Posts

Showing posts from September, 2021

महाभारत के रचयिता कौन थे ?

महाभारत को श्री वेदव्यास जी ने लिखा था। वेदों का वर्गीकरण करने के कारण उनको ये नाम मिला था। उनका जन्म का नाम "कृष्णद्वैपायन " था।  वेदव्यास जी महाराजा शांतनु की दुसरी पत्नि सत्यवती और पराशर ऋषि (पराशर ऋषि सत्यवती के पहले पति थे) के संतान थे। 

पांडवों के पुत्रों की मृत्यु कैसे हुई ?

अर्जुन और सुभद्रा के पुत्र अभिमन्यु की मृत्यु महाभारत युद्ध में चक्रव्युह भेदने के समय में हो गई थी। द्रौपदी के पांचों पुत्रों ( प्रतिविन्ध्य,सुतसोम ,श्रुतरकीर्ति, शतानिक, श्रुतकर्मा  ) को  महाभारत का युद्ध जीतने के बाद, शिविर में विश्राम करते समय अश्वथामा ने क्रोधवश सोते समय सभी की हत्या कर दी थी। भीमसेन और हिडिंबा के पुत्र घटोत्कच की मृत्यु महाभारत के युद्ध के दौरान कर्ण के  हाथों हुई थी। अर्जुन और उलूपी के पुत्र इडावन‌् को महाभारत युद्ध के दौरान  अलंबुष  ने मार डाला,अलंबुष ने इडावन का सर धड़ से अलग कर दिया था।

लाक्षागृह प्रकरण के बाद पांडव कब तक छिपे रहे

 लाक्षागृह से बचकर निकलने के बाद कुन्ती और पांचों पांडव एक ब्राह्मण परिवार के साथ रहे। फिर  द्रौपदी के स्वयंवर के बाद, पांचों पांडवों का विवाह द्रौपदी से हुआ और ये समाचार सुनकर धृतराष्ट्र ने विदुर जी को उन्हे वापस हस्तिनापुर लाने के लिए भेजा। द्रोपदी को साथ लेकर सभी हस्तिनापुर लौट आए।

7 दिसंबर को क्या खास है ?

1) हैदर अली की मृत्यु   (7 दिसंबर,1782) हैदर अली की मृत्यु 7 दिसम्बर, 1782 में हुई थी। आरनी की विजय के बाद उसकी कमर में एक फोड़ा निकल आया, जिसके कारण उन्हें अरकाट लौट आना पड़ा। यहां आकर उन्हें पता चला कि इस फोड़े का कोई उपचार नहीं है। बाद में इसी कारण से हैदर अली की मृत्यु हो गई। इनके शव को मैसूर की राजधानी श्रीरंगपट्टम के लाल बाग में दफन किया गया। 2) आर्म्ड फोर्सेस फ्लैग डे (7 दिसंबर ) भारत की आजादी के बाद 1949 में यह फैसला लिया गया था कि भारत की आर्म्ड फोर्सेस को यदि कोई नुकसान हो जाता है तो ऐसी परिस्थिति के लिए एक फंड होना चाहिए। जिसमें आम जनता भी अपनी मर्जी से जितना चाहे धनराशि का योगदान दें सकती है। इस धनराशि का उपयोग युद्ध में मारे गए या घायल हुए सैनिकों के परिवार की मदद के लिए,सैनिक कल्याण बोर्ड के माध्यम से खर्च की जाती है।  3) जतिंद्रनाथ मुखर्जी उर्फ बाघा जतिन का जन्म (7 दिसम्बर,1879) जतिंद्रनाथ मुखर्जी का जन्म उस समय के अविभाजित बंगाल के नादिया जिले के कुष्टिया नामक स्थान पर हुआ था।  इनकी मृत्यु 10 सितंबर, 1915 में हुई थी।

कुछ पुरुष क्रांतिकारियों के नाम भाग - 2

36) अल्लुरी सीताराम राजू 37) शचिंद्रनाथ सान्याल 38) मौलाना महमूद हसन 40) मन्मठनाथ गुप्त 41) मथुरा सिंह 42) बलवंत सिंह 43) लाला हरदयाल 44) ऊधम सिंह 45) करतार सिंह सराभा 46) मदन लाल ढींगरा 47) अम्बा प्रसाद 48) राजगुरू  50) राम प्रसाद " बिस्मिल 51) वीर सावरकर 52) राजा महेंद्र प्रताप 53) शंभूनाथ आजाद 54) नंदगोपाल 55) परमानंद 56) शचींद्रनाथ बक्शी 57) लाला हनुमत सहाय 58) विष्णु गणेश पिंगले 59) मुकुंदीलाल " भारतवीर" 60) मेवासिंह  61) बतासिंह धामियां  62) सोहन लाल पाठक 63) भूपेंद्रनाथ दत्त 64) असफाकउल्ला खान 65) वासुदेव चापेकर 66) दामोदर चापेकर 67) विनायक आप्टे 68) महादेव विनायक रानाडे 69) खंडेराव साठे 70) बालकृष्ण चापेकर 71) गंगाधर तिलक 72) लाला लाजपत राय

कुछ प्रसिद्ध महिला क्रान्तिकारियों के नाम भाग - 1

  1) कनकलता भरुआ 2) भीकाजी कामा 3) तारारानी श्रीवास्तव 4) मूलमति 5) लक्ष्मी सहगल 6) कमलादेवी चटोपाध्याय 7) कित्तूर रानी चेन्नम्मा 8) सुचेता कृपलानी 9) कस्तूरबा गांधी 10) प्रीतीलता वादेदार  11) विजयलक्ष्मी पंडित  12) स्वरूप रानी नेहरू 13) अरुणा आसफ अली 14) भीमाबाई होलकर 15) झलकारी बाई 16) पार्वती देवी 17) बिना दास 18) उदा देवी 19) दुर्गावती वोहरा 20) सरोजिनी नायडू 21) मतांगिनी हजारा 22) बेगम हजरत महल 23) लक्ष्मी बाई 24) अरुणा आसफ अली 25) रानी ईश्वर कुमारी 26) उर्मिला देवी शास्त्री  27) मीरा दत्त 28)कमलादास गुप्ता 29) अजीजन बाई  30) शांति घोष  31) सुनीति चौहान 32) रेनू सेन 33) रानी गिडालू ( गाइडिन्ल्यू ) 34) क्षिरोदा सुंदरी चौधरी 35) दुकड़ी बाला  36) रानी अवंती बाई 37) प्रकाशवती पाल 38) इंदुमती सिंह 39) सुशीला मित्र 40) लाडो रानी जुल्सी 41) कुमारी मैना 42) सत्यवती

कुछ प्रसिद्ध महिला क्रान्तिकारियों के नाम भाग - 2

43) बैजबाई 44) प्रतिभा भद्र 45) ननीबाला देवी 46) विमल प्रतिभा देवी 47) जमुना बाई 48) हेलेना दत्त 49) दुर्गाबाई देशमुख 50) मणि बेन बल्लभ बाई पटेल  51) वनलता दास गुप्ता 52) वनलता सेन चक्रवर्ती 53) सुशीला मोहन 54) सावित्री देवी  55) सरस्वती बाई लोधी 56) चारू  57) चौहान रानी 58) हरिशरण कौर 59) सरोजदास नाग 60) चारू शीला 61) माया घोष 62)बेला मित्रा 63)शोभा रानी दत्त 64)जिंदा कौर 65) नेली सेन गुटा  66) लीला नाग  67) सहोदताबाई राय 68) सुहासिनी गांगुली 68) मातंगिनी हजारा 69) मार्ग्रेड कॉन्जेस 70) सरला देवी चौधरानी  71) अमानबाई (अमनबी)  80) महारानी तपस्विनी  81) देवी चौधरानी 82)शन्नो देवी  83)कल्पना दत्त  84)कल्याणी दास  85)उज्जवला मजूमदार 86) शास्त्री देवी

कुछ पुरुष क्रांतिकारियों के नाम भाग - 1

1) अवध बिहारी  2) बसंत कुमार विश्वास  3)खुशीराम  4) मास्टर अमीरचंद्र  5) वासुदेव बलवंत फडके  6) अनंत लक्ष्मण कनहेर  7) कृष्णजी गोपाल करवे  8) गणेश दामोदर सावरकर 9)बाग जातिन 10) कुशल कोनवार 11) सूर्य सेन (मास्टर दा) 12) अनंत सिंह 13)श्री अरबिंदो घोष 14) रश बेहारी बोस 15) उबायदुल्ला सिंधी 16) जोगेश चंद्र चटर्जी 17) बायकुन्था शुक्ला 18) अंबिका चक्रवर्ती 19) बादल गुप्ता 20) दिनेश गुप्ता 21) बेनॉय बसु 22) बरींद्र कुमार घोष 23) उल्लास दत्ता  24) हेमचंद्र कनुनगो 25) बसवाना सिंह (सिन्हा) 26) भावभूषण मित्र 27) वीर भाई कोटवाल 28) ओम प्रकाश विज 29) भगत सिंह 30) चंद्रशेखर तिवारी " आजाद" 31) खुदीराम बोस 32) प्रफुल्ल चाकी 33) रोशन सिंह 34) अजीत सिंह 35) सुखदेव थापर

विदेशी भूमि पर भारतीयों के अखबार और संस्थाएं

1) तारकनाथ दास  " फ्री हिन्दुस्तान " नामक अखबार निकालते थे, और " समिति" नामक संस्था के प्रधान भी थे। इस संस्था से सारंगधर दास,जी. डी. कुमार,शैलेंद्र बोस ,लस्कर और ग्रीन नामक एक अमेरिकी भी जुड़े थे। 2) रामनाथ पूरी ने 1908 में ओकलैंड में "हिन्दुस्तान एसोसिएशन " नाम की एक संस्था बनायी और "सर्कुलर ऑफ फ्रीडम" नाम से एक अख़बार भी निकाला। 3) जी. डी. कुमार ने बैंकोवर में " स्वदेशी सेवक " नाम से अखबार निकाला। 4) सुंदर सिंह ने " आर्य " नामक अखबार निकाला। 5) रहीम और आत्माराम ने बैंकोवर में "यूनाइटेड इण्डिया लीग " का गठन किया। 6) लाला हरदयाल ने सैन फ्रांसिसको में "हिंदुस्तानी स्टूडेंट्स एसोसिएशन" नाम की एक संस्था गठित की। 7) 1913 में एस्टोरिया की "हिंदुस्तानी एसोसिएशन" की गठन हुआ। करीम बक्श, नवाब खान, बलवंत सिंह , केसरी सिंह और करतार सिंह सराभा इसके सदस्य थे। 8) ठाकुर दास और उनके मित्रो ने सेंटजॉन में रहने वाले भारतीयों के लिए एक संस्था गठित की। 1913 में शिकागो में "हिंदुस्तानी एसोसिएशन ऑफ ...

प्रीतीलता वादेदार भाग - 3

  अंग्रेज़ी क्लब पर हमला और विरगति   चटगांव में "पहाड़तल्ला " के निकट अंग्रजों का एक बदनाम क्लब चलता था, जिसमें भारतीयों की खुलकर निंदा की जाती थी। उस क्लब के बाहर लगे बोर्ड पर लिखा था ," भारतीय और कुत्तों का आना मना है।"  23 दिसंबर, 1932 को मात्र 21 साल की उम्र में प्रीतीलता के नेतृत्व में तीन क्रान्तिकारियों ने क्लब के तीनों फाटकों से अंग्रेजों पर गोलियां चलाना शुरू कर दिया। कुछ देर में दोनों तरफ से गोलियां चलने लगी। प्रीतीलता के अलावा किसी क्रांतिकारी को चोट नहीं लगी।  उस समय क्लब में मौजूद सभी अंग्रेज मारे गए। तभी वहां अंग्रेजी सैनिक गाडियां आ गई। प्रीतीलता के सीने से खून निकल रहा था , इसलिए उन्होंने सभी साथी क्रान्तिकारियों को वहां से भेज दिया और खुद वही रुक गई। जब उन्हें लगा की वे वहां से भागने की हालत में नहीं है तो प्रीतीलता अपने पास रखी जहर की पुड़िया खा कर वीरगति को प्राप्त हो गई।  प्रीतीलता का कहना था ," यदि हमारे भाई मातृभूमि की स्वाधीनता के संघर्ष में शामिल हो सकते है, तो हमारी बहनें क्यों नहीं।"  प्रीतिलता की उस समय की रोकी गई डिग्री 80 स...

प्रीतीलता वादेदार भाग - 2

  आई आर ए में शामिल होना अंग्रेजों ने प्रीतिलता के क्रांतिकारी गतिविधियों में शामिल होने का कारण देकर उनकी डिग्री रोक दी। इसके बाद वे चटगांव लौट आयी और एक बालिका विद्यालय में पढ़ाने लगी।  सन् 1922 के बीच में उनकी मुलाकात सुर्यसेन से हुई, जिन्हें "मास्टर दा" भी कहते थे। "मास्टर दा" से प्रीतिलता ने बन्दूक चलाने का प्रशिक्षण लिया था। वे प्रीतीलता की देशभक्ति की भावना से काफ़ी प्रभावित हुए और उन्हें क्रांतिकारी संगठन में शामिल होने के लिए कहा।  18 अप्रैल 1930 को अंग्रेजों को देश से बाहर निकालने के लिए " इंडियन रिपब्लिकन आर्मी " (आईआरए) का गठन हुआ।  "आईआरए " महिलाओं को अपने ग्रुप में शामिल करने के खिलाफ था। प्रीतिलता के काफी संघर्ष के बाद "आईआरए " में शामिल हो पायी। 

प्रीतीलता वादेदार भाग - 1

Image
  प्रारंभिक जीवन प्रीतिलता वादेदार एक स्वतंत्रता सेनानी थी। इनका जन्म चटगांव में (आज के बंगाल में) 5 मई,1911 को हुआ था। इनके पिता जयबंधु वादेदार राष्ट्रीय विचारों के थे और देशभक्ति उनको विरासत में मिली थी। प्रीतीलता ने " बेथुन कॉलेज" से स्नातक किया। यह कॉलेज कोलकाता में है। 

झलकारी बाई भाग - 7

  वीरगति की प्राप्ति झलकारी बाई की मृत्यु के विषय में कई मत है कुछ के अनुसार युद्ध के दौरान जब अंग्रेज़ों को यह बात पता चला कि उन्हें धोखा देकर लक्ष्मीबाई को सुरक्षित स्थान पर पहुंचा दिया गया है, तब उन्होंने झलकारी बाई को फांसी पर चढ़ा दिया। एक अन्य मत के अनुसार अंग्रेजों को जब झलकारी बाई के द्वारा, रानी लक्ष्मीबाई को बचाने के लिए किये गए कार्य के बारे में पता चला ,तब अंग्रेजों ने झलकारी बाई पर गोली चलायी ,जिसके कारण वह घोड़े से गिर गई और सैंकड़ों गोलियां उनके ऊपर दाग की गई और वे झांसी के लिए शहीद हो गई। 22 जुलाई , 2001 को झलकारी बाई के सम्मान में डाक टिकट जारी किया गया। 

झलकारी बाई भाग - 6

  अंतिम युद्ध अंग्रेजों से इस लड़ाई को जारी रखने के लिए रानी लक्ष्मीबाई का जीवित रहना जरूरी था। इसलिए झलकारी बाई और रानी के सभी सुभाचिंतकों ने उन्हें महल से जीवित बाहर निकलने के लिए योजना बनायी, झलकारी बाई ने रानी लक्ष्मीबाई की तरह हुबहू कपड़े , गहने और पगड़ी पहनी और घोड़े पर बैठकर अंग्रेज़ी सेना के सामने गई। रानी लक्ष्मीबाई की हमशक्ल होने के कारण अंग्रजों ने झलकारी बाई को ही रानी समझ लिया और उन्हें पकड़ने में अपनी पूरी ताकत लगा दी। इसी का फायदा उठाकर रानी वहां से सुरक्षित स्थान पर चली गई।

झलकारी बाई भाग - 5

Image
  ब्रिटिश सेना से युद्ध 1857 के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम में झलकारी बाई की वीरता की मिसाल थी।  गोवर्धनलाल पुरोहित जी की पुस्तक से 1857 का भारत मानचित्र इतिहासकारों के अनुसार 23 मार्च,1858 को "जनरल ह्यूरोज" ने अपनी विशाल सेना के साथ झांसी पर आक्रमण कर दिया। तब रानी लक्ष्मीबाई ने अपने 4000 सैनिकों के साथ वीरता से अंग्रेजो का सामना किया था। रानी लक्ष्मीबाई "काल्पी " में पेशवा की सहायता की प्रतीक्षा कर रही थी। लेकिन उन्हें सहायता नहीं मिली क्योंकि तात्या टोपे "जनरल ह्यूरोज" से पराजित हो चुके थे।  रानी लक्ष्मीबाई के एक विश्वासपात्र दूल्हेराव ने अंग्रेजों से मिलकर उनके लिए किले का द्वारा खोल दिया। जिससे ब्रिटिश सेना महल में घुस गई और रानी के बहुत सारे सैनिक मारे गए।  रानी लक्ष्मीबाई के एक विश्वासपात्र दूल्हेराव ने अंग्रेजों के लिए किले का द्वारा खोल दिया। जिससे ब्रिटिश सेना महल में घुस गई और रानी के बहुत सारे सैनिक मारे गए। 

झलकारी बाई भाग - 3

 झलकारी बाई का साहस जब झलकारी बाई छोटी थी , तब वो जंगल में अपने पशुओं को चराने गई थी, तभी एक बाघ ने उनके ऊपर हमला किया। झलकारी बाई ने उस बाघ पर लाठी से जोर से वार किया और फिर वह तब तक उस बाघ को लाठी से पिटती रही, जब तब उसकी मृत्यु नहीं हो गई।  1857 के संग्राम के समय झलकारी बाई की वीरता को देखकर अंग्रेज जनरल ने कहा था कि " यदि भारत की 1 प्रतिशत महिलाएं भी झलकारी बाई की तरह हो जाये, तो अंग्रेज़ों को भारत छोड़ना ही पड़ेगा।" 

झलकारी बाई भाग - 4

  कोरी सेना बुंदेलखंड में कोरी - कोली, खेती - कपड़ा बुनने के साथ ही कुश्ती, मल्लयुद्ध और तीरंदाजी में माहिर थे।  उन्नाव दरवाजे पर कोरियों की तोप लगी हुई थी। यहां कोरी सैनिक तैनात रहते थे और यहां पूरण कोरी गोलंदाज (झलकारी बाई के पति) तैनात रहते थे। यहीं पर अंग्रेजों द्वारा चलाए गए एक गोले से झलकारी बाई के पति वीरगति को प्राप्त हो गए।

झलकारी बाई भाग - 2

  लक्ष्मीबाई से पहली मुलाकात रानी लक्ष्मीबाई से झलकारी बाई की पहली मुलाकात महल में गौरी पूजा के दौरान हुई थी।  लक्ष्मीबाई को जब इनकी वीरता के बारे में जानकारी मिली तब उन्होंने , झलकारी बाई को अपनी "दुर्गा दल" में शामिल कर लिया। झलकारी बाई रानी लक्ष्मीबाई की अंगरक्षक भी थी। जल्द ही उनकी काबिलियत देखकर लक्ष्मीबाई ने उन्हें "दुर्गा दल" की कमांडर बना दिया।

झलकारी बाई भाग - 1

Image
  प्रारम्भिक जीवन झलकारी बाई का जन्म बुंदेलखंड के "भोजला गाँव" में 22 नवम्बर,1830 में हुआ था। उनके पिता का नाम सदोवा और माता का नाम जमुनाबाई था।  बहुत ही कम आयु में झलकारी बाई की माता का देहांत हो गया। इनके पिता ने इन्हें लड़कों की तरह पाला।  इनके पिता ने इन्हे तीरंदाजी , घुड़सवारी, भला चलना और तलवार बाजी भी सिखायी।  विवाह इनका विवाह झांसी के दरबार के गोलंदाज और एक विख्यात योद्धा " पूरण कोरी " के साथ हुआ किया था। झलकारी बाई अपने पति के पैतृक - पेशा कपड़ा बुनने के कार्य को करती थी। 

सरोजिनी नायडू भाग - 4

1) 1914 में सरोजिनी नायडू को " रॉयल एशियाटिक सोसायटी ऑफ लिट्रेचर की उपाधि "प्रदान की गई।   2) सरोजिनी नायडू को उनकी रचनाओं के लिए " भारत कोकिला " की उपाधि दी गई थी। 3) उनके जन्मदिन की भारत में राष्ट्रीय महिला दिवस के रुप में मनाया जाता है। 4) वह 1925 को भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के कानपुर अधिवेशन की अध्यक्ष चुनी गई। 5) उन्हें आजादी के बाद उत्तर प्रदेश की पहली महिला राज्यपाल नियुक्त किया गया। 6) उनकी मृत्यु 2 मार्च, 1949 को दिल का दौरा पड़ने से लखनऊ में हुई।  7) 12 - 13 वर्ष की उम्र में ही उन्होंने 1300 पंक्तियों की "द लेडी ऑफ द लेख" नाम की कविता लिखी। सरोजिनी नायडू को इस प्रतिभा से खुश होकर उन्हें हैदराबाद के निजाम ने सालाना 4200 रुपए का वजीफा दिया। 

सरोजिनी नायडू भाग - 3

Image
  काव्य गोल्डेन थ्रेडसोल्ड (1905) , बर्ड ऑफ टाइम (1912) और ब्रोकेन विंग (1917) अंग्रेजी में लिखी कविताएं हैं। अंग्रेजी पुस्तकें  1) वर्ल्ड ऑफ फ्रीडम आइडिया ऑफ इंडिया ए नेश

सरोजिनी नायडू भाग - 2

Image
  शिक्षा और विवाह सरोजिनी नायडू ने 12 वर्ष से भी कम आयु में मद्रास यूनीवर्सिटी से मैंट्रीक्यूलेसिलेशन पास कर ली। फिर इनके पिता ने इन्हें 1895 में उच्च शिक्षा के लिए विलायत भेजा।  सरोजिनी नायडू इंग्लैंड में तीन वर्ष रही। लंदन के क्वींस कॉलेज में फिर गिर्टन में पढ़ाई की। इस दौरान उनका स्वास्थ कुछ बिगड़ गया जिसके कारण वे ईटली चली गई और वहां से सितम्बर ,1898 में हैदराबाद चली आई। दिसंबर 1898 में उनका विवाह डॉ. एम. जी. नायडू से हो गया। 

सरोजिनी नायडू भाग - 1

Image
  प्रारम्भिक जीवन सरोजिनी देवी का जन्म सन् 1879 ई. की 13 फरवरी को दक्षिण हैदराबाद में हुआ था।  इनके पिता का नाम डॉक्टर अघोरनाथ चट्टोपाध्याय था जो एक प्रसिद्ध ब्राह्मण कुल के थे। वे एक उच्च कोटि के वैज्ञानिक और पण्डित थे।  इनकी माता का नाम वरदा सुन्दरी चट्टोपाध्याय था जो बंगाली भाषा में कविता लिखती थी। 1877 ई. में सरोजिनी के पिता ने एडिनबरा युनिवर्सिटी से डॉक्टर ऑफ साइंस की उपाधि प्राप्त की और स्वदेश लौट कर दक्षिण हैदराबाद में "निज़ाम कॉलेज " की स्थापना की और जीवन भर शिक्षा के कार्य में ही लगे रहें।

दुर्गा देवी वोहरा भाग - 4

गिरफ्तारी और मृत्यु  12 सितंबर, 1931 को दुर्गा देवी वोहरा को लाहौर से गिरफ्तार कर लिया गया।  भगत सिंह राजगुरू और सुखदेव की फांसी और आजाद की शहादत के बाद पार्टी काफ़ी बिखर गई। इसके बाद दुर्गा देवी अपने बेटे को लेकर दिल्ली आ गई। पुलिस ने उन्हें वहां भी परेशान किया और वे लाहौर आ गई, जहां पुलिस ने इन्हें गिरफ्तार कर लिया और इन्हें तीन साल तक के लिए नजरबंद कर दिया गया।  भगत सिंह और बटुकेश्वर दत्त के असेंबली में बम फेंकने जाने से पहले, उनको दुर्गा देवी और सुशीला मोहन ने अपने रक्त से टीका लगाकर भेजा था और असेंबली के बाहर दुर्गा देवी अपने बेटे (शचिंद्र) को गोद में लेकर खड़ी रही। फिर उन्हे बंबई गोली कांड में तीन साल की सजा हुई और उन्हें फरार होना पड़ा। उनकी क्रांतिकारी गतिविधियों की वजह से उन्हें " जिलाबदर " कर दिया गया। 1935 में दुर्गा देवी गाजियाबाद चली आई और प्यारेलाल कन्या विद्यालय में अध्यापिका की हैसियत से काम करने लगी।  1937 में दिल्ली " प्रदेश कांग्रेस कमेटी " की अध्यक्ष बनी लेकिन स्वास्थ के कारणों से उन्होंने 1937 में ही कांग्रेस त्याग दिया। सरकार ने उनके दिल्ली के ...