विकुक्षि का शशाद नाम कैसे पड़ा ?

एक बार इक्ष्वाकु ने अष्टकाश्राद्ध का आरंभ कर अपने पुत्र विकुक्षि को श्राद्ध के योग्य मांस लाने को कहा।

पिता की आज्ञा से विकुक्षि धनुष बाण लेकर वन में अनेकों मृगों (हिरन) का वध किया, लेकिन थका और भूखा होने के कारण विकुक्षि ने उनमें से एक शशक (खरगोश) को खा लिया और बचा हुआ मांस लाकर अपने पिता को पूजा करने के लिए दे दिया।

इक्ष्वाकु वंश के कुल पुरोहित वशिष्ठ जी ने उन्हें बताया कि यह अपवित्र मांस है।

तुम्हारे दुरात्मा पुत्र ने इसे भ्रष्ट कर दिया है, क्योंकि उसने इसमें से एक शशक खा लिया है।

गुरु के ऐसा कहने पर पिता ने विकुक्षि को त्याग दिया। तभी से विकुक्षि का नाम शशाद पड़ा। पिता के मरने के बाद उसने इस पृथ्वी पर धर्मानुसार शासन किया। उस शशाद के पूरंजय नामक पुत्र हुआ।

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