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Showing posts from May, 2025

सूर्य देव और उनकी पत्नी संज्ञा

💚 विश्वकर्मा जी की पुत्री संज्ञा सूर्य देव की पत्नी थी। उनके मनु, यम और यमी - तीन संताने हुई। 💚 आगे चलकर पति का तेज सहन न कर सकने के कारण संज्ञा ने अपनी शक्ति से अपने जैसी ही छाया को बनाया और अपने पति की सेवा में नियुक्त कर स्वयं तपस्या के लिए वन में चली गई। 💚 सूर्य देव छाया को संज्ञा समझकर उन्हीं के साथ रहने लगे और उनके छाया से शनैश्चर (शनि देव) , एक मनु तथा तपती ये तीन संताने हुई।  💚 एक दिन जब छाया ने क्रोध में यम को श्राप दिया, तब सूर्य देव और यम को ज्ञात हुआ कि यह तो कोई और है। तब सारा रहस्य खुला, फिर सूर्य देव ने अपने शक्ति से उन्हें पता चला की उनकी पत्नी संज्ञा घोड़ी का रूप धारण कर वन में तपस्या कर रही है।  💚 तब सूर्य देव ने अश्वरूप धारण करके संज्ञा से दो अश्विनी कुमार और रेत:स्राव के अनंतर ही रेवंत को उत्पन्न किया।  💚 तब विश्वकर्मा जी ने सूर्य को भ्रमियंत्र (सान) पर चढ़ाकर उनका तेज छांटा, जो पृथ्वी पर गिरा। पृथ्वी पर गिरे हुए उस सूर्य के तेज से ही विश्वकर्मा जी ने विष्णु भगवान का चक्र, शंकर जी का त्रिशूल, कुबेर का विमान और कार्तिकेय की शक्ति बनायी तथा अन्य दे...

किस वृक्ष के लिये कृष्ण जी और देवराज इंद्र में युद्ध हुआ ?

✳️ नरकासुर को मारने के बाद जब श्री कृष्ण सत्यभामा के साथ स्वर्ग लोक गये और इंद्रदेव की माता के कुंडल और सभी वस्तुएं उन्हें दे दी।  ✳️ माता अदिति ने सत्यभामा को आशीर्वाद दिया कि तुम कभी बूढ़ी नहीं होगी और तुम्हारा नवयौवन हमेशा स्थिर रहेंगे।  ✳️ वहीं स्वर्ग के उद्यान में ही श्री कृष्ण और सत्यभामा ने पारिजात का वृक्ष देखा। उसे देखकर सत्यभामा ने श्री कृष्ण से कहा कि इसे तो द्वारका में होना चाहिए और यदि आप मुझसे प्रेम करते हैं तो मेरे महल में मुझे यह वृक्ष चाहिए। ✳️ यह सब सुनकर नंदन वन के रक्षक सैनिकों ने बताया कि ये इंद्र की पत्नी शची की संपत्ति है ,आप इसे नहीं ले जा सकते। श्री कृष्ण ने, इंद्र सहित सभी देवताओं से युद्ध किया, जिसमें उनकी हार हुई। जिसके बाद इंद्र का अहंकार टूट गया और उन्होंने श्री कृष्ण को पारिजात वृक्ष दे दिया, जिसे सत्यभामा ने पृथ्वीलोक में लाकर अपने महल के उद्यान में लगा दिया।  ✳️ पारिजात के पुष्पों की सुगंध तीन योजन तक फैलती थी। यादवों ने उस वृक्ष के पास जाकर जब अपना मुख देखा तो उन्हें अपना शरीर अमानुष दिखलायी दिया। इस वृक्ष के पास आकर सब मनुष्यों को अपने प...

श्री कृष्ण और नरकासुर का युद्ध क्यूँ हुआ ?

💜 एक बार देवराज इंद्र कृष्ण जी से मिले और नरकासुर के सभी अत्याचारों के बारे में बताया। नरकासुर प्रागज्योतिषपुर का राजा था। 💜 उसने देवता, सिद्ध, असुर और राजा आदि की कन्याओं को बलपूर्वक हर कर अपने महल में रखा था। इस असुर ने वरुण देव का जल बरसाने वाला छत्र और मंदराचल का मणिपर्वत का योग भी हर लिया है। उसने देवराज इंद्र की माता अदिति के तीनों दिव्य कुंड ले लिये और अब ऐरावत हाथी लेना चाहती था। 💜 श्रीकृष्ण अपनी पत्नी सत्यभामा के साथ गरुण पर सवार होकर प्रागज्योतिषपुर गए। प्रागज्योतिषपुर के चारों ओर पृथ्वी सौ योजना मूर दैत्य के बनाये हुये छुरे की धार के समान अति तीक्ष्ण पाशों से घिरी हुई थी।  💜 भगवान ने उन पाशों को सुदर्शन चक्र से काट दिया। श्री कृष्ण ने मुर, उनके 7000 पुत्र, हयग्रीव और पंचजन आदि को भी मार डाला।  प्रागज्योतिषपुर में प्रवेश करने पर उनका नरकासुर से युद्ध हुआ और श्री कृष्ण ने सुदर्शन से नरकासुर के दो टुकड़े कर दिए। 💜 श्री कृष्ण ने नरकासुर (भौमासुर) को मारकर उसके पुत्र भगदत्त को वहां का राजा बना दिया और उसकी क़ैद से 16100 कन्याएँ, चार दाँतों वाले 6000 गज और 21 लाख काम...

श्री कृष्ण के पुत्र का हरण किस असुर ने किया ?

प्रद्युम्न का हरण  शम्बरासुर ने श्री कृष्ण के पुत्र प्रद्युम्न का उनके जन्म के छठवें दिन हरण कर लिया था क्योंकि उन्हें पता था कि प्रद्युम्न के हाथों से ही उनकी मृत्यु होगी।  प्रद्युम्न का हरण करने के बाद शम्बरासुर ने प्रद्युम्न को समुद्र में डाल दिया और एक मत्स्य (मछली) ने उन्हें निगल लिया, लेकिन प्रद्युम्न फिर भी जीवित रहा। फिर उस मछली को कुछ मछुआरों ने जाल में फंसा लिया। शम्बरासुर की रसोइयां मायावती सभी रसोइयों की स्वामिनी थीं।  मायावती ने उस मछली का पेट जैसे ही  काटा उसमें से एक सुंदर बालक निकला। तब देवर्षि नारद ने मायावती को सारी बातें बतायी और उसके पालन-पोषण के निर्देश दिए।  जब वह बालक नवयुवक हुआ तब उसे पालने वाली उसपर आसक्त हो गई और उसी कारण से उसने प्रद्युम्न को सभी प्रकार की माया विद्या सिखा दी। तब नारद जी ने उन्हें बताया की शम्बरासुर का वध उनके हाथों होगा। सारी बात जानकर प्रद्युम्न ने शम्बरासुर से युद्ध किया और शम्बरासुर को मार डाला। युद्ध के बाद मायावती और प्रद्युम्न दोनों विमान द्वारा द्वारका पहुँचे।  जहां नारद जी ने सभी को बताया कि कामदेव ने ही ...

असेंबली में बम किस क़ानून के खिलाफ फेंका गया ?

दल के केंद्रीय समिति में निश्चय किया गया कि दिल्ली असेंबली में बम फेंका जाय। यह बैठक 1929 के मार्च महिने में हुई।  दिल्ली की असेंबली में सरकार दो कानून पास करवाना चाह रही थी। ये कानून थे - ट्रेड डिस्पुट एक्ट (औद्योगिक विवाद कानून) और पब्लिक सेफ्टी बिल (सार्वजनिक सुरक्षा कानून) । वास्तव में इन कानूनों को बनाने का उद्देश्य था, भारत की जनता को अपनी नागरिक स्वतंत्रता के लिए सिर उठाने से रोकना। औद्योगिक विवाद कानून के अनुसार सरकार मजदूरों से हड़ताल के अधिकार को छीनना चाहती थी। जबकि सार्वजनिक सुरक्षा कानून की आड़ में सरकार राष्ट्रीय आंदोलन को कुचलना चाहती थी। इसी सिलसिले में केंद्रीय समिती की बैठक बुलायी गई और तय हुआ कि जिस दिन असेंबली में बिलों पर वायसराय की स्वीकृति की घोषणा की जाने वाली हो उसी दिन, बॉम विस्फोट करके बहरी सरकार के कान खोल दिये जाये और जनता के प्रतिरोध की सच्ची आवाज उन तक पहुंचायी जाये।  अप्रैल 1929 का दिन था। भगत सिंह और बटुकेश्वर दत्त ने असेंबली में बम विस्फोट किया और "इंकलाब ज़िंदाबाद " और "साम्राज्यवाद का नाश हो" जैसे नारे लगाए। जिससे वहां भगदड़ मच गई...

क्रांतिकारियों की नौजवान भारत सभा क्या थी ?

सन् 1926 में सुखदेव, भगत सिंह, भगवतीचरण वोहरा आदि ने लाहौर में "नौजवान भारत सभा " का गठन किया। इसका वास्तविक उद्देश्य इश्तहारों, वक्तव्यों और सभाओं के द्वारा अपने विचारों को जनसामान्य तक पहुंचाना था।  भगत सिंह के कानपुर से नौजवान भारत सभा के इस काम में उनके साथी थे भगवतीचरण वोहरा। इसे सभी क्रांतिकारियों का समर्थन मिला।  सभा ने भारतीय स्वतंत्रता के लिए बलिदान होने वाले शहीदों का "बलिदान दिवस " मनाना शुरू किया, जिससे जन - जन तक इस संस्था का नाम पहुंच गया। इस सभा का उद्देश्य थे -  1) समस्त भारत के मजदूरों और किसानों का एक पूर्ण स्वतंत्र गणराज्य स्थापित करना। 2) अखण्ड भारत राष्ट्र के निर्माण के लिए नौजवानों में देशभक्ति की भावना उत्पन्न करना। 3) ऐसे सभी आंदोलनों की सहायता करना जो सांप्रदायिकता विरोधी हों , और  4) किसानों और मजदूरों को संगठित करना। क्रान्तिकारी दल के लिए जोशीले सदस्यों की खोज भी सभा का एक उद्देश्य था। इसी काम के लिए भगत सिंह ने लाहौर के विद्यार्थियों की भी एक यूनियन संगठित की थी, जो " नौजवान भारत सभा " का ही एक अंग है।

वेदव्यास ने अर्जुन की आभीरों से हार का क्या कारण बताया ?

जब अर्जुन वेदव्यास जी के पास गये तब उन्होंने अपनी अहीरों (आभीरों) से हुई पराजय के बारे में बताया, तब व्यास मुनि ने अर्जुन को श्री कृष्ण की स्त्रियों के हरण का कारण बताया।  उन्होंने बताया कि एक बार पूर्वकाल में अष्टावक्र जी सनातन ब्रह्मा जी की स्तुति करते हुए अनेकों वर्ष तक जल में रहे। उसी समय दैत्यों पर विजय प्राप्त करने से देवताओं ने सुमेरु पर्वत पर एक महान उत्सव किया। उसमें सम्मिलित होने के लिए जाती हुई रंभा और तिलोत्तमा आदि सैंकड़ों हजारों देवांगनाओं ने मार्ग में उन मुनिवर को देखकर उनकी अत्यंत स्तुति और प्रशंसा की। वे देवांगनाओं उन जटाधारी मुनिवर को गले तक जल में डूबे देखकर, जिस प्रकार वे अष्टावक्र जी प्रसन्न हो उसी प्रकार वे अप्सराएँ उनकी स्तुति करने लगी। इसके बाद अष्टावक्र जी ने उनसे कहा जो इच्छा हो वे माँग लो, मैं पूर्ण करूँगा। तब तिलोत्तमा , रंभा और अन्य प्रसिद्ध अप्सराओं ने कहा कि आपके प्रसन्न होने से हमें क्या मिलेगा। लेकिन अन्य अप्सराओं ने कहा कि "यदि भगवान हम पर प्रसन्न हैं तो हम साक्षात् भगवान् को पति रूप में प्राप्त करना चाहती है। ऐसा ही होगा अष्टावक्र जी ने कहा। जब ...

द्वारका से जाने के बाद श्री कृष्ण की रानियों का हरण किसने किया ?

द्वारका नगरी के डूबने के बाद अर्जुन सभी का विधिपूर्वक प्रेत कर्म कर वज्र तथा अन्य कुटुंबियों को लेकर द्वारका से बाहर आये। उस समय स्त्रियों को अकेले अर्जुन को ले जाते देख कर लुटेरों को लोभ हुआ। तब आभीर लुटेरे अर्जुन पर  लाठी और ढेले लेकर द्वारकावासियों पर टूट पड़े। तब अर्जुन ने अपने गांडीव धनुष को चलाना चाहा पर ऐसा नहीं हुआ। बहुत ही कठिनाई से जब उन्होंने प्रत्यंचा (डोरी) चढ़ाई फिर भी वे अपने धनुष को चला नहीं पाये और अपने अस्त्रों के मंत्र भी भूल गये। तब वे वैसे ही सभी लुटेरों पर बाण बरसाने लगे। लेकिन उनके ये बाण केवल उन लुटेरों की त्वचा को ही भेद पा रहे थे। अर्जुन के अक्षय बाण भी उन अहीरों से लड़ने में नष्ट हो गये।  तब अर्जुन ने सोचा मैंने जो इतने राजाओं को जीता था वह सब कृष्ण जी का ही प्रभाव था। अर्जुन के देखते ही देखते वे अहीर उन सभी स्त्रियों को खींच कर ले जाने लगे। जब अर्जुन के बाण खत्म हो गये तब अर्जुन बाण की नोक से ही उन पर प्रहार करने लगे और देखते ही देखते वे सभी उन स्त्रियों को लेकर चले गये। तब अर्जुन बहुत दुखी होकर रोने लगे और अपनी राजधानी इंद्रप्रस्थ लौट आये। यहां आकर...

रुक्मिणी जी की मृत्यु कैसे हुई ?

कृष्ण, बलराम आदि का अंतिम संस्कार  द्वारका के समुद्र में डूबने के बाद अर्जुन ने बलराम जी, कृष्ण जी तथा अन्य मुख्य मुख्य यादवों के मृत देहों की खोज करा के सभी का अंतिम संस्कार किया। कृष्ण जी की रानियों का सती होना  भगवान कृष्ण की अपने धाम जाने के बाद  रुक्मिणी आदि आठ पटरानियों ने कृष्ण जी के शरीर का आलिंगन कर के अग्नि में प्रवेश किया और सती हो गई। बलराम जी की पत्नी रेवती जी ने भी अपने पति के शरीर का आलिंगन कर के अग्नि में प्रवेश किया। वसुदेव आदि का देहत्याग   इन सभी अनिष्टों का सामाचार सुनते ही उग्रसेन, वसुदेव, देवकी और रोहिणी जी ने भी अग्नि में प्रवेश करके अपने प्राण त्याग दिये। उसके बाद अर्जुन उन सबका विधिपूर्वक अंतिम कर्म करके बाकी बचे स्त्रियों  और सभी द्वारकावासियों  को धन, धान्य सम्पन्न पंचनद (पंजाब) देश में बसाया। इसके बाद पाण्डवों ने परीक्षित का राज्याभिषेक किया और द्रौपदी सहित सभी पाँचो भाई वन चले गये।।

साइमन कमीशन क्या था ?

फरवरी 1928 को एक कमिटी इंग्लैंड से भारत आयी,जो साइमन कमीशन के नाम से प्रसिद्ध है। इस कमीशन का काम यह निर्धारित करना था कि भारत की जनता को किस हद तक स्वतंत्रता और जिम्मेदारी सौंपी जा सकती है। लेकिन इसका एक भी सदस्य भारतीय नहीं था। भारत के लोग इससे बहुत नाराज थे। सब चाहते थे की "साइमन कमीशन " वापस जाये। जब साइमन कमीशन लाहौर पहुंचा तो " नव भारत सभा " के द्वारा आयोजित हजारों लोगों के जुलूस ने इसका विरोध किया। उस समय " स्कॉट " नामक पुलिस सुप्रीटेंडेंट ने लाठीचार्ज का आदेश दे दिया। पुलिस ने लोगों को लाठियों से पीटना शुरू कर दिया और वहां भगदड़ मच गई।  लाला लाजपत राय और उनके साथी लोग वहां से बिल्कुल नहीं हटे। तब एक पुलिस सार्जेंट जिसका नाम "सांडर्स" था, दौड़कर आगे बढ़ा और उसने लाला लाजपत राय की छाती पर बेतों से वार किया। लाला जी बूढ़े थे और उन दिनों बीमार भी थे। छाती पर इस प्रहार से वे बिस्तर पर पड़ गये और एक महीने बाद उनका निधन हो गया। क्रांतिकारियों ने लाला जी की मौत का बदला लेने के लिए भगत सिंह और राजगुरु ने "सांडर्स" को गोली मार दी, जिससे उ...

हिंदुस्तान रिपब्लिक एसोसिएशन आर्मी

सन् 1914 के प्रथम लाहौर षड़यंत्र केस में 18 वर्षिय करतार सिंह सराभा को फांसी हुई। 2 सितंबर ,1928 को दिल्ली के फिरोजशाह कोटला किले के खंडहरों में उत्तर भारत के क्रांतिकारियों की गुप्त बैठक हुई। सुखदेव ने इस संगठन का नाम "हिंदुस्तान रिपब्लिक एसोसिएशन आर्मी " रखने का प्रस्ताव दिया। भगत सिंह दल के राजनीतिक नेता थे और सुखदेव संगठनकर्ता। इसका उद्देश्य था देश को आज़ाद कराना न कि आतंक फैलाना।