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Showing posts from April, 2023

दक्षिण अफ्रीका 17 वीं सदी की दास व्यापार

डच व्यापारी 17 वीं सदी में दक्षिण अफ्रीका पहुंचे, जल्द ही दास व्यापार शुरू हो गया। लोगों को बंधक बनाकर जंजीरों से बांधकर दास बाजारों में बेचा जाने लगा।  1834 में दास प्रथा के अंत के समय अफ्रीका के दक्षिणी सिरे पर स्थित केप में निजी स्वामित्व में दासों की संख्या 36,774 से थी।  1824 में " केप " आने वाले एक यात्री ने वहां होने वाली नीलामी का आंखों देखा हाल बताया - " यह मालूम होने पर की पशुओं, कृषि उत्पादों की नीलामी होने वाली है। हमनें अपनी गाड़ी नए बैल खरीदने के लिए रोक ली। नीलामी के माल में एक स्त्री - दास और उसके तीन बच्चे भी थे। किसानों ने पशुओं के समान ही उन्हें परखा और उन्हे अलग - अलग खरीददारों को बेच दिया गया। मां ने चिंता वेदना और आंसू भरी आंखों से बच्चों की तरफ देखा और दुखी बच्चे मां से लिपट गए। लेकिन वहां मौजूद दर्शकों के चेहरे हस्ते हुए और असंवेदनशील थे। " 

जलियांवाला बाग हत्याकाण्ड से जुड़ी कुछ बातें !

1) जलियांवाला बाग हत्याकाण्ड 13 अप्रैल, 1919 के दिन हुआ था। इस समय भगत सिंह 11 साल,7 महीने और 16 दिन के थे।  2) पंजाब के गेट्टिसबर्ग के अभिलेख से पता चलता है कि - पंजाब के अमृतसर में जलियांवाला बाग में लगभग दो हजार हिंदू, सिख और मुसलमान मौजूद थे। जनरल डायर के कहने पर इन सभी को गोलियों से भून दिया गया था।  3) जलियांवाला बाग हत्याकाण्ड के समय कुल 1650 गोलियां चलायी गई थी , जिसमें से एक भी गोली खाली नहीं गई। गोलियां लगभग 10 मिनट तक चली। (4) इस हत्याकांड में 10,000 से भी ज्यादा लोगों की हत्या हुयी थी, लेकिन अंग्रेजों ने केवल 1650 गोलियां चलाने की बात मानी थी।

प्लासी का युद्ध

(१) सिराजुदौला ने भी बंगाल के पिछले नवाबों की तरह ही अपनी शर्ते कंपनी के लिए कायम रखी। लेकिन कंपनी भी अपनी बात पर अड़ी रही। तब सिराजुदौला ने अपने 30,000 हजार सैनिकों के साथ कासिम बाजार में स्थित अंग्रेजों की फैक्ट्री पर हमला कर दिया। (२) नवाब की फौज ने कंपनी के अफसरों को गिरफ्तार कर लिया और गोदाम पर ताला डाल दिया। अंग्रेजों के हथियार छीन लिए और उनके जहाजों को कब्जे में ले लिया। (३) इसके बाद नवाब ने अंग्रेजों के कलकत्ता स्थित किले पर कब्जा कर लिया। 1757 में  रॉबर्ट क्लाइव और सिराजुदौला के बीच प्लासी का युद्ध हुआ।  (४) सिराजुदौला के सेनापति मीर जाफर ने नवाब की गद्दी के लालच में गद्दारी की, जिसकी वजह से ये युद्ध अंग्रेजों ने जीत लिया।  आगे चलकर मीर जाफर ने कम्पनी का विरोध किया ,तब मीर काशिम को नवाब बना दिया।

काला पानी की सजा किस किस को मिली ? ✔️

सबसे पहले जो राजनैतिक कैदी 1909 में भारत से अंडमान जेल गए थे - (1) श्री हेमंत दास  (जीवन पर्यन्त) (2) श्री वीरेन्द्र घोष  (फांसी का दण्ड माफ करके जीवन पर्यन्त द्वीपांतरण) (3) श्री उल्लासकर दत्त  (फांसी का दण्ड माफ करके जीवन पर्यन्त द्वीपांतरण) (4) श्री हृषीकेश कांजीलाल  (10 वर्ष द्वीपांतरण) (5) श्री इंद्रभूषण राय (10 वर्ष द्वीपांतरण) (6) श्री विभूतिभूषण सरकार  (10 वर्ष द्वीपांतरण) (7) श्री अविनाश चंद्र भट्टाचार्य (7 वर्ष द्वीपांतरण) 6 सप्ताह बाद दुसरा दल जो की बीमार था भेजा गया , उसमें - (1) श्री उपेंद्र नाथ बैनर्जी  (जीवन पर्यन्त द्वीपांतरण) (2) श्री सुधीर कुमार सरकार   (7 वर्ष द्वीपांतरण) अपील करने के कारण अभियुक्तों का पुनर्विचार हुआ और वीरेंद्रचंद्र सेन को 7 वर्ष द्वीपांतरण हुआ और वे अकेले जेल गए थे। (1) श्री गणेश दामोदर सावरकर भी (जीवन पर्यन्त द्वीपांतरण) (2) श्री अश्विनी कुमार बोस (7 वर्ष द्वीपांतरण) (3) श्री ब्रिजेश कुमार दत्त   (3 वर्ष द्वीपांतरण) (4) श्री सतीश चन्द्र चटर्जी (3 वर्ष द्वीपांतरण) (5) श्री नंदगोपाल...

प्लासी का नाम प्लासी कैसे पड़ा ?

प्लासी का असली नाम " पलाशी" था जिसे अंग्रेजों ने बिगाड़ कर प्लासी कर दिया। इस जगह को पलाशी यहां पाए जाने वाले पलाश के फूलों के कारण कहा जाता था।  पलाश के लाल फूलों से गुलाल बनाया जाता है जिसका इस्तेमाल होली में किया जाता है। प्लासी का युद्ध अंग्रजों की पहली बड़ी जीत थी। इसके बाद सिराजुदौला की हत्या कर दी गई और मीर जाफर को नवाब बना दिया गया।

रामायण काल का आग्नेयास्त्र !

 आग्नेयास्त्र - रामायणकालीन परिभाषा तोपों को "शतघ्नी " यानी सैकड़ों व्यक्तियों का नाश करने वाली कहते थे, इसका उल्लेख अनेक श्लोकों में आया था। " शतघ्नी "  लोहे की होती थी। सुन्दरकाण्ड में "शतघ्नी " का आकार वृक्ष के तने जैसा बताया गया है। 

काला पानी जेल कैसी थी ?

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ब्लॉक नंबर      प्र. ल. को.की.सं.            कुल जोड़ ------------------------------------------------------------- 1                             35                      105 2                             35                      105 3                             52                      156 4      ...

नालन्दा से जुड़ी कुछ बातें !

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1) चीनी यात्री ,जो काफी लंबे समय तक भारत में रहा था। उसके लेखों से पता चलता है कि जिसके अनुसार नालंदा में 8 बड़े - बड़े शालागृह (halls) थे। वहां 3000 से भी अधिक लोग रहते थे।    1) नालंदा लगभग ढाई हजार साल से भी पहले का माना जाता है। जैन धर्म के 24 वें तीर्थंकर महावीर स्वामी और गौतम बुद्ध के समय में यह नाम काफी प्रचलित था। 2) संस्कृत में नाल भिस अर्थात कमल की जड़ को कहते है। 3) एक चीनी हुअन तंग ने न + अखं + द (= लगातार दान) की उत्पत्ति दी है। 4) एक चीनी यात्री ने लिखा था कि इस स्थान को 500 सौदागरों ने दशकोटी सुवर्ण मुद्रा से मोल लेकर भगवान बुद्ध को भेंट कर दिया था। 5) यहां के राजा ने नालंदा को 100 गांव दिये थे। 6) यहां के 200 निवासी ,विद्यार्थियों के लिए प्रतिदिन नियम से चावल, दूध और माखन लाया करते थे।

डचों का भारत में आगमन

(१) 17 वीं शताब्दी के शूरुआत तक डच भी भारत में व्यापार के उद्देश्य से आए। कुछ ही समय बाद फ्रांसिसी व्यापारी भी भारत आए। सभी कंपनियां एक जैसी चीजें ही खरीदना चाहती थी।  (२) यूरोप के बाजारों में भारत के बने बारीक सूती वस्त्र, रेशम ,कालीमिर्च, दालचीनी, लौंग और इलायची की बहुत मांग थी। यूरोपियन कंपनियों के बीच इस बढ़ती प्रतिस्पर्धा से भारतीय बाजार में इनकी कीमतें बढ़ने लगी और इससे मिलने वाला मुनाफा घटने लगा।  (३) अब इन व्यापारिक कंपनियों को अपना मुनाफा बनाए रखने के लिए,17 वीं और 18 वीं सदी में जब भी मौका मिलता कोई भी कंपनी किसी दूसरे के जहाजों को डूबा देते थे या रूकावटे डाल देते थे।  (४) 18 वीं सदी के उत्तरार्ध तक अंग्रेज राजनैतिक ताकत के रूप में उभरने लगे।  (५) अंग्रेज पहले छोटी सी व्यापारिक कंपनी के रूप में भारत आए । (६) औरंगजेब के बाद कोई भी मुगल शासक इतना ताकतवर तो नहीं था, लेकिन एक प्रतिक के रूप में मुगल बादशाहों का महत्व बना हुआ था। (७) 1857 में ब्रिटिश शासन के विरुद्ध विद्रोह शुरु हो गया तो विद्रोहियों ने बहादुर शाह ज़फ़र को ही अपना नेता मान लिया।  (८) जब विद्...

बक्सर का युद्ध किसके बीच हुआ

 1764 में बक्सर का युद्ध मीर काशिम और अंग्रेजों के बीच हुआ, जो अंग्रेजों ने जीता।  इसके बाद मीर काशिम को हटाकर मीर जाफर (मृत्यु 1765) को नवाब बना दिया। लेकिन अब नवाब को 5 लाख रुपए कम्पनी को देने होते थे।

बंगाल में ईस्ट इंडिया कंपनी

(१) पहली इंग्लिश फैक्ट्री 1651 में हुगली नदी के किनारे शुरू हुई। कम्पनी के व्यापारी यही से अपना काम चलाते थे। इन व्यापारियों को उस जमाने में "फैक्टर" कहा जाता था। (२) इस फैक्ट्री में वेयरहाउस था जहां निर्यात होने वाली चीजें को जमा किया जाता था। यहीं पर उनके दफ्तर थे। जिनमें कम्पनी के अफसर बैठते थे।  (३) जैसे - जैसे व्यापार फैला कम्पनी ने सौदागरों और व्यापारियों को फैक्ट्री के आस पास आकर बसने के लिए प्रेरित किया।  (४) 1696 तक कम्पनी ने इस आबादी के चारों तरफ एक किला बनाना शुरू कर दिया था। दो साल बाद उसने मुगल अफसरों को रिश्वत देकर तीन गांवों की जमींदारी भी खरीद ली। इनमें से एक गांव कालिकाता था जो बाद में कलकत्ता बना।  (५) कम्पनी ने मुगल सम्राट औरंगजेब को इस बात के लिए भी तैयार कर लिया कि वह कम्पनी को बिना शुल्क चुकाए व्यापार करने का फरमान जारी कर दे। (६) कम्पनी ज्यादा से ज्यादा रियायतें हासिल करने और पहले से मौजूद अधिकारों का ज्यादा से ज्यादा फायदा उठाने में लगी हुई थी। (७) उदाहरण के तौर पर औरंगजेब के फरमान से केवल कम्पनी को ही शुल्क मुक्त व्यापार का अधिकार मिला था। कम्पनी ...

फ्रांसीसियों का भारत में आगमन

1667 में सूरत में अपनी पहली फैक्ट्री स्थापित करने के लिए 2 वर्ष के अंदर ही फ्रांसीसियों ने " मसुलीपट्टनम " में भी फैक्ट्री स्थापित की। 1674 में फ्रांसीसी " मार्टिन " ने बीजापुर के सुल्तान से पांडिचेरी प्राप्त किया जो आगे चलकर भारत में उनकी राजधानी बनी।   डूप्ले   के फ्रांसीसी गवर्नर बनने से पहले फ्रांसीसी कंपनी ने माहे , कारिकल, कसीमबाजार और बालासोर  में अपनी फैक्ट्री स्थापित कर ली थी। 

कूका विद्रोह किस लिए हुआ ?

अंग्रेज़ों द्वारा गायों की बूचड़खाने में हत्या करने के विरोध में सन् 1871 - 72 में पंजाब में कूका विद्रोह हुआ था।

रामायण से जुड़े कुछ स्थान !

(1) लखनऊ   लखनऊ लक्ष्मनवती या लक्ष्मणपुर का अपभ्रंश है और इसके बारे में प्रसिद्ध है कि इसे लक्ष्मण जी ने बसाया था। 2) सुल्तानपुर इस प्राचीन नगर को राम जी के पुत्र कुश ने बसाया था। उसे कुसपुर या कुशभवन भी कहते थे। 3) नंदीग्राम जहां भरत जी 14 वर्ष तक तापस वेष में रहे थे। 4) सीतापुर   इसी स्थान पर रामचंद्र जी ने अश्वमेध यज्ञ किया था। उनके पुत्र लव और कुश ने यही पर महर्षि वाल्मीकि द्वारा रचित रामायण की कथा सुनाई थी। यहां से कुछ दूर पर वह स्थान बताया जाता है जहां सीता जी पृथ्वी में प्रवेश कर गई थी।

ताजमहल से जुड़े कुछ सत्य तथ्य

1) पुरुषोत्तम नागेश ओक के अनुसार ताजमहल के नाम का उल्लेख औरंगजेब के किसी भी दस्तावेज या दरबारी दस्तावेजों में कहीं भी नहीं मिलता है। 2) ताजमहल में महल इस्लामी शब्द नहीं है क्योंकि अफगानिस्तान से लेकर अलजीरिया तक फैले विस्तृत इस्लामी प्रदेशों में महल नाम की एक भी इमारत नहीं है। 3) शाहजहां का दरबारी वृत्त शाहजहांनामा के खंड 1 के पेज 403 पर लिखा है कि अतुलनीय वैभवशाली गुंबदयुक्त एक  प्रासाद की इमारत - ए - आलीशान था। गुंबजे मुमताज को दफनाने के लिए जयपुर के महाराजा मानसिंह से लिया गया (राजा मानसिंह को प्रासाद के नाम से जाना जाता था।)। 4) अपने पिता शाहजहां को लिखा औरंगजेब का एक पत्र आदाबे आलमगीरी, यादगारनामा और मुरक्का - ई अकबराबादी (सईद अहमद आगरा संपादित, सन् 1931, पृष्ठ 43, फुटनोट 2) में है। (5) सन् 1652 के उस पत्र में औरंगजेब ने खुद लिखा है कि मुमताज की कब्र परिसर की इमारतें सात मंजिलों वाली थी और वे इतनी पुरानी हो गई थी कि उनमें से पानी टपकता था और गुंबद के दरार पड़ी थी।  (6) औरंगजेब ने खुद अपने खर्चे से उन भवनों को तत्काल मरम्मत करने की आज्ञा देकर शाहजहां को सूचित किया कि इन ...

घुश्मेश्वर ज्योर्तिलिंग की कुछ खास बातें !

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1) शिव पुराण कोटि रुद्र संहिता के अध्याय 32 से 33 के अनुसार घुश्मेश्वर ज्योर्तिलिंग शिवालय नामक स्थान पर होनी चाहिए। प्राचीनकाल में इस जगह का नाम शिवालय था जो अपभ्रंश होता हुआ, शिवाल फिर शिवाड़ हो गया। 2) शिवपुराण कोटि रुद्र संहिता अध्याय 33 के अनुसार घुश्मेश्वर ज्योर्तिलिंग के दक्षिण में देवत्व गुणों वाला देवगिरि पर्वत है। शिवालय (शिवाड़) स्थित ज्योर्तिलिंग मंदिर के दक्षिण में भी तीन श्रृंगों वाला धवल पाषणों का प्राचीन पर्वत है जिसे देवगिरि नाम से जाना जाता हैं।  यह महाशिवरात्रि पर एक पल के लिए सुवर्णमय हो जाता हैं , जिसकी पुष्टि बणजारे की कथा में होती है।  जिसने देवगिरि से मिले स्वर्ण प्रसाद से ज्योर्तिलिंग की प्राचिरें और ऋणमुक्तेश्वर मंदिर का निर्माण प्राचीन काल में करवाया। 3) शिवपुराण कोटि रुद्र संहिता अध्याय 33 के अनुसार घुश्मेश्वर ज्योर्तिलिंग के अनुसार सन् 1837 ई. (वि . स. 1895) में ग्राम शिवाड़ स्थित सरोवर की खुदाई करवाने पर 2000 शिवलिंग मिले जो इसके शिवलिंगों का आलय होने की पुष्टि करते हैं। मंदिर के परंपरागत पाराशर ब्राह्मण पुजारियों का गोत्र शिवाड़ियां है। 4) प...

इतिहास के कुछ गलत बदलाव

रघुनंदन प्रसाद शर्मा की पुस्तक " भारतीय इतिहास की विकृतियां " में दिए कुछ तथ्यों के अनुसार -  अक्षर परिवर्तन  ❇️विष्णु पुराण में मौर्य वंश का कार्यकाल 337 वर्ष दिया गया था। किंतु सबंधित श्लोक "त्र्यब्दशतंसप्तत्रिंशदुत्तरम् " में " त्र्य " को बदल कर "अ " अक्षर करके " त्र्यब्द" को "अब्द " बनाकर 300 के जगह 100 करके वह काल 137 वर्ष का करवा दिया गया। (पं. कोटावेंकटचलम , दि प्लाट इन इंडियन क्रोनोलॉजी, पृष्ठ 76)। ❇️अभी भी अधिकतर विद्वान 137 वर्ष को ही सही मानते है लेकिन कलिंग नरेश खरबेल के "हाथी गुफा" अभिलेख में मौर्य वंश के संदर्भ में " 165 वें वर्ष " का स्पष्ट उल्लेख होने से मौर्य वंश के राज्यकाल 137 वर्षों में समेटा नहीं जा सकता है।  विशेषकर उस स्थिति में जबकि "हाथी गुफा"अभिलेख ऐतिहासिक दृष्टि से प्रमाणित माना जा चुका है। ❇️मत्स्य पुराण , एइहोल अभिलेख आदि में भी ऐसा ही किया गया है।  2) शब्द परिवर्तन पंचसिद्धातिका - प्रसिद्ध खगोलशास्त्री वराह मिहिर की पुस्तक में एक पद - सप्ताश्विवेद संख्यं शककालमपास्य...

घुश्मेश्वर ज्योर्तिलिंग की कहानी क्या है ?

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दक्षिण दिशा में श्वेत धवल पाषाण का देवगिरि पर्वत है उसके पास सुधर्मा नामक धर्मपरायण भारद्वाज गौत्रीय ब्राह्मण रहते थे उनके सुदेहा नामक पत्नी थी।  जिनकी कोई सन्तान नहीं थी ,लोगो के ताने से परेशान होकर सुदेहा ने अपनी छोटी बहन घुश्मा का विवाह अपने पति के साथ करा दिया। घुश्मा , भगवान शिव की अनन्य भक्त थीं। वह हर दिन 100 पार्थिव शिवलिंग बनाकर पूजा किया करती और फिर उनका विसर्जन पास के ही नदी में कर देती थी। विवाह के बाद घुश्मा ने एक पुत्र को जन्म दिया और युवा होने पर उसका विवाह भी हो गया। धीरे - धीरे घुश्मा की बड़ी बहन के अंदर ईर्ष्या की भावना आ गई और उसने घुश्मा के पुत्र की हत्या करके , उसके शरीर को नदी में फेंक दिया। अगले दिन सुबह जब घुश्मा की बहु ने अपने पति को मृत पाया और रोने लगी , फिर अपनी दोनों सासों को यह सूचना दी। सुदेहा यह सुनकर ज़ोर - ज़ोर से रोने लगी जबकी , घुश्मा प्रतिदिन की तरह शिव जी की पूजा लीन थी और पूरे मन से आराधना कर रही थी।  जैसे ही घुश्मा ने पार्थिव शिवलिंग को नदी में विसर्जित किया , उसे पीछे से माँ की आवाज़ आई ,और शिव जी की कृपा से उनका पुत्र जीवित हो गया था। ...

भारत की आबादी 1947 में कितनी थी ?

 भारत की आबादी 1947 में लगभग 34.5 करोड़ थी।