असेंबली में बम किस क़ानून के खिलाफ फेंका गया ?
दल के केंद्रीय समिति में निश्चय किया गया कि दिल्ली असेंबली में बम फेंका जाय। यह बैठक 1929 के मार्च महिने में हुई।
दिल्ली की असेंबली में सरकार दो कानून पास करवाना चाह रही थी। ये कानून थे - ट्रेड डिस्पुट एक्ट (औद्योगिक विवाद कानून) और पब्लिक सेफ्टी बिल (सार्वजनिक सुरक्षा कानून) ।
वास्तव में इन कानूनों को बनाने का उद्देश्य था, भारत की जनता को अपनी नागरिक स्वतंत्रता के लिए सिर उठाने से रोकना।
औद्योगिक विवाद कानून के अनुसार सरकार मजदूरों से हड़ताल के अधिकार को छीनना चाहती थी। जबकि सार्वजनिक सुरक्षा कानून की आड़ में सरकार राष्ट्रीय आंदोलन को कुचलना चाहती थी।
इसी सिलसिले में केंद्रीय समिती की बैठक बुलायी गई और तय हुआ कि जिस दिन असेंबली में बिलों पर वायसराय की स्वीकृति की घोषणा की जाने वाली हो उसी दिन, बॉम विस्फोट करके बहरी सरकार के कान खोल दिये जाये और जनता के प्रतिरोध की सच्ची आवाज उन तक पहुंचायी जाये।
अप्रैल 1929 का दिन था। भगत सिंह और बटुकेश्वर दत्त ने असेंबली में बम विस्फोट किया और "इंकलाब ज़िंदाबाद " और "साम्राज्यवाद का नाश हो" जैसे नारे लगाए। जिससे वहां भगदड़ मच गई ,केवल मोतीलाल नेहरु, मुहम्मद अली जिन्ना और पंडित मदन मोहन मालवीय जी अपनी बेंच पर बैठे दिखायी दिये।
इसके बाद सदन में लाल रंग की पर्चियां फेंकी गई। जिसपर लिखा था "बहरों को सुनाने के लिए धमाके की जरूरत है। "
फिर भगत सिंह ने अपनी पिस्तौल को एक डेस्क पर रख दिया। तब अंग्रेज पुलिस ने भगत सिंह और बटुकेश्वर दत्त को गिरफ्तार कर लिया।
असेंबली बम काण्ड ने जनता की नजर में क्रांतिकारियों के लिए गहरी सहानुभूति भर दी। इसमें किसी को कोई हानि नहीं पहुंची।
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