ग्वालियर के सिक्कों का पूर्ण इतिहास

पहली सदी में ग्वालियर की गद्दी नागवंश के आधीन हो चुकी थी। ग्वालियर में ढ़ाले सिक्के नागराज काल के थे और पहले सिक्के तांबे के थे जिनका वजन 2.78 gm था।




ये सिक्के ग्वालियर के पड़ोसी राज्यों पवाया और नरवर में भी पाए गए थे। जिससे ये पता चलता है कि इन सिक्कों का चलन काफी दूर तक फैला हुआ था।


ग्वालियर भारत के मध्य प्रदेश का एक महत्वपूर्ण शहर है इसे भारत का केंद्र बिंदु कहा जा सकता है।

ग्वालियर पर तोमर से लेकर सिंधियाओं ने राज किया है।

ग्वालियर के किले में, वहां की वास्तुकला और सिक्कों में ग्वालियर का अद्भुत इतिहास झलकता है, पर इन सिक्कों का ढ़लान किस जगह हुआ था इसका कोई प्रमाण या लेख उपलब्ध नहीं  है।

सन् 1021 में महमूद गजनी ने ग्वालियर के किले पर हमला कर दिया, लेकिन परिहार राजवंश की वीरता के आगे गजनवी असफल रहा।

चार दिन के युद्ध के बाद ग्वालियर के राजा ने शांति सन्धि पर हस्ताक्षर कर दिया,पर दुर्भाग्यवश ये सन्धि ज्यादा समय तक नहीं चली।

सन् 1195 में महमूद गजनी ने ग्वालियर के किले पर आक्रमण कर दिया और इसके साथ ही ग्वालियर का किला मुस्लिम राज्य के आधीन हो गया।

मुस्लिम राजाओं के कारण सिक्के ढ़ालना ग्वालियर में ही शुरू हुआ।


15 वीं सदी में ही पहली बार रुपए का भी चलन शुरु हुआ। ग्वालियर में रुपए को चांदी से और पैसे को तांबे से बनाया जाता था।



ये साफ दर्शाया जाता था कि चांदी के सिक्कों का मूल्य  तांबे के सिक्कों से ज्यादा होता था।इन सिक्कों पर ग्वालियर अंकित किया गया था।

इसके बाद 1528 में मुगल काल के दौर में ग्वालियर के सिक्कों को राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त हुई साथ ही ग्वालियर मुगल साम्राज्य का केंद्र भी बना।


पहली 
बार मुगल राजा अक़बर ने चांदी और तांबे के साथ - साथ सोने के सिक्कों का चलन ग्वालियर में आरंभ किया।



इतिहासकारों के अनुसार इन सिक्कों का चलन 1761 तक था।
1761 के बाद तीसरे पानीपत के युद्ध के बाद मराठा राजवंश अपने चरम पर था और महणजी राव ग्वालियर में शासन में आ चुके थे।



महणजी राव ने मुगल साम्राज्य की पुनर्स्थापना करने मे आलम शाह कि मदद की जिसके फलस्वरूप उन्हें ग्वालियर राज्य संभालने का दायित्व दिया गया।

महणजी राव ने ग्वालियर के सिक्कों में कोई बदलाव नहीं किया। महणजी राव के शासन काल में भी सिक्कों पर आलम शाह अंकित था जिन्हें ग्वालियर में ही बनाया जाता था।


ग्वालियर में बने चांदी के सिक्कों का वजन 11.25 gm और व्यास 22 mm था।

आगे चलकर उज्जैन में भी सिक्कों की टकसाल बनाई गई। इन सिक्कों के पृष्ठ भाग में टकसाल का चित्र और नाम अंकित था। आगे के भाग पर आलम शाह का चित्र अंकित था।


महणजी राव ने अपने शासन काल में ग्वालियर को एक नई पहचान दी और ग्वालियर को मराठा राज्य की राजधानी बनाया।

महणजी राव ने ग्वालियर पर 1794 तक शासन किया,
उनके बाद उनके भाई के पोते दौलत राव गद्दी पर बैठे।
15 वर्ष के दौलत राव को आलम शाह द्वितीय ने वकिल - अल - मुल्लाक और अमीर- अल - उमर की उपाधि प्रदान की।


दौलत राव के शासन काल में चांदी के एक सिक्के का मूल्य 4 आने का होता था।

दौलत राव का शासन काल कई मायने में महणजी राव के शासन काल से उपेक्षित था। अंग्रेज़ दौलत राव के शासन काल की सबसे बड़ी चुनौती थे


अंग्रेज़ भारत पर अपना शासन स्थापित करने चाहते थे 
ऐसे में ग्वालियर उनके लिए बहुत महत्वपूर्ण था। दौलत राव की मृत्यु के बाद उनकी पत्नी बाईजी राव सिंधिया ने शासन संभाला। फिर उन्होंने जानकोजी राव सिंधिया द्वितीय को गोद ले लिया और उनको अगले शासक के रूप में चुना।



 1827 से जानकोजी राव सिंधिया द्वितीय के शासन काल में सदियों से चले आ रहे सिक्कों में थोड़ा बदलाव आया।



अब सिक्कों के एक तरफ श्री और बाइजी राव का चिन्ह अंकित था और पीछे की तरफ आलम शाह द्वितीय अंकित था।



इन सिक्कों पर 23 साल भी अंकित था जिसका कारण आज तक इतिहासकारों के लिए अनसुलझी पहेली है।

17 साल के शासन काल में उनका राज्य विद्रोह और पड़ोसी राज्यों के साथ विवाद में उलझा रहा।

 सन् 1843 में उनकी भी मृत्यु हो गई। फिर उनकी पत्नी ताराबाई को बिना उनकी सहमति के
अगला राजा चुने जाने तक राज्य सौंप दिया गया।


फिर उन्होंने जयाजी राव सिंधिया को गोद ले लिया और उन्हें राजा चुना गया।

सन् 1862 में मुगल बादशाह बहादुर शाह जफर के पतन के बाद सिक्कों से आलम शाह का नाम हटा दिया गया।


अब देवनागरी लिपि में सिक्कों पर जी और स - म - स अंकित था और त्रिशूल बनाया गया था।



जी जयाजी के नाम का प्रतीक है और  का मतलब महाराज है। इन सिक्कों को मंदसौर में बनाया गया।

इसका वजन 7.47 gm और व्यास 18 mm था।

माधव राव ने अपने समय में सिक्कों पर कई बदलाव किए।
चिन्ह के रूप में एक त्रिशुल और नाग को दिखाया गया और श्री माधव राव मासिंदे को नागरी लिपि में अंकित किया गया था। किनारों को फूलों के चिन्हों से सजाया गया।


                        माधव राव

ज्यादातर सिक्के तांबे के थे जिनका मूल्य आधा पैसा और एक चौथाई आना था।

1925 में जीवाजी राव सिंधिया राजा बने। अब सिक्कों पर एक ओर जीवाजी राव का चित्र अंकित था और दूसरी ओर ब्रिटिश राज की प्रतिमा का चित्र अंकित था।

               जीवाजी राव सिंधिया

1947 में देश आजाद हुआ उसके बाद जीवाजी राव सिंधिया ने ग्वालियर को भारत गणराज्य में शामिल कर लिया।
इसके साथ ही कई वर्षो से फैले सिंधिया के सिक्कों का अन्त हुआ।

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