आईने का इतिहास ?

आइने के आविष्कार से पहले पुराने जमाने में लोग अपना चेहरा देखने के लिए ठहरें हुआ पानी का इस्तेमाल करते थे।

लगभग 8 हजार साल पहले ऑपसेडियाम नाम के पत्थर के ऊपर पॉलिश करके अपनी तस्वीर देखने के लिए एक आईना बनाया गया था।


                         ऑपसेडियाम

ऑपसेडियाम एक ज्वालामुखीय पदार्थ था, जो उस समय के लोगों को प्राकृतिक रूप से प्राप्त हो जाता था।

उस पत्थर को लगभग 6000 ईसा पूर्व इनाटोलिया में लोग इस्तेमाल करते थे।जिसे आज के समय में तुर्की के नाम से जाना जाता है।

पीतल के आईने

मेसोपोटामिया में 4000 साल पहले पॉलिश किए हुए पीतल का इस्तेमाल आईने का प्रयोग किया जाता था।



     

 तांबे के आईने

 लगभग  3000 ईसा पूर्व प्राचीन मिस्रवासी भी पॉलिश किए हुए तांबे के आइने को परायों करते थे।



 लगभग 2000 ईसा पूर्व से चीन और भारत में कॉपर , कांच और मिश्रित धातु से शीशे का उत्पादन किया गया।


धातु के शीशे बहुत महंगे होते थे और उन शीशों को ज्यादा बड़े आकार का भी नहीं बनाया जा सकता था।


पत्थर और धातु से शीशे को बनाना बहुत ही मुश्किल हुआ करता था इसीलिए रोमन लेखक प्लिनी द ऐल्डर (Pliny the Elder) के द्वारा लिखी किताब "प्राकृतिक इतिहास" के मुताबिक पहली शताब्दी में शीशे को बनाना,सिंडम में शुरू किया गया।




ग्रीक रोमन पुरातन काल और यूरोपियन मध्य युग में दर्पण धातु,कांच ,टीन, या चांदी के बस थोड़े से उत्तल दर्पण थे जो उनकी अत्यधिक पॉलिश सतहों से प्रकाश को दर्शाती  थी।

5000 ईसा पूर्व चीन में आईना

5000 ईसा पूर्व चीन में लोगों ने चांदी और पारे को मिलाकर धातु के आवरण पर कोटिंग करके दर्पण बनाना शुरु किया। चीनी लोग इस प्रक्रिया में पारे और चांदी को गरम करते थे और इसमें से पारा उबल कर उड़ जाता था और सिर्फ चांदी रह जाता था इस लेप के द्वारा ही धातु पर कोटिंग की जाती थी जिससे वो धातु रिफ्लेक्ट करती थी। 


16 वीं सदी में वनेम ने इस नई विधि का उपयोग करके शीशे उत्पादन करने का केंद्र बन गया। अन्य महत्वपूर्ण शीशे बनाने वालो में फ्रांस के सेंट गोबैन  कारखाना था।

दुनिया का पहला आधुनिक दर्पण

दुनिया के पहले आधुनिक शीशे के आविष्कार का श्रेय जर्मन केमिस्ट जस्टिस वोन लाइबिग (Justus Von Liebig) को जाता हैं।


जस्टिस वोन लाइबिग


1835 में जर्मन केमिस्ट जस्टिस वोन लाइबिग (Justus Von Liebig) चांदी और ग्लास से निर्मित दर्पण का आविष्कारक माना जाता है।

उनकी प्रक्रिया में सिल्वर नाइट्रेट कि रासायनिक कमी के माध्यम से कांच के ऊपर चांदी कि एक पतली परत चढ़ाई जाती थी, शीशे बनाने की प्रक्रिया में चांदी का इस्तेमाल इसलिए भी किया गया ताकि इसका उत्पादन बड़े पैमाने पर किया जा सके, ताकि दर्पण ज्यादा से ज्यादा लोगो तक पहुंच सके ।

क्योंकि दर्पण उस समय एक महंगा समान हुआ करता था जो केवल अमीर लोग ही खरीद पाते थे ।

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