इक्ष्वाकु के वंशज कौन है ? - 1

✴️ विष्णु पुराण के अनुसार जिस समय रैवत ककुद्मी ब्रह्मलोक से लौट कर नहीं आये थे उसी समय पुण्यजन नामक राक्षसों ने उनकी पुरी कुशस्थली को ध्वंस कर दिया।


✴️उनके सौ भाई पुण्यजन राक्षसों के भय से दसों दिशाओं में भाग गये। उन्हीं के वंश में उत्पन्न हुए क्षत्रियगण समस्त दिशाओं में फैले। धृष्ट के वंश में धाष्- र्टक  नामक क्षत्रिय हुए।


✴️ नाभाग के नाभाग नामक पुत्र हुआ, नाभाग का अम्बरीष नामक पुत्र और अम्बरीष का पुत्र विरूप हुआ। विरूप से पृषदश्व का जन्म हुआ तथा पृषदश्व के रथीतर नामक पुत्र हुआ।

रथीतर के वंशज क्षत्रिय सन्तान होते हुए भी आंगिरस कहलाये और वे क्षत्रोपेत ब्राह्मण हुए।


✴️ मनु के छींकने के समय इक्ष्वाकु नामक पुत्र का जन्म हुआ जिनके सौ पुत्र हुए। जिनमें से विकुक्षि, निमि ,दण्ड नामक तीन पुत्र मुख्य हुए तथा उनके शकुनि आदि पचास पुत्र उत्तरापथ के और शेष 48 दक्षिणापथ के शासक हुए।

इक्ष्वाकु के पुत्र विकुक्षि हुए, जिन्होंने यज्ञ का एक शशक खा लिया,तभी से विकुक्षि का नाम शशाद पड़ा और पिता ने उसको त्याग दिया। शशाद के पूरंजय नामक पुत्र हुआ।


✴️ पूरंजय का देवराज इंद्र के कारण ककुत्स्थ नाम पड़ा।


✴️ ककुत्स्थ (पूरंजय) का अनेना नामक पुत्र हुआ। अनेना के पुत्र पृथु , पृथु के पुत्र विष्टराश्व (विष्टराश् - व) ,विष्टराश्व के पुत्र चांद्र युवनाश्व नामक पुत्र हुआ।

चांद्र युवनाश्व के पुत्र शावस्त हुआ, जिन्होंने शावस्ती पुरी बसायी।


✴️ शावस्त के पुत्र बृहदश्व,बृहदश्व के पुत्र कुवलयाश्व का जन्म हुआ, जिसने वैष्णवतेज से पूर्णता लाभ कर अपने 21 सहस्त्र पुत्रों के साथ मिलकर महर्षि उदक के धुंधुमार का जन्म हुआ।

उनके सभी पुत्र धुंधु के मुख से निकले हुए आग से जलकर मर गये। उनमें से केवल दृढ़ाश्व , चंद्राश्व और कपिलाश्व ये तीन ही बचे थे।


✴️ दृढ़ाश्व के हर्यश्व नामक पुत्र हुआ, हर्यश्व का पुत्र निकुंभ, निकुंभ का पुत्र अमिताश्व, अमिताश्व का पुत्र कृशाश्व , कृशाश्व का पुत्र प्रसेनजीत हुआ।


✴️ प्रसेनजीत युवनाश्व निसंतान होने के कारण खिन्न होकर मुनियों के आश्रम में रहने लगे,मुनियों ने उनके पुत्र प्राप्ति के लिए यज्ञ किया और अभिमंत्रित जल तैयार किया। 

जिस जल को राजा ने गलती से पी लिया और एक पुत्र को जन्म दिया,जिसका नाम मांधाता पड़ा। जहां से सूर्य उदय होता है और जहां अस्त होता हैं वह सभी क्षेत्र मांधाता का है।


✴️ मांधाता ने शतबिंदु की पुत्री बिंदुमती से विवाह किया और उससे पुरुकुत्स , अम्बरीष और मचुकुंद नामक तीन पुत्र उत्पन्न हुए और बिंदुमती से ही 50 कन्याओं का जन्म हुआ।


✴️ मांधाता की 50 पुत्रियों का विवाह सौभरि ऋषि से हुआ था और इनके 50 पत्नियों से 150 पुत्र हुए।

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