द्वारका से जाने के बाद श्री कृष्ण की रानियों का हरण किसने किया ?
द्वारका नगरी के डूबने के बाद अर्जुन सभी का विधिपूर्वक प्रेत कर्म कर वज्र तथा अन्य कुटुंबियों को लेकर द्वारका से बाहर आये।
उस समय स्त्रियों को अकेले अर्जुन को ले जाते देख कर लुटेरों को लोभ हुआ। तब आभीर लुटेरे अर्जुन पर लाठी और ढेले लेकर द्वारकावासियों पर टूट पड़े। तब अर्जुन ने अपने गांडीव धनुष को चलाना चाहा पर ऐसा नहीं हुआ।
बहुत ही कठिनाई से जब उन्होंने प्रत्यंचा (डोरी) चढ़ाई फिर भी वे अपने धनुष को चला नहीं पाये और अपने अस्त्रों के मंत्र भी भूल गये।
तब वे वैसे ही सभी लुटेरों पर बाण बरसाने लगे। लेकिन उनके ये बाण केवल उन लुटेरों की त्वचा को ही भेद पा रहे थे। अर्जुन के अक्षय बाण भी उन अहीरों से लड़ने में नष्ट हो गये।
तब अर्जुन ने सोचा मैंने जो इतने राजाओं को जीता था वह सब कृष्ण जी का ही प्रभाव था। अर्जुन के देखते ही देखते वे अहीर उन सभी स्त्रियों को खींच कर ले जाने लगे।
जब अर्जुन के बाण खत्म हो गये तब अर्जुन बाण की नोक से ही उन पर प्रहार करने लगे और देखते ही देखते वे सभी उन स्त्रियों को लेकर चले गये।
तब अर्जुन बहुत दुखी होकर रोने लगे और अपनी राजधानी इंद्रप्रस्थ लौट आये। यहां आकर यादवों के वंशज वज्र का राज्याभिषेक हुआ।
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