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Showing posts from June, 2025

अश्वत्थामा का नाम अश्वत्थामा क्यों पड़ा ?

अश्वत्थामा द्रोणाचार्य के पुत्र थे।  द्रोणाचार्य ने शिव जी की तपस्या की और  शिव के समान पुत्र प्राप्त किया।   अश्वत्थामा की माता का नाम कृपि था। जब अश्वत्थामा का जन्म हुआ तब वह सामान्य बच्चों की तरह रोया नहीं बल्कि उनके मुँह से उच्चै:श्रवा नामक घोड़े की तरह आवाज निकली। जिसके कारण द्रोणाचार्य ने अपने पुत्र का नाम अश्वत्थामा रख दिया।

राजा जनक के वंशज कौन थे ?

⚫ इक्ष्वाकु के निमी नामक पुत्र थे। उसने एक सहस्त्र वर्ष में समाप्त होने वाले यज्ञ का आरंभ किया। 🔴 वसिष्ठ जी ने निमी को देहहीन होने का श्राप दिया। तब अराजकता के भय से मुनिजनों ने पुत्रहीन राजा के शरीर को अरणि (शमीदण्ड) से मंथा और उससे एक पुत्र का जन्म हुआ।  ⚫ जो जन्म लेने के कारण जनक कहलाया। इसके पिता विदेह थे इसलिये यह वैदेह भी कहलाता है और मंथन से उत्पन्न होने के कारण मिथी भी कहा जाता है। 🔵 उसके उदावसु नामक पुत्र हुआ, उदावसु के पुत्र नन्दिवर्द्धन ,नन्दिवर्द्धन के पुत्र सुकेतु, सुकेतु के पुत्र देवरात,देवरात के पुत्र बृहदुक्थ ,बृहदुक्थ के पुत्र महावीर्य , महावीर्य के पुत्र सुधृति , सुधृति के पुत्र धृष्टकेतु, धृष्टकेतु के पुत्र हर्यश्व और हर्यश्व के मनु हुये। 🔴 मनु के पुत्र प्रतीक , प्रतीक के पुत्र कृतरथ , कृतरथ के पुत्र देवमीढ़, देवमीढ़ के पुत्र विबुध ,विबुध के पुत्र महाधृति ,महाधृति के पुत्र कृतरात, कृतरात के पुत्र महारोमा ,महारोमा के पुत्र सुवर्णरोमा ,सुवर्णरोमा के पुत्र ह्रस्वरोमा, ह्रस्वरोमा के सीरध्वज नामक पुत्र हुआ।  🔵 सीरध्वज पुत्र की कामना से यज्ञभूमि को जोत रहे ...

इक्ष्वाकु के वंशज कौन है ? - 2

मांधाता वंशज 🔴 मांधाता के पुत्र अम्बरीष के युवनाश्व नामक पुत्र हुआ, उससे हारीत नामक पुत्र हुआ,जिससे अंगिरा गोत्रीय हारीतगण हुए। 🔴 युवनाश्व का पुत्र मांधाता , मांधाता के पुत्र पुरुकुत्स है। पुरुकुत्स ने नर्मदा से त्रसद्दस्यु नामक पुत्र उत्पन्न किया।  🔴 त्रसद्दस्यु का पुत्र अरण्य , जिसे दिग्विजय के समय रावण ने मारा था। अरण्य का पुत्र पृषदश्व ,पृषदश्व का पुत्र हर्यश्व ,हर्यश्व का पुत्र हस्त, हस्त का पुत्र सुमना ,सुमना का पुत्र त्रिधन्वा ,त्रिधन्वा का पुत्र त्रय्यारुणि और त्रय्यारुणि का पुत्र सत्यव्रत था, जो बाद में त्रिशंकु कहलाया। 🔴 त्रिशंकु से प्रसन्न होकर विश्वामित्र जी ने उन्हें सदेह स्वर्ग भेज दिया। 🔴 त्रिशंकु के पुत्र हरिश्चन्द्र, हरिश्चन्द्र के पुत्र रोहिताश्व, रोहिताश्व के पुत्र हरित, हरित के पुत्र चंचु , चंचु के पुत्र विजय और वसुदेव, विजय के पुत्र रुरुक और रुरुक के पुत्र वृक का जन्म हुआ। 🔴 वृक के बाहु नामक पुत्र हुआ जो हैहय और तालजंघ आदि क्षत्रियों से पराजित होकर अपनी गर्भवती पटरानी के सहित वन में चला गया। 🔴 और्व मुनि के आश्रम में बाहु की पत्नी एक पुत्र को जन्म दिया,जि...

कैसी थी श्री कृष्ण की द्वारका ?

श्री कृष्ण के कहने पर विश्वकर्मा जी ने द्वारका नगरी का निर्माण किया - 🔵 विश्वकर्मा जी के विज्ञान (वस्तु विज्ञान) और शिल्पकला की निपुणता से द्वारका नगरी में वास्तुशास्त्र के अनुसार बड़ी - बड़ी सड़कों, चौराहों और गलियारों का ठीक - ठीक विभाजन किया गया था।  🔵 वह नगर ऐसा सुंदर - सुंदर उद्यानों और विचित्र - विचित्र उपवनों से युक्त था, जिसमें देवताओं के वृक्ष और लताएं लहलहाती रहती थी।  🔵 सोने के इतने ऊंचे - ऊंचे शिखर थे, जो आकाश से बातें करते थे।  द्वारका में स्फटिक मणि और चांदी के 9 लाख महल थे।  🔵 स्फटिकमणि की अटारियाँ और ऊंचे - ऊंचे दरवाजे बड़े ही सुंदर लगते थे।  फर्श आदि में जड़ी हुई महामरकत मणि (पन्ने) की प्रभा से जगमगा रही थी और उनमें सोने तथा हीरे की बहुत सारी सामग्रियां थी।  🔵 अन्न रखने के लिए चांदी और पीतल के बहुत कोठे बने हुए थे। 🔵 वहाँ के महल सोने के बने हुए थे और उन पर कामदार सोने के कलश थे। उनके शिखर रत्नों के थे तथा गच पन्नों की बनी हुई ,बहुत भली मालूम होती थी। 🔵 उस नगर में वास्तुदेवता के मंदिर और छज्जे भी बहुत सुंदर - सुंदर बने हुए थे। उसमें च...

अपनी पत्नी को हल से क्यों छोटा किया बलराम जी ने ?

🏵️ मनु पुत्र शर्याति के सुकन्या नाम की एक कन्या हुई, जिसका विवाह च्यवन ऋषि से हुआ था। 🏵️ शर्याति के पुत्र आनर्त्त और आनर्त्त के रेवत नाम का पुत्र हुआ, जिसने कुशस्थली नाम की पुरी में रहकर आनर्त्त देश का राजभोग किया। 🏵️ रेवत का भी रैवत ककुद्मी नामक पुत्र हुआ, जो अपने सौ भाईयों में सबसे बड़ा था। उसके रेवती नाम की एक कन्या हुई।  🏵️ एक महाराज रैवत अपनी पुत्री रेवती को लेकर ब्रह्मलोक पहुंचे और ब्रह्मा जी से पूछा कि यह कन्या किस वर के योग्य हैं। उस समय ब्रह्माजी के समीप हाहा और हूहू नामक दो गंधर्व अतितान नामक दिव्य गान गा रहे थे। 🏵️ वहाँ (गान संबंधी चित्रा, दक्षिणा और धात्री नामक) त्रिमार्ग के परिवर्तन के साथ उनका विलक्षण गान सुनते हुए पृथ्वी पर अनेकों युग बीत गये, लेकिन ब्रह्मलोक में रैवत जी को लगा कि केवल थोड़ा सा समय बिता हैं। 🏵️ गाना समाप्त हो जाने पर रैवत जी ने ब्रह्मा जी से अपनी कन्या के योग्य वर पूछा। भगवान् ब्रह्मा ने कहा - तुम्हें जो वर पसंद हो उन्हें बताओं " 🏵️ तब रैवत जी ने भगवान् ब्रह्मा जी प्रणाम कर सभी वरों का वर्णन किया और पूछा कि " इसमें से आपको कौन वर पसंद है...

मनु के वंशज कौन थे ?

वैवस्वत मनु के वंशज ⚫ भगवान ब्रह्मा जी सबसे पहले प्रकट हुए। ब्रह्माजी के दाएं अंगूठे से दक्ष प्रजापति हुए, दक्ष से अदिति का जन्म हुआ, अदिति से विवस्वान का जन्म हुआ और विवस्वान से मनु का जन्म हुआ। ⚫ मनु के इक्ष्वाकु, नृग, धृष्ट, शर्याति, नरिष्यन्त , प्रांशु, नाभाग , दृष्ट , करूष और पृषध्र नामक दस पुत्र हुए। ⚫ मनु ने पुत्र की इच्छा से मित्रावरुण नामक दो देवताओं के यज्ञ का अनुष्ठान किया। ⚫ जिससे मनु सुद्युम्न नामक पुत्र हुआ। फिर महादेव जी के गुस्से के कारण वह इला नामक स्त्री हो गई जिसका विवाह बुध से हो गया। फिर इनका पुरुरवा नामक पुत्र हुआ।  ⚫ पुरुरवा के जन्म के बाद इला फिर से सुद्युम्न हो गई और सुद्युम्न के भी उत्कल, गय और विनत नामक तीन पुत्र हुए। पहले स्त्री होने के कारण सुद्युम्न को राज्याधिकार प्राप्त नहीं हुआ। ⚫ वशिष्ठ जी के कहने पर उनके पिता ने प्रतिष्ठान नामक नगर पुरुरवा को दे दिया। पुरुरवा की सन्तान सभी दिशाओं में फैले हुए क्षत्रिय गण हुए। ⚫ मनु का पृषध्र नामक पुत्र गुरु की गौ का वध करने के कारण शूद्र हो गया। मनु का पुत्र करूष था, करूष से करूष नामक महाबली और पराक्रमी क्षत्रियगण...

किस ऋषि का विवाह 50 राजकुमारियों से हुआ था ?

सौभरि ऋषि का विवाह मांधाता की 50 राजकन्याओं से हुआ था।   ♦️ एक समय बह्वृच सौरभि नामक महर्षि ने बारह वर्ष तक जल में निवास किया। उस जल में सम्मद नामक एक बहुत सी संतानों वाला और बहुत बड़ा मत्स्यराज था। ♦️ उनके पुत्र, पौत्र और दौहित्र आदि उसके आगे पीछे तथा इधर उधर पक्ष, पुच्छ और सिरके ऊपर घूमते हुए अति खुश होकर रात दिन उसी के साथ क्रीडा करते रहते थे तथा वह भी अपनी सन्तान के स्पर्श से अत्यंत खुश होकर उन मुनिश्वर के देखते अपने पुत्र, पौत्र और दौहित्र आदि के साथ खेला करता था। ♦️ इस प्रकार जल में स्थित सौभरि ऋषि ने एकाग्रचित्त होकर समाधि छोड़कर रात दिन उस मत्स्यराज की अपने पुत्र, पौत्र और दौहित्र आदि के साथ उनके मन में भी सन्तान प्राप्ति की अभिलाषा से विवाह की इच्छा से राजा मांधाता के पास आये। ♦️ सौभरि ऋषि ने राजा मांधाता से कहा कि मुझे विवाह करना है जिसके लिए मुझे एक कन्या चाहिए इसलिए मैं आपके पास आया हूँ। आप मुझे अपनी 50 कन्याओं में से केवल एक ही कन्या दे दो। ♦️ सौभरि ऋषि श्राप न दे दे इस भय से राजा ने कहा कि आप राजकुमारियों के पुर में जाये और यदि मेरी कोई भी पुत्री आपके विवाह करने को तै...

विकुक्षि का शशाद नाम कैसे पड़ा ?

एक बार इक्ष्वाकु ने अष्टकाश्राद्ध का आरंभ कर अपने पुत्र विकुक्षि को श्राद्ध के योग्य मांस लाने को कहा। पिता की आज्ञा से विकुक्षि धनुष बाण लेकर वन में अनेकों मृगों (हिरन) का वध किया, लेकिन थका और भूखा होने के कारण विकुक्षि ने उनमें से एक शशक (खरगोश) को खा लिया और बचा हुआ मांस लाकर अपने पिता को पूजा करने के लिए दे दिया। इक्ष्वाकु वंश के कुल पुरोहित वशिष्ठ जी ने उन्हें बताया कि यह अपवित्र मांस है। तुम्हारे दुरात्मा पुत्र ने इसे भ्रष्ट कर दिया है, क्योंकि उसने इसमें से एक शशक खा लिया है। गुरु के ऐसा कहने पर पिता ने विकुक्षि को त्याग दिया। तभी से विकुक्षि का नाम शशाद पड़ा। पिता के मरने के बाद उसने इस पृथ्वी पर धर्मानुसार शासन किया। उस शशाद के पूरंजय नामक पुत्र हुआ।

पूरंजय का ककुत्स्थ नाम क्यों पड़ा ?

पूरंजय का एक दूसरा नाम पड़ा। त्रेतायुग में एक बार अति भीषण देवासुर संग्राम हुआ। जिसमें देवताओं ने अपनी पराजय के बाद भगवान विष्णु की आराधना की,तब विष्णु जी ने प्रसन्न होकर कहा कि राजा शशाद के पुत्र पूरंजय के माध्यम से मैं (विष्णु) सभी दैत्यों का नाश कर दूंगा।  जब ये बातें पूरंजय को देवताओं ने बतायी तब पूरंजय ने देवराज इंद्र के वृषभ रूप के कंधे पर चढ़कर शत्रुओं का अन्त किया , जिसके कारण उसका नाम ककुत्स्थ पड़ा।

इक्ष्वाकु के वंशज कौन है ? - 1

✴️ विष्णु पुराण के अनुसार जिस समय रैवत ककुद्मी ब्रह्मलोक से लौट कर नहीं आये थे उसी समय पुण्यजन नामक राक्षसों ने उनकी पुरी कुशस्थली को ध्वंस कर दिया। ✴️उनके सौ भाई पुण्यजन राक्षसों के भय से दसों दिशाओं में भाग गये। उन्हीं के वंश में उत्पन्न हुए क्षत्रियगण समस्त दिशाओं में फैले। धृष्ट के वंश में धाष्- र्टक  नामक क्षत्रिय हुए। ✴️ नाभाग के नाभाग नामक पुत्र हुआ, नाभाग का अम्बरीष नामक पुत्र और अम्बरीष का पुत्र विरूप हुआ। विरूप से पृषदश्व का जन्म हुआ तथा पृषदश्व के रथीतर नामक पुत्र हुआ। रथीतर के वंशज क्षत्रिय सन्तान होते हुए भी आंगिरस कहलाये और वे क्षत्रोपेत ब्राह्मण हुए। ✴️ मनु के छींकने के समय इक्ष्वाकु नामक पुत्र का जन्म हुआ जिनके सौ पुत्र हुए। जिनमें से विकुक्षि, निमि ,दण्ड नामक तीन पुत्र मुख्य हुए तथा उनके शकुनि आदि पचास पुत्र उत्तरापथ के और शेष 48 दक्षिणापथ के शासक हुए। इक्ष्वाकु के पुत्र विकुक्षि हुए, जिन्होंने यज्ञ का एक शशक खा लिया,तभी से विकुक्षि का नाम शशाद पड़ा और पिता ने उसको त्याग दिया। शशाद के पूरंजय नामक पुत्र हुआ। ✴️ पूरंजय का देवराज इंद्र के कारण ककुत्स्थ नाम पड़ा। ✴️ क...

प्रजापति दक्ष का वंश वर्णन !

🔶 प्रजापति दक्ष ने ब्रह्मा जी की आज्ञा से सर्ग रचना के लिए उद्यत होकर उनकी अपनी सृष्टि बढ़ाने और संतान उत्पन्न करने के लिए नीच ऊंच तथा द्विपद चतुष्पद आदि अलग अलग जीवों को पुत्र रूप में उत्पन्न किया।  🔶 प्रजापति दक्ष ने पहले मन से ही स्त्रियों की सृष्टि करके फिर स्त्रियों की उत्पत्ति की। 🔶 प्रजापति दक्ष और उनकी पत्नी वैरुणी से 60 कन्याएं उत्पन्न हुई उनमें से 10 कन्याएं अरुंधती, वसु, यामी ,लम्बा, भानु, मरुत्वती , संकल्पा, मुहूर्ता, साध्या और विश्वा का विवाह धर्म से कर दिया। 🔶 13 कन्याओं अदिति, दिती, दनु ,अरिष्टा,सुरसा, खसा, सुरभि , विनता, ताम्रा, क्रोधवशा, इरा, कद्रु और मुनि का विवाह कश्यप ऋषि से कर दिया। 27 कन्याओं का विवाह चंद्रमा से कर दिया। 🔶 चार पुत्रियों कपिला, अतिलोहिता, पीता और आशिता का आरिष्टनेमी से, दो पुत्रियों का बहुपुत्र से, ,दो पुत्रियों का अंगिरा ऋषि से और दो पुत्रियों का कृशाश्व से विवाह कर दिया। उन्हीं से देवता, दैत्य, नाग, गौ, पक्षी, गंधर्व, अप्सरा और दानव आदि उत्पन्न हुए। 🔶 दक्ष के समय से ही प्रजा का मैथुन (स्त्री पुरुष संबंध) द्वारा उत्पन्न होना आरंभ हुआ है।...

प्रजापति दक्ष का जन्म !

(1) बहुत समय पहले एक कण्डु नामक मुनी थे। उन्होंने गोमती नदी के तट पर घोर तपस्या की, तब इन्द्र ने उनकी तपस्या भंग करने के लिए प्रम्लोचा नाम की अप्सरा को भेजा। जिसने उनकी तपस्या भंग कर दी और दोनों मंदराचल पर्वत की गुफाओं में रहने लगे।  (2) 100 से भी अधिक वर्षों तक साथ रहने के बाद उस अप्सरा ने स्वर्ग लोक जाने की कण्डु मुनि से आज्ञा मांगी तब उन्होंने उसे रोक लिया। (3) इसी कारण वह ऋषि 907 वर्ष,6 महीने तथा दिन और भी बीत चुका था, लेकिन ऋषि को ऐसा लग रहा था कि अभी बस एक दिन ही बीता है। (4) जब प्रम्लोचा ने ऋषि से जाने की आज्ञा माँगी तब वे बहुत क्रोधित हुए, जिससे प्रम्लोचा डर से पसीने से भीग गई।  (5) फिर जब ऋषि ने उसे जानें को कहा, उसने आकाश मार्ग से जाते समय अपना पसीना वृक्ष के पत्तों से पोंछा। (6) वह वृक्ष के लाल नए पत्तों से अपना पसीना पोंछने हुए एक वृक्ष से दूसरे वृक्षों पर चलती गई।  (7) प्रम्लोचा का गर्भ भी पसीने के साथ उनके शरीर से बाहर निकल आया। उस गर्भ को वृक्षों ने ग्रहण कर लिया, वायु ने एकत्रित कर दिया और अपनी किरणों से उसे पोषण करने लगा। इससे वह धीरे - धीरे बढ़ गया और उस...