चतुरंगिणी सेना का इतिहास !
1) सेना के तीन मुख्य अंग थे - पदाति , रथ,अश्व।
2) वैदिक काल में ,वैदिक काल के बाद सैन्य संगठन में उत्तरोत्तर विकास होता गया।
3) रामायण और महाभारत काल से ही सेना को चतुरंगिणी कहा जाने लगा, पर महाभारत के शांति पर्व में सेना के 6 अंगों के बारे में जानकारी मिलती है।
4) बौद्ध जातक व जैन ग्रंथों में भी चतुरंगिणी सेना का विस्तार से वर्णन किया गया है।
5) सेना के लिए चतुरंगिणी सेना प्रचुर प्रयोग होने के कारण चतुरंग शब्द सेना के लिए साहित्यिक सांकेतिक शब्द बन गया।इससे पता चलता है कि 600 ई.पू. में चतुरंगिणी सेना में काफी विकास हो गया था।
यूनानी इतिहासकारों के द्वारा के अनुसार सिकंदर के आक्रमण के समय क्षुद्रक और मालव सेना में पदाति , हाथी व रथ थे।
6) मौर्य काल में चतुरंगिणी सेना - पैदल , अश्वरोही , रथातोही व गजरोही होने का उल्लेख कौटिल्य ने कई स्थानों पर किया है।
8) महर्षि पतंजलि ने अपने महाभाष्य में चतुरंगिणी सेना की पूरी जानकारी दी गया है।
9) कलिंग नरेश खारवेल ने अपने शासन के दूसरे वर्ष शातकर्णी के विरूद्ध अश्व, रथ गज की विशाल देना युद्ध के लिए भेजी थी। उड़ीसा से प्राप्त हाथी - गुफा अभिलेख में लिखा हुआ है।
10) शक नरेश रुद्रदामन के जूनागढ़ अभिलेख में चतुरंगिणी सेना का उल्लेख मिलता है।
11) कुषाण काल में चतुरंगिणी सेना विद्यमान थी या नहीं, इसका कोई साफ प्रमाण मौजूद नहीं है।
12) सांची, अमरावती व नागार्जुनकोंडा के स्तूपों में भी चतुरंगिणी सेना के बारे में लिखा गया है।
13) गुप्त काल में सेना को परंपरागत रुप चतुरंगिणी सेना ही सामने आता है।
16) छठी शताब्दी ई. पू. से लेकर छठी शताब्दी ई. तक चतुरंगिणी सेना का युद्ध भूमि में प्रयोग होता रहा।
चतुरंग शब्द सेना शब्द का पर्यायवाची होने के कारण सेना के कोई एक अंग न होने पर या उस अंग के पहले जैसे उपयोग न होने पर भी सेना को चतुरंग बल नाम से ही बुलाया जाता था।
17) चतुरंग के बारे में दिक्षितार का मत है कि प्राचीन भारतीय सैन्य संगठन जिसे हम चतुरंग कहते है, शतरंज के खेल पर आधारित है।
18) चतुरंगिणी सेना के साथ - साथ उनके कतिपय अन्य सहायक अंगों के प्रमाण भी मिलते है। इन सहायक अंगों के नौ सेना , प्रदाव विभाग चल चिकित्सालय और गुप्तचर व राजदूत में ये चार विभाग है।
युद्ध शास्त्र से जुड़े कुछ ग्रंथ -
विक्रमादित्य विरेश्वरीयम् , कोदण्डमण्डन , राजा दिलीप का लिखा कोदण्डशास्त्र , वास्तुराज वल्लभ व वृहत् ज्योतिषार्णव , (व्यंकटेशवर प्रेस , मुम्बई , द्वारा प्रकाशित)।

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