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Showing posts from May, 2024

सत्यवती कौन थी ?

महाराज शांतनु की दूसरी पत्नी थी सत्यवती।  इनकी माँ आद्रिका नाम की अप्सरा थी जो श्राप के कारण मछली रूप में थी और इनके पिता राजा उपरिचर थे। एक बार कुछ मछुआरों ने एक मछली को यमुना नदी से पकड़ा जिसके पेट से दो इंसानों के बच्चें निकले, एक लड़का और एक लड़की। मछुआरें उस मछली और बच्चों को राजा उपरिचर के पास ले गए। तब राजा ने उस लड़के को गोद ले लिया और उसका नाम मत्स्य रखा और  उस कन्या को राजा ने मछुआरों को दे दिया,जिसे दाशराज नाम के मल्लाह ने पाला।  इस कन्या के शरीर से मछली के जैसी गंध आती थी जिसके कारण इनका नाम मत्स्यगंधा  (सत्यवती) पड़ा। इन्हें सत्यवती भी कहते थे। वे यमुना नदी में नाव से लोगों को पार उतारती थी। उसी समय इनकी भेंट ऋषि पराशर से हुई और वो सत्यवती पर आसक्त हो गए। उन्होंने सत्यवती से वरदान मांगने को कहा ,तब सत्यवती ने अपने शरीर से आने वाली मछली जैसी दुर्गंध को सुगंध में बदलने का वर माँगा और ऐसा ही हुआ।  इसके बाद उन्होंने पराशर ऋषि से समागम किया और उनके शरीर से उत्तम गंध आने लगी जिसके कारण वे " गंधवती " के नाम से प्रसिद्ध हुई। पृथ्वी पर एक योजन दूर के मनुष्...

शकुंतला का नाम शकुंतला कैसे पड़ा ?

एक बार ऋषि विश्वामित्र तपस्या में लीन थे। तब इन्द्रदेव ने उनकी तपस्या भंग करने के लिए मेनका नाम की अप्सरा को भेजा। विश्वामित्र मेनका पर आसक्त हो गए और उनकी तपस्या भंग हो गई। शकुंतला, मेनका और ऋषि विश्वामित्र की पुत्री थी। मेनका ने हिमालय के शिखर पर मालिनी नदी के किनारे शकुंतला को जन्म दिया और उस बच्चे को उसी वन में छोड़कर वो इंद्र लोक लौट गई। उस जंगल में जंगली जानवरों से बचाने के लिए शकुंतो (पक्षियों) ने वन में उस बच्ची को अपने पंखों से चारों ओर से ढ़क लिया। जिससे उस बच्ची की जान बच गई। तभी वहां कण्व ऋषि आ गये और उस बच्ची को अपने साथ ले गये।  शकुंतो पक्षियों द्वारा बचाए जानें के कारण कण्व ऋषि ने इस बच्ची का नाम शकुंतला रख दिया। 

कर्मदेवी

मेवाड़ के राजा समरसिंह की पत्नी पृथा अपने पति के साथ सती हो गयी थी और उनकी दूसरी पत्नी कर्मदेवी नाबालिक पुत्र कर्ण की संरक्षिका बनकर राज काज संभाल रही थी।  उसी समय मुहम्मद गोरी के सेनापति कुतुबुद्दीन ने अपनी विशाल सेना लेकर मेवाड़ पर आक्रमण कर दिया। उस समय उसकी शक्ति को रोकने की क्षमता किसी में नहीं थी,राजपूत चिंतित हो गये। तब राजपूत सरदार ने कहा कि हम युद्ध में अपने प्राण न्यौछावर करने के लिए तैयार हैं पर हमारा नेतृत्व कौन करेगा।  तब राजमाता कर्मदेवी ने उत्तर दिया "उनकी वीर पत्नी अभी जीवित है।" इसके बाद एक भयंकर युद्ध हुआ, जिसमें कुतुबुद्दीन की हार हुई। रानी ने मेवाड़ पर आँच नहीं आने दी।

रानी उर्मिला

स्वाधीनता संग्राम में अपनी बलि देने वाली भारतीय नारी। 11 वीं सदी का अंतिम चरण था, महमूद गजनवी लगातार हमले कर , मंदिरों को तोड़ रहा था। सोमनाथ का विशाल कुख्यात स्मारक गुजरात की छाती पर खड़ा था।  राजा जयपाल की रानियों का सतीत्व  इसी समय अजमेर का राजा धर्मगजदेव अपनी वीरता और न्याय के लिये बाहर के देशों में भी प्रसिद्ध हो चुका था।  उसकी रानी उर्मिला पति भक्त और सतीत्व की थी,वह बहुत सुंदर थी। राजा को राज्य प्रबंध में अपना सहयोग देती थी।  अचानक महमूद गजनवी ने अजमेर पर आक्रमण कर दिया। राजा का अपराध केवल इतना था कि जिस समय मलेच्छों ने सोमनाथ मंदिर की मूर्ति पर गदा प्रहार किया,राजा ने मुसलमानो से युद्ध किया। इसी का बदला लेने के लिये महमूद गजनवी मौका देख रहा था। ऐसे अवसर पर भारतीय नारियों और कन्याओं ने भी साथ दिया। उर्मिला ने राजा से कहा कि मैं भी आपके साथ रण में चलना चाहती हूं। तब राजा ने कहा कि "रानी मैं तुम्हें रण में ले जाने में मुझे कोई आपत्ति नहीं हैं लेकिन अजमेर के प्रबंध के लिए मैं तुम्हें यहीं छोड़ दूं "  राजपूत बहुत वीरता से लड़े शत्रुओं के छक्के छूट गये। एक यवन...

बलराम जी को ब्रह्म हत्या का पाप क्यों लगा ?

जब महाभारत का युद्ध शुरु हुआ तब बलराम जी तीर्थ यात्रा पर निकले, तब यात्रा करते हुए वे नैमिषारण्य क्षेत्र पहुंचे। जहां ऋषियों का सत्संग हो रहा था।  बलराम जी के वहां पहुंचते ही सभी ऋषि उठकर उनका स्वागत करने लगे लेकिन भगवान व्यास के शिष्य रोमहर्षण अपनी जगह से नहीं उठे।  ये देखकर बलराम जी को बहुत क्रोध आया और उन्होंने कुश की नोक से उनके ऊपर वार किया, जिससे रोमहर्षण की मृत्यु हो गई।  तब ब्राह्मणों ने बलराम जी को बताया कि आपसे बहुत बड़ी गलती हो गई है रोमहर्षण जी को हमने ही ब्राह्मणोचित आसन पर बैठाया था और जब तक हमारा सत्र समाप्त न हो, तब तक के लिए उन्हें शारीरिक कष्ट से रहित आयु भी दे दी थी।  आप से अनजाने में जो काम हुआ है, वो ब्रह्महत्या के समान है। फिर बलराम जी ने इसका प्रायश्चित भी किया।

युधिष्ठिर का राजसूय यज्ञ

  पांडवो की दिग्विजय  महाराज युधिष्ठिर जब इंद्रप्रस्थ के राजा बने तब उन्होंने दिग्विजय के लिए सृजनवंशी वीरों के साथ सहदेव को दक्षिण दिशा में दिग्विजय के लिए भेजा, नकुल को मत्स्यदेशीय वीरों के साथ पश्चिम में, अर्जुन को केकयदेशीय वीरों के साथ उत्तर दिशा में और  भीमसेन को मद्रदेशीय वीरों के साथ पूर्व दिशा में दिग्विजय करने का आदेश दिया।  राजसूय यज्ञ के अतिथि   जब युधिष्ठिर ने इंद्रप्रस्थ में राजसूय यज्ञ किया, तब उसमें श्रीकृष्णदैपायन (वेदव्यास) , भरद्वाज, सुमंतु, गौतम, असित वशिष्ठ, च्यवन,कण्व , मैत्रेय, कवष, त्रित, विश्वामित्र, वामदेव, सुमति, जैमिनि, क्रुतु, पैल, पराशर, गर्ग, वैशंपायन, अथर्वा, कश्यप, धौम्य, परशुराम, शुक्राचार्य, आसुरि , वितिहोत्र ,मधुच्छन्दा , वीरसेन और अकृतव्रण। इसके अलावा द्रोणाचार्य, भीष्म पितामह, कृपाचार्य, धृतराष्ट्र और उनके दुर्योधन अपने भाइयों के साथ, विदूर आदि को बुलवाया था। इस यज्ञ का दर्शन करने के लिए देश के सब राजा, उनके मंत्री तथा कर्मचारी ,ब्राह्मण, क्षत्रिय वैश्य, शुद्र सब के सब वहां आये। इसी प्रकार सत्यकि, विकर्ण, हार्डिक्य, विदुर,भू...

शाल्व को सौभ नाम का विमान कैसे मिला ?

रुक्मिणी जी का विवाह शिशुपाल से होना निश्चित हुआ था, लेकिन रुक्मिणी जी कृष्ण जी से विवाह करना चाहती थी इसलिए कृष्ण जी ने रुक्मिणी जी का हरण कर लिया। इसके बाद सभी में युद्ध हुआ जिसमें कृष्ण जी ने शिशुपाल और उसके मित्र शाल्व को हरा दिया,तब शाल्व ने प्रतिज्ञा ली थी कि-  "मैं पृथ्वी से यदुवंशियों को मिटा कर छोडूंगा सब लोग मेरा बल पौरुष देखना।" अपनी इसी प्रतिज्ञा को पूरा करने के लिए शाल्व ने भगवान पशुपति की आराधना शुरु की। वह उन दिनों ,दिन में केवल एक बार मुट्ठीभर राख फांक लिया करता था। एक वर्ष के बाद शिव जी प्रसन्न हुए।  तब शाल्व ने शिव जी से वरदान मांगा की मुझे ऐसा विमान दिजिये जो देवता, असुर, मनुष्य, गन्धर्व, नाग और राक्षसों से तोड़ा न जा सके, जहां इच्छा हो, वहीं चला जाय और यदुवंशियों के लिए अत्यंत भयंकर हो। इसके बाद शिव जी के कहने पर मय दानव ने लोहे का सौभ नामक विमान बना कर शाल्व को दिया। सौभ विमान एक नगर के समान था। वह इतना अंधकारमय था कि उसे देखना या पकड़ना अत्यंत कठिन था। चलाने वाला उसे जहां ले जाना चाहता, वहीं वह उसके इच्छा करते ही चला जाता था।  शाल्व ने वह विमान प्रा...