कैसी थी श्री कृष्ण की द्वारका ?

श्री कृष्ण के कहने पर विश्वकर्मा जी ने द्वारका नगरी का निर्माण किया -

🔵 विश्वकर्मा जी के विज्ञान (वस्तु विज्ञान) और शिल्पकला की निपुणता से द्वारका नगरी में वास्तुशास्त्र के अनुसार बड़ी - बड़ी सड़कों, चौराहों और गलियारों का ठीक - ठीक विभाजन किया गया था। 

🔵 वह नगर ऐसा सुंदर - सुंदर उद्यानों और विचित्र - विचित्र उपवनों से युक्त था, जिसमें देवताओं के वृक्ष और लताएं लहलहाती रहती थी। 

🔵 सोने के इतने ऊंचे - ऊंचे शिखर थे, जो आकाश से बातें करते थे। द्वारका में स्फटिक मणि और चांदी के 9 लाख महल थे। 

🔵 स्फटिकमणि की अटारियाँ और ऊंचे - ऊंचे दरवाजे बड़े ही सुंदर लगते थे। फर्श आदि में जड़ी हुई महामरकत मणि (पन्ने) की प्रभा से जगमगा रही थी और उनमें सोने तथा हीरे की बहुत सारी सामग्रियां थी। 

🔵 अन्न रखने के लिए चांदी और पीतल के बहुत कोठे बने हुए थे।

🔵 वहाँ के महल सोने के बने हुए थे और उन पर कामदार सोने के कलश थे। उनके शिखर रत्नों के थे तथा गच पन्नों की बनी हुई ,बहुत भली मालूम होती थी।

🔵 उस नगर में वास्तुदेवता के मंदिर और छज्जे भी बहुत सुंदर - सुंदर बने हुए थे। उसमें चारों वर्ण के लोग निवास करते थे और सबके बीच में यदुवंशियों के प्रधान उग्रसेन जी , वसुदेव जी, बलराम जी तथा भगवान श्रीकृष्ण के महल थे। 

🔵 उनके राजपथ (बड़ी बड़ी सड़कें) , गलियां, चौराहे और बाजार बहुत ही सुंदर थे। 

🔵 घुड़साल आदि पशुओं के रहने के स्थान, सभा भवन और देव मन्दिर के कारण उनका सौंदर्य और भी अधिक था।

🔵 उसकी सड़कें,चौक, गली और दरवाजों पर छिड़काव किया गया था। 

छोटी छोटी झंडियां और बड़े - बड़े झंडे जगह जगह फहरा रहें थे, जिनके कारण रास्तों पर धूप नहीं आ रही थी।

🔵 उसी द्वारका पुर में भगवान श्री कृष्ण का बहुत सुंदर अंतःपुर था। बड़े - बड़े लोकपाल उनकी पूजा प्रशंसा करते थे।उनका निर्माण करने में कला,कौशल और कारीगरी लगा दी थी।

उस अंतःपुर (रानीवास) में भगवान की रानियों के 16000 से अधिक महल थे। उनमें से एक भवन में नारद जी ने प्रवेश किया।

उस महल में मुंगों के खंभे, वैदुर्य के उत्तम छज्जे तथा इंद्रनील मणि की दीवारें जगमगा रही थी और वहां की गचें भी ऐसी इंद्र नील मणि से बनी हुई थी।


🔵 जब द्वारका का निर्माण हो रहा था तब देवराज इंद्र ने श्री कृष्ण जी के लिए परिजात वृक्ष और सुधर्मा सभा को भेज दिया। वह सभा ऐसी दिव्य थी कि उसमें बैठे हुए मनुष्य को भूख प्यास नहीं लगती थी।


🔵 वरुण जी ने ऐसे बहुत से सफेद घोड़े भेज दिये, जिनका एक - एक कान श्यामवर्ण का था और जिनकी चाल मन के समान तेज थी। धनपति कुबेर जी ने अपनी आठों निधियाँ भेज दी। 

🔵 उनके राजपथ (बड़ी - बड़ी सड़कें) , गलियां, चौराहे और बाजार बहुत ही सुंदर थे।

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