प्रजापति दक्ष का वंश वर्णन !

🔶 प्रजापति दक्ष ने ब्रह्मा जी की आज्ञा से सर्ग रचना के लिए उद्यत होकर उनकी अपनी सृष्टि बढ़ाने और संतान उत्पन्न करने के लिए नीच ऊंच तथा द्विपद चतुष्पद आदि अलग अलग जीवों को पुत्र रूप में उत्पन्न किया। 


🔶 प्रजापति दक्ष ने पहले मन से ही स्त्रियों की सृष्टि करके फिर स्त्रियों की उत्पत्ति की।


🔶 प्रजापति दक्ष और उनकी पत्नी वैरुणी से 60 कन्याएं उत्पन्न हुई उनमें से 10 कन्याएं अरुंधती, वसु, यामी ,लम्बा, भानु, मरुत्वती , संकल्पा, मुहूर्ता, साध्या और विश्वा का विवाह धर्म से कर दिया।


🔶 13 कन्याओं अदिति, दिती, दनु ,अरिष्टा,सुरसा, खसा, सुरभि , विनता, ताम्रा, क्रोधवशा, इरा, कद्रु और मुनि का विवाह कश्यप ऋषि से कर दिया।

27 कन्याओं का विवाह चंद्रमा से कर दिया।


🔶 चार पुत्रियों कपिला, अतिलोहिता, पीता और आशिता का आरिष्टनेमी से, दो पुत्रियों का बहुपुत्र से, ,दो पुत्रियों का अंगिरा ऋषि से और दो पुत्रियों का कृशाश्व से विवाह कर दिया।

उन्हीं से देवता, दैत्य, नाग, गौ, पक्षी, गंधर्व, अप्सरा और दानव आदि उत्पन्न हुए।


🔶 दक्ष के समय से ही प्रजा का मैथुन (स्त्री पुरुष संबंध) द्वारा उत्पन्न होना आरंभ हुआ है। उससे पहले तो तपस्वी प्राचीन सिद्ध पुरुषों के तपोबल से उनके संकल्प, दर्शन अथवा स्पर्श मात्र से ही प्रजा उत्पन्न होती थी। 


🔶 दक्ष समय - समय पर जन्म लेते रहते हैं और ये चक्र चलता रहता है। 


🔶 प्रजापति दक्ष ने सर्ग की वृद्धि के लिए 5000 पुत्र उत्पन्न किये। जिन्होंने नारद जी के समझाने पर संसार को आगे बढ़ाने की इच्छा को त्याग कर संन्यास ले लिया।


🔶 उनके चले जानें के बाद दक्ष ने 1000 पुत्र और उत्पन्न किए लेकिन इन सभी को भी नारद जी ने समझाया और वे अपने भाइयों को ढूंढने चले गए।


🔶 प्रजापति दक्ष की पुत्री विश्वा के पुत्र विश्वदेवा थे, साध्या से साध्यगण हुए, मरुत्वती से मरुत्वान और वसु से वसुगण हुए तथा भानु से भानु और मुहूर्ता से मुहूर्ताभिमानी देवगण हुए।


🔶 लम्बा से घोष, यामी से नागविथी और अरुंधती से समस्त पृथ्वी विषयक प्राणी हुए तथा संकल्पा से सर्वात्मक संकल्प की उत्पत्ति हुई।


🔶 आठ वसुगण के नाम आप, ध्रुव, सोम, अनिल (वायु) , अनल (अग्नि) , प्रत्युष और प्रभास कहे जाते है।

वसुओं में आप के पुत्र वैतंण्ड ,श्रम शान्त और ध्वनि हुए तथा ध्रुव के पुत्र भगवान काल हुए। 


🔶 भगवान वर्चा सोम के पुत्र थे जिनसे पुरुष वर्चस्वी हो जाता है और धर्म के उनकी भार्या मनोहरा से द्रविण, हुत एवं हव्यवह तथा शिशिर, प्राण और वरुण नामक पुत्र हुए। 


🔶 अनिल की पत्नी शिवा थी, उससे अनिल के मनोजव और अविज्ञातगति ये दो पुत्र हुए। 


🔶 अग्नि के पुत्र कुमार शरस्तम्ब (सरकंडे) से उत्पन्न हुए थे, ये कृतिकाओं के पुत्र होने से कार्तिकेय कहलाए।

 शाख, विशाख और नैगमेय इनके छोटे भाई थे।


🔶 देवल नामक ऋषि को प्रत्युष का पुत्र कहा जाता है। इन देवल के भी दो क्षमाशील और मनीषी पुत्र हुए। 


🔶 बृहस्पति जी की बहन वरस्त्री, जो ब्रह्मचारिणी और सिद्ध योगिनी थी तथा अनासक्त भाव से समस्त भूमंडल में विचरती थी।

आठवें वसु प्रभास की पत्नी हुई , उनसे प्रजापति विश्वकर्मा जी का जन्म हुआ,जो सभी शिल्पकारों में श्रेष्ठ और सब प्रकार के आभूषण बनाने वाले हुए।जिन्होंने देवताओं के सभी विमानों की रचना की।


🔶 विश्वकर्मा जी के चार पुत्र थे अजैकपाद, अहिर्बुधन्य , त्वष्टा और रुद्र थे। 


🔶  हर, बहुरूप, त्रयम्बक, अपराजित, वृषाकपि , शंभू कपर्दी, रैवत, मृगव्याध, शर्व और कपाली ये त्रिलोक के अधीश्वर 11 रुद्र कहे गए हैं। 


🔶 ऐसे सैकड़ों महातेजस्वी एकादश रुद्र प्रसिद्ध है।


🔶 उनमें से त्वष्टा के पुत्र विश्वरूप थे।

जो (दक्षकन्याएं) कश्यप की पत्नियां हुई उनके नाम अदिति, दिती, दनु , अरिष्टा ,सुरसा, खसा, सुरभि , विनता, ताम्रा, क्रोधवशा, इरा, कद्रु और मुनि थी। 


🔶 जिनमें से अदिति की संताने विष्णु ,इंद्र ,अर्यमा , धाता ,त्वष्टा ,पूषा, विवस्वान ,सविता , मैत्र , वरुण , अंशु और भग नामक द्वादश आदित्य कहलाये।

 

🔶 दिती और कश्यप जी के हिरण्यकशिपु और हिरण्याक्ष नामक दो पुत्र तथा सिंहिका नाम की एक कन्या हुई जिसका विवाह विप्रचित्ति से हुआ।


🔶 हिरण्यकशिपु के अनुह्लाद , ह्लाद , प्रह्लाद और संह्लाद नामक चार पुत्र हुए।


🔶 अरिष्टनेमी के 16 पुत्र थे।

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