ऐसी महामारी जिसने यूरोप की आधी आबादी को खत्म कर दिया था?

 प्लेग (ब्लैक डैथ) की शुरुआत

इसके कारणों और परिणामों पर तमाम तरह के शोध हुए है। सभी शोधों से यह पता चलता है कि ये महामारी चीन से शुरू हुई थी।

चीन में ये रोग कैसे शुरू हुआ ये अब तक एक रहस्य बना हुआ है लेकिन उस दौर में चीन में कई बार प्लेग ( इसे ब्लैक डैथ के नाम से भी जाना जाता है )  फैला था।

1340 के बाद चीन में फिर एक बार प्लेग फैला लेकिन इस बार ये चीन की सरहद तक सिमट कर नहीं रहा।

ये बीमारी बाकी जगह कैसे पहुंची ?

व्यापार में सहूलियत के हिसाब से मध्य एशिया, एशिया व दक्षिण यूरोप के बीच संपर्क स्थापित करने के लिए जल व थल मार्ग विकसित किया गया था। जिसे सिल्क रोड कहा जाता था क्योंकि उसी रोड से सिल्क का व्यापार हुआ करता था।

14 वीं शताब्दी के चौथे दसक में चीन में प्लेग का विस्फोट हुआ।

प्लेग फैलाने वाले कीटाणु काले चूहों के साथ सन् 1346 में चीन के युक्रेन के क्रीमिया में पहुंच गए ।

क्रीमिया से सामान से भरे जहाजों को जब इटली के सिसली पोर्ट के लिए रवाना किया गया, तब  चूहों के साथ ये कीटाणु जहाज पर सवार हो गए। जिसके कारण जहाज पर सवार लोग इस बीमारी के संक्रमण से ग्रस्त होने लगे और कुछ लोगों की तो मृत्यु, जहाज पर ही हो गई।



सन् 1347 अक्टूबर महीने में 1 दर्जन व्यापारिक जहाज सिसली बंदरगाह आए।काफी संख्या में लोग जहाज का स्वागत करने के लिए इकट्ठा हुए थे। जहाज किनारे तो लगे लेकिन कोई व्यक्ति बाहर नहीं निकला।


लोगो को कुछ समझ में नहीं आया,तो वह खुद अंदर गए। उन्होंने देखा कि चारों तरफ लाशें बिखरी पड़ी थी,और उनमें कुछ जिंदा लोग भी थे।


इतनी सारी लाशें देख कर लोग भौंचक्का रह गए हालांकि लोगो ने मृत व बीमार लोगों को किसी तरह बाहर निकाला।
लोगों को उस वक्त पता नहीं था कि यह एक संक्रामक रोग है।

इसका असर क्या हुआ ?

प्राकृतिक आपदा और महामारी का जैसा असर बाकी देशों पर था वैसा ही यूरोप पर भी था।

ब्लैक डैथ के फैलने से पहले सन् 1315 के आस पास उत्तरी यूरोप खद्यान संकट की चपेट में आ गया था।


1310 के बाद यूरोप का मौसम लगातार बिगड़ता चला गया। इससे खेती पूरी तरह से प्रभावित होने लगी थी। दूसरी तरफ 
यूरोप की आबादी भी बढ़ रही थी।


सन् 1315 में उस मौसम में बारिश हुई जिस मौसम में आमतौर पर बारिश नहीं होती थी और यह बारिश काफी लंबे समय तक हुई। इससे खेती भी बर्बाद हो गई।

जिनके पास कोई साधन नहीं था वो लोग भूखों मरने को मजबूत थे।


भूख की वजह से उत्तरी यूरोप के लाखों लोगों की तड़प - तड़प के मृत्यु हो गई थी।

प्लेग यूरोप के दूसरे हिस्से में धीरे-धीरे  फैलने लगा।

1) यूरोप में जगह - जगह सामूहिक कब्रे खोदी गई और शवों को दफनाया गया।

2) यूरोप में ये रोग इतनी तेजी से फैला की लोग डर के साये में जीने लगे।

3) खौफ का आलम ये था कि कोई रोगी के पास तक नहीं जाता था।

4) लोग किसी के पास नहीं जाते,रोगी के कपड़े नहीं छुते।

5) लोगों ने अपने आप को घरों में कैद कर लिया था।

6) परिवार में भी कोई एक दूसरे के पास नहीं जाता था।

क्योंकि उस वक्त प्रशासनिक अधिकारी भी इस बीमारी की चपेट में थे जिसकी वजह से कोई प्रशासनिक कदम नहीं उठाए जा रहे थे।


कहते है कि उस समय अनाज की किल्लत इतनी बढ़ गई कि जिसके पास अनाज था वो 300 प्रतिशत तक दाम बढ़ा कर बेचने लगे।

जियोवानी बोकासियो की किताब में महामारी का जिक्र

प्रख्यात इटालियन लेखक और पत्रकार जियोवानी बोकासियो 
"फ्लोरेंस " थे उन्होंने सब कुछ अपनी आंखो से देखा और अपनी किताब में इसके बारे में विस्तार से लिखा था।

                जियोवानी बोकासियो

खत्म कब हुई ?

सन् 1353 तक लगभग 5 साल तबाही मचाने के बाद ब्लैक डैथ का असर कम होने लगा था क्योंकि लोगों ने बीमार व्यक्तियों से खुद को दूर कर लिया था।

 लेकिन इसका यूरोप की अर्थव्यवस्था और समाज पर बहुत बुरा असर पड़ा।

ये महामारी धीरे-धीरे पुरे यूरोप में फ़ैल गई और वहां की आधी आबादी को खत्म कर दिया।

 ब्लैक डैथ को दुनिया के इतिहास में सबसे ख़तरनाक महामारी के नाम से जाना जाता है।

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