तुगलक़ वंश के द्वारा चलाए गए सिक्कों का पूर्ण इतिहास
भारत पर 1320 से 1414 तक तुगलक़ वंश का शासन था।
1325 में मुहम्मद बिन तुगलक ने राजगद्दी संभाली।
जितनी चर्चा मुहम्मद बिन तुगलक के चलाए सिक्को की हुई उतनी शायद ही किसी और भारतीय राजा के सिक्कों की हुई होगी।
ब्रिटिश मुद्रा शास्त्री एडवर्ड थॉमस (Edward Thomas) ने मुहम्मद बिन तुगलक को प्रिंस ऑफ मनीयर (Prince Of Moneyers) कहा इसका मतलब सिक्का चलाने वाला राजा।
एडवर्ड थॉमस ने मुहम्मद बिन तुगलक को राजाओं में सर्वोच्च राजा भी कहा।
शुरुआत में मुहम्मद बिन तुगलक ने जो सिक्के जारी किए वो उनके पिता गयासुद्दीन तुगलक द्वारा जारी किए गए सिक्कों की तरह ही थे।
इन सिक्कों पर अल - शहीद लिखा गया था जिसके द्वारा गयासुद्दीन तुगलक को श्रद्धांजलि दी गई थी।
ये सिक्के चर्चा का विषय बन गए थे क्योंकि लोग मानते थे कि गयासुद्दीन तुगलक की मृत्यु जिस दुर्घटना में हुई उसके पीछे मुहम्मद बिन तुगलक का हाथ था।
1327 में अर्थव्यवस्था को बदलने के लिए सोने का सिक्का 13 ग्राम का दीनार और चांदी का सिक्का 9.33 ग्राम का अदली जारी किया गया था।
उस समय चांदी कि कीमत सोने से ज्यादा थी।
तुगलक ने सोने और चांदी के सिक्कों का वजन अलग अलग रखकर दोनों को एक मानक देने का प्रयास किया ।
ऐसा करके वो अपने खजाने में रखे सोने के मान को स्थिर रखना चाहते थे।
आम जनता को सिक्कों का ये मानक समझ नहीं आया। उन्हें चांदी और सोने के सिक्कों की बराबर कीमत की बात समझ नहीं आई।
सात साल बाद 1334 में दोनों सिक्कों को वापस ले लिया गया,उसके बाद मुहम्मद बिन तुगलक ने अपने पिता द्वारा चलाए गए सिक्कों का रूप बदल कर उन्हें फिर बाजार में चलाया।
उनकी ज्यादातर सिक्कों की हस्तलीपि और ढलाई दिल्ली सल्तनत के पहले जारी किए गए सिक्कों से बेहतर थी।
मुहम्मद बिन तुगलक के द्वारा चलाए गए सिक्को में सुंदर और स्पष्ट हस्तलिपि का ध्यान रखा गया था। इन सिक्को पर इस्लाम का संदेश भी प्रसारित किया गया था।
इन सिक्कों पर शासक के नाम के साथ कलमा और बग़दाद के पहले खलीफा का नाम लिखा होता था।
तुगलक राजवंश इस परिपाठी को एक कदम आगे लेे गए। उन्होंने इस्लाम के चारों खलीफाओं उमर, उस्मान , अली, अबुबकर का नाम लिखवाया।
मिस्र में किस तरह के सिक्के बनाए जाते है यह कला सीखने के लिए मुहम्मद बिन तुगलक ने अपना दूत मिस्र भेजा, मगर दूत के पहुंचने से पहले सिक्के बनाने में माहिर अब्बासिद खलीफ (Abbasid khalif) कि मृत्यु हो गई थी और दूत को खाली हाथ लौटकर आना पड़ा।
आम जनता को सिक्कों का ये मानक समझ नहीं आया। उन्हें चांदी और सोने के सिक्कों की बराबर कीमत की बात समझ नहीं आई।
सात साल बाद 1334 में दोनों सिक्कों को वापस ले लिया गया,उसके बाद मुहम्मद बिन तुगलक ने अपने पिता द्वारा चलाए गए सिक्कों का रूप बदल कर उन्हें फिर बाजार में चलाया।
उनकी ज्यादातर सिक्कों की हस्तलीपि और ढलाई दिल्ली सल्तनत के पहले जारी किए गए सिक्कों से बेहतर थी।
मुहम्मद बिन तुगलक के द्वारा चलाए गए सिक्को में सुंदर और स्पष्ट हस्तलिपि का ध्यान रखा गया था। इन सिक्को पर इस्लाम का संदेश भी प्रसारित किया गया था।
इन सिक्कों पर शासक के नाम के साथ कलमा और बग़दाद के पहले खलीफा का नाम लिखा होता था।
तुगलक राजवंश इस परिपाठी को एक कदम आगे लेे गए। उन्होंने इस्लाम के चारों खलीफाओं उमर, उस्मान , अली, अबुबकर का नाम लिखवाया।
मिस्र में किस तरह के सिक्के बनाए जाते है यह कला सीखने के लिए मुहम्मद बिन तुगलक ने अपना दूत मिस्र भेजा, मगर दूत के पहुंचने से पहले सिक्के बनाने में माहिर अब्बासिद खलीफ (Abbasid khalif) कि मृत्यु हो गई थी और दूत को खाली हाथ लौटकर आना पड़ा।
भारत में अब्बासिद खलीफ (Abbasid khalif) कि याद में एक चांदी का सिक्का चलाया।
तुगलक के शासन काल में चांदी की कमी के कारण चांदी और शीशा के मिश्रित धातु बिलियम (BILLIOM) के 25 सिक्के चलाए गए ।
इस प्रयोग के ज्यादा अच्छे परिणाम नहीं मिले। सोने और चांदी के सिक्के के आगे ये सिक्के नहीं चले ।
मुहम्मद बिन तुगलक बहुत बड़े विद्वान थे। साहित्य कला और अंतरराष्ट्रीय राजनीति के बारे में अच्छी समझ रखते थे,जों उनके सिक्को में दिखाई देती है।
उनके मुद्रा प्रणाली पर पड़ोसी देश चीन का प्रभाव नजर आता है चीन के मुद्रा प्रणाली से प्रेरणा लेकर मुहम्मद बिन तुगलक ने सिक्कों की दुनिया में एक क्रांतिकारी कदम उठाया और भारत में प्रतीकात्मक मुद्रा प्रणाली (Indian Token Currency) चलायी इस तरह सोने के सिक्के प्रचलन में आए।
इन सिक्कों की कीमत और शक्ति का आधार था राजकोष में रखा सोना। जिस तरह आज भारत की कागज़ की मुद्रा से सोने की कीमत अदा कर सकते है उसी तरह 14 वीं सदी में तांबे और पीतल के सिक्कों से सोने की कीमत अदा की जा सकती थी।
प्रतीकात्मक मुद्रा प्रणाली समय से आगे की सोच थी और इन्हें बनाने की सोच उतनी आधुनिक नहीं थी। देखते ही देखते राज्य के हर स्वर्णकार का घर शासकीय टकसाल बन गया ।
क्योंकि तांबा और पीतल बहुत सस्ती हुआ करती थी और स्थानीय स्वर्णकार भी इन सिक्कों को बहुत आसानी अपने घर में तैयार कर सकते थे।
तांबे और पीतल के भाव सिक्के के रूप में आते ही इनका भाव सोने के बराबर हो जाता था।
जल्द ही पूरे राज्य में जाली सिक्कों की भरमार हो गई और असली सिक्कों और नकली सिक्कों में फर्क करना मुश्किल हो गया।
इन सिक्कों ने समानांतर अर्थव्यवस्था स्थापित कर ली और राज्य को भारी घाटा उठाना पड़ा।
मुहम्मद बिन तुगलक का ये आर्थिक निर्णय एक बहुत बड़ी भूल साबित हुई और आम जनता का विश्वास सरकारी सिक्कों से उठ गया।
आम जनता का विश्वास वापस पाने के लिए सिक्कों में कई बदलाव किए गए। सिक्कों पर कुछ रिवायतें लिखवाई गई ,जैसे - जो शासक की आज्ञा मानते है वो ईश्वर की आज्ञा मानते है।
बाद में इसे नागरी लिपि में भी लिखा गया। लेकिन नकली सिक्कों के आगे सब विफल रहा और तांबे और पीतल के सिक्कों को बंद करने का फैसला करना पड़ा।
तांबे और पीतल के सिक्कों को चांदी और सोने के सिक्कों के बदले वापस ले लिया गया और राजकोष में तांबे और पीतल के सिक्कों की भरमार हो गई।
















Comments
Post a Comment