प्रजापति दक्ष का जन्म !
(1) बहुत समय पहले एक कण्डु नामक मुनी थे। उन्होंने गोमती नदी के तट पर घोर तपस्या की, तब इन्द्र ने उनकी तपस्या भंग करने के लिए प्रम्लोचा नाम की अप्सरा को भेजा। जिसने उनकी तपस्या भंग कर दी और दोनों मंदराचल पर्वत की गुफाओं में रहने लगे।
(2) 100 से भी अधिक वर्षों तक साथ रहने के बाद उस अप्सरा ने स्वर्ग लोक जाने की कण्डु मुनि से आज्ञा मांगी तब उन्होंने उसे रोक लिया।
(3) इसी कारण वह ऋषि 907 वर्ष,6 महीने तथा दिन और भी बीत चुका था, लेकिन ऋषि को ऐसा लग रहा था कि अभी बस एक दिन ही बीता है।
(4) जब प्रम्लोचा ने ऋषि से जाने की आज्ञा माँगी तब वे बहुत क्रोधित हुए, जिससे प्रम्लोचा डर से पसीने से भीग गई।
(5) फिर जब ऋषि ने उसे जानें को कहा, उसने आकाश मार्ग से जाते समय अपना पसीना वृक्ष के पत्तों से पोंछा।
(6) वह वृक्ष के लाल नए पत्तों से अपना पसीना पोंछने हुए एक वृक्ष से दूसरे वृक्षों पर चलती गई।
(7) प्रम्लोचा का गर्भ भी पसीने के साथ उनके शरीर से बाहर निकल आया। उस गर्भ को वृक्षों ने ग्रहण कर लिया, वायु ने एकत्रित कर दिया और अपनी किरणों से उसे पोषण करने लगा। इससे वह धीरे - धीरे बढ़ गया और उस कन्या का नाम मारिषा पड़ा।
(8) मारिषा पूर्व जन्म में एक महारानी थी और बाल विधवा थी। इन्होंने भगवान विष्णु की आराधना की और वर मांगा कि अगले जन्म में मेरे पति हो और प्रजापति (ब्रह्मा जी) के समान पुत्र हो और मेरे कुल, शील, अवस्था, सत्य, दाक्षिण्य (कार्य कुशलता) , शीघ्रकारिता, अविसंवादिता (उल्टा न कहना) , सत्त्व, वृद्धसेवा और कृतज्ञता आदि गुणों से तथा सुंदर रूप संपत्ति से संपन्न ,सबको प्रिय लगने वाली अयोनिजा (माता गर्भ से लिए बिना) ही उत्पन्न होऊँ।
(9) तब भगवान विष्णु ने उसे आशीर्वाद दिया की तेरे एक ही जन्म में बड़े पराक्रमी और विख्यात दस पति होंगे और उसी समय तुझे प्रजापति के समान एक पुत्र भी उत्पन्न होगा।
(10) प्रचेताओं ने मारिषा से विवाह किया और दक्ष प्रजापति का जन्म हुआ, जो पहले ब्रह्माजी से उत्पन्न हुए।
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