिक सांकेतिक शब्द बन गया। इससे पता चलता है कि 600 ई.पू.  में  चतुरंगिणी सेना  में काफी विकास हो गया था। यूनानी इतिहासकारों  के द्वारा के अनुसार  सिकंदर  के आक्रमण के समय क्षुद्रक  और मालव  सेना में पदाति , हाथी व रथ थे। 6) मौर्य काल  में चतुरंगिणी सेना  - पैदल , अश्वरोही , रथातोही व गजरोही होने का उल्लेख कौटिल्य  ने कई स्थानों पर किया है। 8) महर्षि पतंजलि  ने अपने महाभाष्य  में चतुरंगिणी सेना की पूरी जानकारी दी गया है। 9)...

प्राचीन भारत में कितने प्रकार की सेनाएं होती थी ?

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प्राचीन भारतीय ग्रंथों में राज्यों के सात अंगों में से एक महत्वपूर्ण अंग सेना को माना जाता है।  मौर्य काल  में कौटिल्य  ने 6 प्रकार के बलों  (सेनाओं) का वर्णन  अर्थशास्त्र  में किया है। - 1) मौल बल ( सेना ) - स्वामिभक्त व मूल स्थान की रक्षा के लिए थी। 2) भृतक बल - सवैतनिक थी। 3) श्रेणी बल - अस्त्र शस्त्र निपुण व अन्य कार्यो से संबद्ध थी। 4) मित्र  बल - मित्र राजा की सेनाएं थी। 5) अमित्र बल - शत्रु द्वारा प्राप्त सेनाएं थी। 6) अटवी बल - आटविक सेना थी। अर्थशास्त्र  में कौटिल्य  ने 6 प्रकार के बलों (सेनाओं) के अलावा एक सातवें प्रकार की सेना का वर्णन किया है। औत्साहिक बल  से मतलब नेतृत्व विहीन , अलग - अलग देशों में रहने वाली राजा स्वीकृति या अस्वीकृति से ही दूसरे देशों में पर लूट मार करने वाली सेना से है। कौटिल्य ने उसके भेद किए है  - भेद और अभेद । 1) भेद सेना - भेद से मतलब दैनिक भत्ता या मासिक वेतन लेकर शत्रु के देश में लूटपाट करने वाली , राजा की सामयिक आज्ञाओं का पालन करने वाली और दुर्गो में कार्य करने वाली सेना से है। 2...

पारले - जी का इतिहास !

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1) भारत में आजादी से पहले विदेशी चीजें बाजार में ऊंची दामों पर बेची जाती थी। उस समय अंग्रेजों द्वारा एक कैंडी लायी गई ,जो सिर्फ अंग्रेजो तक सीमित रही क्योंकि ये बहुत महंगी हुआ करती थी ,जो आम आदमी के पहुंच से बाहर थी। ये बात मोहन लाल दयाल को पसंद नहीं आई। वो जर्मनी गए और वहां कैंडी बनाना सीखा। 3) मोहन लाल दयाल 1929 में एक कैंडी मेकर मशीन को 60,000 रुपए में खरीद कर भारत लाए। 4) मोहन लाल दयाल का पहले से ही रेशम का व्यापार था फिर भी उन्होंने मुंबई के पास विरला पार्ला में एक पुरानी फैक्टरी खरीदी। 5) शुरू में उनकी फैक्टरी में केवल 12 कर्मचारी ही थे जो कि उनके परिवार के सदस्य ही थे।  इस फैक्टरी में सबसे पहले ऑरेंज कैंडी बनाई गई थी।  7) 1939 में उन्होंने पारले -  ग्लूको  बिस्किट जो गेहूं से बनता था और बहुत कम दाम का और स्वादिष्ट भी था, बनाना शुरू किया। 8) 1947 में आजादी के बाद पारले ने एक कैंपेन चलाया जिसमें ये कहा गया कि यह बिस्किट अंग्रेजों के बिस्किट का विकल्प है। 9) द्वितीय विश्व युद्ध खत्म होने के बाद पारले - ग्लूको को अपना प्रोडक्शन देश में गेहूं की कमी की वजह से बंद ...

भारतीय वैज्ञानिक वी. रामालिंगास्वामी ! - भाग 2

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  कार्य 9) रामालिंगास्वामी गरीब देशों में बीमारियों के कारणों को समझना और शोध द्वारा उनके उपचार खोजना चाहते थे। 10) जिन भिन्न क्षेत्रों में उन्होंने मौलिक शोधकार्य किया वो है - प्रोटीन ऊर्जा और कुपोषण का सम्बन्ध , आयोडीन का अभाव , कुपोषण द्वारा खून की कमी और गर्म देशों में यकृत की बीमारी आदि। 11) देश के विकास के लिए प्राथमिक स्वास्थ्य - सेवा , संक्रामक रोगों और स्वास्थ्य अनुसंधान में रामा की रूचि थी। 12) 1967  के बिहार अकाल और  1971  के बांग्लादेश युद्ध में हजारों - लाखों लोग कुपोषण से बच पाए। 13) घेघा रोग  (थायराइड से गला फूलना ) के अत्यधिक प्रचलन के कारण रामा ने समुदायिक स्वास्थ्य के क्षेत्र में एक क्लासिक प्रयोग किया। इसमें कांगड़ा पहाड़ियों  में रहने वाले एक लाख से अधिक लोगों का सर्वेक्षण शामिल था। आयोडीन युक्त नमक खाने से इस बीमारी में भारी कमी आयी। इसी शोधकार्य ने ही राष्ट्रीय आयोडीन अभाव नियंत्रण कार्यक्रम की नीव रखी, जिससे 30 करोड़ से ज्यादा लोगों को इस रोग से सुरक्षा मिली। 14) रामालिंगास्वामी  ने गर्भवती माताओं में लोहे (आयरन) की कमी को ...

भारतीय वैज्ञानिक वी. रामालिंगास्वामी ! - भाग 1

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  वी. रामालिंगास्वामी (1921 - 2001 ) प्रोफेसर विलिमिरी रामालिंगास्वामी  को प्रसिद्ध लियोन बर्नाड फाउंडेशन अवॉर्ड  के पुरस्कार से सम्मानित करते हुए 1976  में वर्ल्ड हेल्थ एसेंबली  के अध्यक्ष ब सर हैरल्ड वॉल्टर ने प्रशंसा में कहा कि रामालिंगास्वामी " एक डॉक्टर, शोध - वैज्ञानिक, शिक्षक और मानववादी व्यक्ति थे।" प्रारंभिक जीवन और शिक्षा 1)  विलिमिरी रामालिंगास्वामी  जिन्हें उनके मित्र रामा के नाम से बुलाते थे। उनका जन्म 8 अगस्त 1921  को आंध्रा प्रदेश  के श्रीकाकुलम  में हुआ। 2) उनका पूरा परिवार शिक्षा से जुड़ा था और वे अपने दादा जी से बहुत प्रभावित थे। उनके दादाजी स्थानीय स्कूल के प्रिंसिपल थे और उनकी शेक्सपीयर में गहरी रूचि थी। 3) रामा  एक अच्छे अभिनेता थे और उन्होंने कॉलेज में शेक्सपीयर के कई पात्रों का रोल निभाया। वे एक अच्छे गायक भी थे। 6) 1944  में रामा ने अपनी पहली मेडिकल की डिग्री हासिल की और  1946  में उन्होंने उसी यूनिवर्सिटी से एमडी की डिग्री  प्राप्त की। 7) फिर वे ऑक्सफोर्ड इंग्लैंड  में गए जहां  ...

टी. आर. शेषाद्री के महत्वपूर्ण कार्य !

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1) टी. आर. शेषाद्री प्रेसीडेंसी कॉलेज के केमिस्ट्री विभाग में शोधकार्य शूरू किया। 2) इंग्लैंड की मैनचेस्टर यूनिवर्सिटी में शेषाद्री ने कैमेस्ट्री प्रोफेसर रॉबर्ट रॉबिंसन (एफआरएस) के देख रेख में शोध कार्य किया। प्रोफेसर रॉबिंसन बाद में रॉयल सोसायटी के अध्यक्ष मनोनीत हुए और उन्हें नोबेल पुरस्कार से सम्मानित किया गया। 3) शेषाद्री ने मलेरिया के रोकथाम की औषधियों और रासायनों के संश्लेषण पर रास्ता दिखाया। इस शोध कार्य के लिए 1929 में उन्हें पीएचडी की उपाधि प्रदान की गई। 4) डॉक्ट्रेट की उपाधि पाने के बाद शेषाद्री ने कुछ महीने ऑस्ट्रिया मी नोबेल पुरस्कार विजेता प्रोफेसर फ्रिट्ज प्रेगल के साथ बिताए। प्रोफेसर प्रेगल केमिस्ट्री में सूक्ष्म विश्लेषण के अपने काम के लिए प्रसिद्ध थे। 5) शेषाद्री यूनिवर्सिटी ऑफ एडिनब्रा के केमिस्ट्री विभाग में प्रोफेसर जॉर्ज बार्जर (एफआरएस) के साथ कुछ समय बिताया और 1930 में वापस लौट आए। 6) 1934 में उन्होंने आंध्रा यूनिवर्सिटी केमिस्ट्री विभाग के अध्यक्ष के पद पर काम शुरू किया। 7) उन्होंने शोध स्कूल की स्थापना की, फिर यूनिवर्सिटी ने उन्हें कैमिकल टेक्न...

भारतीय वैज्ञानिक टी. आर.शेषाद्री !

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थिरुवेंगदम राजेंद्रराम शेषाद्री (1900 - 1975) 1) टी. आर. शेषाद्री का जन्म 3 फरवरी 1900 को कुलितताई में हुआ जो तिरूचापल्ली जिले में कावेरी नदी के पास स्थित एक छोटा शहर है। 2) उनके पिता टी. आयनगर स्थानीय स्कूल में शिक्षक थे। शेषाद्री की प्रारंभिक शिक्षा, मन्दिरों के शहर श्रीरंगम और तिरूचापल्ली में हुई। 3) 1917 में शेषाद्री ने मद्रास के प्रेसीडेंसी कॉलेज में बीएससी (केमिस्ट्री) के लिए दाखिला लिया। 4) कॉलेज के दौरान वो रामकृष्ण मिशन द्वारा संचालित छात्रावास में रहते थे। 5) प्रेसीडेंसी कॉलेज में बी. बी. डे और पी. नारायण अय्यर ने उन्हें पढ़ाया। 6) बीएससी की पढ़ाई खत्म करने के बाद शेषाद्री ने एक साल रामकृष्ण मिशन में काम किया। 7) 1927 में भारत सरकार ने इंग्लैंड में उच्च शिक्षा पाने के लिए शेषाद्री को एक वजीफा दिया। सम्मान 1) 1961 में शेषाद्री को फेलो ऑफ द रॉयल सोसायटी के सम्मान के लिए चुना गया। 2) कई विश्वविद्यालयों ने उन्हें डॉक्ट्रेट की डिग्री से नवाजा। 3) वो इंडियन साइंस कांग्रेस और इंडियन नेशनल साइंस एकेडमी के अध्यक्ष भी रहे। 4) वो अंतर्राष्ट्रीय शोध पत्रिकों - टेट्र...

बी. पी. पाल द्वारा किए गए विशेष कार्य !

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1) अपने शोध में पाल ने पहली बार गेहूं कि संकर प्रजातियों  की संभावनाओं को उजागर किया। 2) 1933 में उन्होंने बिहार  स्थित पुसा  में इंडियन (इंपिरियल) एग्रीकल्चरल इंस्टीटयूट  में काम करना शुरू किया। 3) 1937 में पदोन्नति के बाद वो वही इंपिरियल इकनॉमिक वाॅटानिस्ट  ‌बने। 4) 1936 के भूकंप में पूसा इंस्टीटयूट  बुरी तरह ध्वस्त हो गई और उसे दिल्ली  शिफ्ट किया गया, तब पाल  भी  दिल्ली  आए। 5)  1960  में खाद्यान्यों की बेहद किल्लत के कारण सारी दुनिया भारत को भुखमरों का देश मानने लगी थी। उस दौरान हजारों लाखों भारतीय अमेरिका द्वारा पीएल - 480  में दान दिए खाद्यान्यों की वजह से ही जिंदा बच पाए। पाल  के नेतृत्व में शुरू हुई हरित क्रांति देश में एक अभूतपूर्व परिवर्तन लाई और धीरे - धीरे करके भारत एक भूखे देश से एक खाद्यान बाहुल्य देश बना। 6)  पाल  ने कृषि के जिन पांच क्षेत्रों में महत्त्वपूर्ण योगदान थे - अनुसन्धान , शिक्षा , कृषि विस्तार , संस्था निर्माण और अंतराष्ट्रीय सहयोग। 7) अनुसन्धान के क्षेत्र में पाल क...